*सृष्टि निर्माण की सरल व्याख्या !*

 

srishti ki rachna kaise hui?

  सृष्टि निर्माण की सरल व्याख्या! (Srishti in hindi)

  इस srishti ki rachna kaise hui?,

  यह सृष्टि किसने बनाई ?,

  इन बुनियादी प्रश्नों का उत्तर विज्ञान ने अपनी परिकल्पनाओं के जरिये देने की कोशिशें की हैं। मगर अब भी इस प्रश्न का स्टीक और पूरा-पूरा सही उत्तर हमें नहीं मिल पाया है। 

  विभिन्न धर्मों ने भी इस बुनियादी प्रश्न का उत्तर सैंकड़ों या हजारों वर्ष पहले ही अपने-अंदाज में देने की कोशिशें की हैं, जबकि उस समय व्यवस्थित विज्ञान भी नहीं था।

 तो क्या इन विभिन्न धर्मों ने इस बुनियादी प्रश्न का सही उत्तर दे दिया है या इनके उत्तर भी अधूरे अथवा गलत हैं ?

  यदि हम सूक्ष्मता से विज्ञान सहित इन विभिन्न धर्मों के उत्तरों का विश्लेषण करें तो हम पायेंगे कि इनके उत्तर ठीक वैसे ही हैं जैसे, किसी शीशे के गिलास में भरे पानी में एक कलम किनारे से देखने पर टेडा दिखता है, जटिल दिखता है। मगर वास्तव में वो टेडा नहीं है, वो सीधा ही है।

 तो आइये सृष्टि निर्माण की व्याख्या को जो कि विज्ञान से लेकर धर्मों ने दे रखी है, उसे सरल ढंग से जानने की कोशिश करते हैं:-

  सृष्टि उत्पत्ति के बारे में विज्ञान की परिकल्पना 

  सृष्टि उत्पत्ति के संदर्भ में विज्ञान ने कहा है कि आज से 13-14 अरब वर्ष पूर्व यह समस्त संसार किसी एक *बिन्दु में केंद्रित था। अर्थात उस समय शून्य नहीं था और न ही समय और पदार्थ ही थे। फिर उस बिन्दु में संपीड़न हुआ, जिसके चलते उसमें महाधमाका हुआ, जिसे वैज्ञानिक लोग *बिगबेंग कहते हैं।

 बिगबेंग की घटना के उपरान्त स्पेस, टाईम और पदार्थ का विस्तारण हुआ। तब से आजतक लगातार इनका विस्तारण हुआ जा रहा है। और यह ब्रह्मांड जिसे बिगबेंग के बाद एक महागुब्बार (महाशून्य) कहा जा सकता है इसका फैलाब होता जा रहा है, और एक घड़ी आयेगी जब यह महागुब्बार (महाशून्य) फट जायेगा और यह दुनियाँ फिर से एक बिन्दु में संकुचित हो जायेगी।

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 सृष्टि उत्पत्ति के बारे में मजहबों की परिकल्पना 

  जब हम मजहबों की बात करते हैं तो इस दूनियाँ में दो ही मजहब प्रमुख हैं - ईसाइयत और इस्लाम। ईसाइयत और इस्लाम मूलरूप में यहुदी मजहब के बच्चे हैं। इनके मजहबी-ग्रंथो के अनुसार यह सृष्टि अपने-आप नहीं बनी है बल्कि इसे बनाया गया है, और बनाने वाला खुदा है। उस खुदा ने इस सृष्टि को अपने वचन अथवा शब्द से छ: दिनों में बनाया है।

 सृष्टि उत्पत्ति के बारे में सनातन धर्म की परिकल्पना 

  जब हम जीव अथवा सनातन-धर्म की बात करते हैं तो इसका संबंध किसी मजहब से नहीं होता, वरन इसका संबंध मानवता के उस गहरे ज्ञान से संबंधित होता है जब मानव इतिहास में विभिन्न मजहबों का नामो-निशान तक नहीं था।

 हमारे मानवीय अतीत में कुछ गैर-मजहबीय लोग हुये थे, जो खोजी स्वभाव के थे जैसे, आजकल के वैज्ञानिक लोग हुआ करते हैं; उन्होने खोज की यह प्रक्रिया कुछ अनोखे ढँग से ईजाद की थी जैसे, आजकल के वैज्ञानिक किन्ही सूत्रों का निर्माण करते हैंं, ठीक वैसे ही।

 सृष्टि निर्माण के इस उत्तर में उन्होने सविस्तार रूप से एक क्रमबद्ध वैज्ञानिक उत्तर पाया। दरअसल, उन्होनें कुछ ऐसी पुस्तकें (वेद ग्रंथ) पाईं जो हाड़-मांस के बने मानवों की लिखी हुई नहीं थीं, बल्कि मानवों से पूर्व उत्पन्न हुये गैर-हाड़मांस के मानवों की लिखी हुई थीं।

 अब इस संदर्भ में हम यह नहीं कह सकते हैं कि यह सारी घटना भारतभूमि की ही है। अतीत और इतिहास की बातें हैं जो प्रागैतिहासिक-काल से भी पूर्व की हैं, अब कहाँ ये घटीं, कौन जानता है !

 लेकिन हम भारतीयों के आदि-पूर्वजों ने ज्ञान की इन बातों को संजौ के रखा है जो की आधुनिक विज्ञान से बढ़कर हैं। इस मानवधर्म को सनातनधर्म इसीलिये कहा जाता है क्योंकि इसके ज्ञान की शुरुआत की कोई शुरुवात नहीं। इस सनातनधर्म के अनुसार सृष्टि की उत्पत्ति इस प्रकार से हूई थी:- 

srishti ki rachna kaise hui?

सृष्टि के आदि में *परम-ईश्वर ने, जो की आदि में *योग-निंद्रा (Self-centered mode) में था, योग निंद्रा से जागते ही उन्होने सृष्टि बनाने की सोची। वह परम-ईश्वर तो स्वयं निर्गुण है। उन्होने सगुण-सृष्टि बनाने की सोची।

 अनादि-काल से *परम-ईश्वर और *प्रधान-प्रकृति दोनो ही थे। ये दोनो ही अजन्मे और शाश्वत हैं। परंतु प्रकृति का स्वभाव परिवर्तनशीलता है।

 आरम्भ में दोनो ही साम्य-अवस्था (ठंडी अवस्था) में थे। तब परम-ईश्वर ने प्रधान-प्रकृति पर अपनी नजरें डाली। परम-ईश्वर की नजरें प्रधान-प्रकृति पर पड़ते ही जो पहले Inactive-mode पर थी अब Activate हो गई। 

 यह जो प्रधान-प्रकृति है, यह अपने स्वभाव में असंख्य तत्वों एवं पदार्थों का रूप धारण करती है। समस्त गुण-अवगुण और विकार इसी प्रकृति के स्वभाव हैं।

 लेकिन परम-ईश्वर ने अपनी नजरें इस प्रधान-प्रकृति पर डाल कर इसे ऐसी ऊर्जा प्रदान की जिससे इसके समस्त Particals activate हो गये।

 परम-ईश्वर के द्वारा जिस ऊर्जा या शक्ति का पात आदि-प्रकृति पर किया गया उसे ही *ज्योति-निरंजन अथवा महाकाल या सदाशिव कहा जाता है।

 *परम-ईश्वर या मनुष्य के द्वारा कोई कल्पना करते ही महाकाल या काल का जन्म होता है, और फिर यही काल एक निर्धारित क्रिया को उत्पन्न करता है।*

  आइये इस घटना को हम विज्ञान की भाषा से तालमेल बिठाते हैं:- बिन्दु से बिगबेंग की घटना का होना और फिर उससे महागुब्बार (महाशून्य) का उत्पन्न होना, यह आदि की वो घटना है जब परम-ईश्वर ने अपनी *नाभि से उस ऊर्जा को उत्पन्न किया जिसे आध्यात्म में *रज (महत) कहते हैं। यह रज (महत) उसी बिन्दु से उत्पन्न हुआ है जिसे परम-ईश्वर की नाभि कहा जाता है।

  परम-ईश्वर ने अपनी कल्पना और इच्छा से अपनी नाभि से (बिन्दू से) उस ऊर्जा को अपने से बाहर की ओर धकेला। जिस ऊर्जा को उसने अपने से बाहर की ओर धकेला उसे ही रज अथवा महत कहते हैं। इसी रज अथवा महत को *ब्रह्मा भी कहते हैं, अर्थात ब्रह्मांड।  

 *इस संपूर्ण सृष्टि में अनगिनत ब्रह्मा हैं, अर्थात अनगिनत ब्रह्मांड हैं।*

  *हमारी पृथ्वी को हमारे ही ब्रहम्माण्ड (ब्रह्मा के) के  द्वारा बनाया गया है*

 परम-ईश्वर की नाभ (बिंदु में) में काल-पुरुष और प्रधान-प्रकृति का सम्मिलन हुआ था जिससे ही सर्वप्रथम महाब्रह्मा अर्थात महाब्रह्मांड उत्पन्न हुआ था।

 यह जो काल-पुरुष (ज्योतिनिरंजन) है, इसे ही *ओऊम कहते हैं। इसे ही वचन अथवा शब्द कहते हैं। इसे ही रूद्र कहते हैं। इसे ही साउंड, स्ट्रिंग, वाइब्रेशन कहते हैं। इसी तरह दूसरे शब्दों में इसे शिवलिंग कहते हैं और प्रधान-प्रकृति को योनि अर्थात शक्ति कहते हैं।

 प्रधान-प्रकृति भूमि की तरह है और महाकाल अथवा काल-पुरुष उसमें एक बीज (ब्रह्म) की तरह। शरीर प्रकृति है तो उसमें विद्यमान आत्मा ही ज्योति अथवा काल या फिर ओऊम तत्व है।

 काल-पुरुष और प्रधान-प्रकृति के संयोग से सर्वप्रथम उत्पन्न हुआ - रज अर्थात महत। फिर महत से अंहकार, और अंहकार से पुन: रजोगुण-सतोगुण-तमोगुण उत्पन्न हुये; और इन्हीं गुणों पर आधारित है यह प्रकृति और इसके विभिन्न तत्व और पदार्थ।

 सनातनधर्म में इन्हीं तीन गुणों को ब्रह्मा, विष्णु और शंकर कहा जाता है। यही तात्विक-गुण ब्रह्मांड के पदार्थों की संरचनाओं को उत्पन्न, संचालन और समापन करते रहते हैं।

 *मनुष्य के संदर्भ में भी ये तीनों गुण मनुष्य की संरचना में विद्यमान हैं।* इस कारण मनुष्य भी बनाता है, चलाता है और बिगाड़ता है। क्योंकि परम-ईश्वर ने मनुष्य को अपने समान बनाया है !

 सनातनधर्म की ये बातें कपोल-कल्पित नहीं हैं, वरन विज्ञान-सम्मत ही दिखती हैं, विज्ञान-विरोधी तो कतई नहीं। किन्तु हाँ, आधुनिक विज्ञान को वेदों के स्तर तक खोज करने और प्रगति करने की आवश्यकता जान पड़ती है।

 रही बात मजहबों की, srishti ki rachna kaise hui इस संदर्भ में उनके धर्म-ग्रंथो में कही बातें साधारण-भाषाशैली में लिखी गई हैं, न की कोई *तात्विक-शैली में। 

 सनातनधर्म के वेदों में सृष्टि उत्पत्ति का ज्ञान तात्विक-शैली (वैज्ञानिक ढँग) में सविस्तार बताया गया है, और यही सत्य है तथा विज्ञान-सम्मत भी !

 

 

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