आदि में परमेश्वर ने आकाशों (ब्रह्माण्डों ) और पृथ्वी की रचना की। पृथ्वी बेडोल और सुनसान पड़ी थी। -*उत्पति -1 :1 -2.
पृथ्वी बेडौल :- समानता भौतिक विज्ञान के साथ- पृथ्वी के बेडौल अवस्था की स्थिति में ही चंद्रमा व सूर्य निर्माण की प्रक्रिया प्रारम्भ हो चुकी थी। जो की बाइबिल के पहला अध्याय के 14-19 वचन तक पुर्ण रुप से निर्मित व दीप्तिमान हो चुके थे। पृथ्वी के बेडौल होने का प्रमाण यह है की भौतिक विज्ञान भी इसका प्रमाण देता है- केम्ब्रीयअन युग के अवशेषों के अध्ययन से ज्ञात होता है की पृथ्वी की ऊपरी परत तीव्रता से ठंडी हो गई थी जिससे इसका आधार बेडौल हो गया अर्थात् एक ओर जल तो दूसरी ओर थल; और गहरे जल के ऊपर अंधियारा था और परमेश्वर का आत्मा जल के ऊपर मंडराता था।
*हिन्दू धर्म सहित्य अनुसार- नारायण अर्थात जल के ऊपर मंडराने वाला, परमेश्वर का आत्मा। इस प्रकार पहला दिन हो गया।
दूसरा दिन, अध्याय 1:14-19÷ इस काल में सुर्य तथा तारागण अपनी अपनी स्थिति में पूर्ण दीप्तिमान हो चुके थे। यह पृथ्वी के उत्पति के एक अरब वर्ष बाद की बात है। पृथ्वी की आयु 5 अरब वर्ष मानी गई है। निसन्देह यह विषय विवादास्पद है किन्तु इस धारणा के अनुसार प्रमाण- अमेरिका की भूगर्भशास्त्री की अमेरिकन संस्था ने पृथ्वी की प्राचीन शैलों के अध्ययन से पता लगाया है की बहते जल द्वारा अप्दर्ण की प्रक्रिया 4 अरब वर्ष पूर्व प्रारंभ हुई थी। इस आधार पर पृथ्वी का जन्म 5 अरब वर्ष पूर्व है।- * The Hindustan Times 12-04-65, P12colomn6.
जल के बहने की स्थिति सम्भवता सूर्य के दीप्तिमान की प्रक्रिया स्वरूप ही था। यह तथ्य निश्चय ही सिध्द करता है कि सूर्य लगभग 4 अरब वर्ष पूर्व ही बना है। वैसे भी अधिकांश विज्ञानिकों ने तथा नवीनतम खोजों ने यह सिध्द कर दिया है की सूर्य की आयु लगभग 4 अरब वर्ष पूर्व है। विज्ञानिक वर्ग के पास कोई उपाय नहीं कि वह निश्चय ही यह कह सकें कि पृथ्वी सूर्य के अवशेषों से बनी है। आधुनिक तथा अति प्राचीन विचार (बाईबल) सूर्य के बनने की प्रक्रिया पृथ्वी के साथ साथ ही थी। किन्तु दीप्तिमान सूर्य 4 अरब वर्ष पूर्व पूर्ण था। यही नही अपितु अन्य कुछ सितारे और ग्रह इत्यादि भी इसी काल में बने हैं।
*हिन्दू धर्म सहित्य अनुसार- नारायण अर्थात जल के ऊपर मंडराने वाला, परमेश्वर का आत्मा। इस प्रकार पहला दिन हो गया।
दूसरा दिन, अध्याय 1:14-19÷ इस काल में सुर्य तथा तारागण अपनी अपनी स्थिति में पूर्ण दीप्तिमान हो चुके थे। यह पृथ्वी के उत्पति के एक अरब वर्ष बाद की बात है। पृथ्वी की आयु 5 अरब वर्ष मानी गई है। निसन्देह यह विषय विवादास्पद है किन्तु इस धारणा के अनुसार प्रमाण- अमेरिका की भूगर्भशास्त्री की अमेरिकन संस्था ने पृथ्वी की प्राचीन शैलों के अध्ययन से पता लगाया है की बहते जल द्वारा अप्दर्ण की प्रक्रिया 4 अरब वर्ष पूर्व प्रारंभ हुई थी। इस आधार पर पृथ्वी का जन्म 5 अरब वर्ष पूर्व है।- * The Hindustan Times 12-04-65, P12colomn6.
जल के बहने की स्थिति सम्भवता सूर्य के दीप्तिमान की प्रक्रिया स्वरूप ही था। यह तथ्य निश्चय ही सिध्द करता है कि सूर्य लगभग 4 अरब वर्ष पूर्व ही बना है। वैसे भी अधिकांश विज्ञानिकों ने तथा नवीनतम खोजों ने यह सिध्द कर दिया है की सूर्य की आयु लगभग 4 अरब वर्ष पूर्व है। विज्ञानिक वर्ग के पास कोई उपाय नहीं कि वह निश्चय ही यह कह सकें कि पृथ्वी सूर्य के अवशेषों से बनी है। आधुनिक तथा अति प्राचीन विचार (बाईबल) सूर्य के बनने की प्रक्रिया पृथ्वी के साथ साथ ही थी। किन्तु दीप्तिमान सूर्य 4 अरब वर्ष पूर्व पूर्ण था। यही नही अपितु अन्य कुछ सितारे और ग्रह इत्यादि भी इसी काल में बने हैं।
अध्याय 1:9-13 चौथा दिन:- आकाश के नीचे का जल एक स्थान में इक्कठा हो जाये और सूखी भूमी दिखाई दे। भौतिक विज्ञान अनुसार- पेल्योजोइक महाकल्प (50 करोड वर्ष पूर्व) प्रसिध्द वेज्ञानिक बेग्नेर के अनुसार, पेल्योजोइक महाकल्प में सारे महाद्वीप एक साथ जुड़े थे और इस सम्मिलित महाद्वीप को *पेन्जिया* कहा गया। इस महाद्वीप के मध्य में टेथीज नामक सागर था। टेथिज- प्राचीन महासागर। बाईबल के साधारण शैली के अनुसार समुद्र कहा गया। इसी चौथे दिन में महासागर का निर्माण हुआ।
पेल्योजोईक युग के अन्तिम भाग में पृथ्वी के धरातल पर *टेथीज* नामक सागर उत्तर में लारेन्शिया और दक्षिण में गौडवाना लैण्ड नामक विशाल महाद्वीपों से घिरा हुआ था। लारेन्शिया में उत्तरी अमेरिका, युरोप और एशिया सम्मिलित थे। गौंडवाना लेंड में आस्ट्रेलिया, अंटार्कटिका प्रायद्वीपीय भारत, अफ्रीका और दक्षिणी अमेरिका थे। (पैंजिया के विभाजन तथा महासागर के विभाजन की व्याख्या बाईबल में नहीं लिखी गई है। इसी चौथे दिन में पेल्योजोइक के कैम्ब्रियन कल्प में पहला जैव-जीव समुंद्र में अवतरित हुआ।
आयत 11 फिर परमेश्वर ने कहा, "पृथ्वी से हरी हरी घास तथा बीज वाले छोटे-छोटे पेड और फलदायी वृक्ष भी जिनके बीज उन्हीं में एक एक जाति के अनुसार हैं पृथ्वी पर उगें- भौतिक विज्ञान अनुसार- साल्युरियन कल्प (32.5 से 28.5 करोड वर्ष पूर्व में यह सब हुआ।
5वां दिन अध्याय 1:20-23:- फिर परमेश्वर ने कहा,"जल जीवित प्राणियों से बहुत ही भर जाएं अर्थात यह पंक्ति सिध्द करता है कि प्राणी चौथे दिन में केम्ब्रीयन कल्प में प्रकट हो चुका था।
भर जाएं न कि उत्पन्न हों ! और पृथ्वी के ऊपर आकाश के अन्तर में उडें। इसलिए परमेश्वर ने जाति जाति के जल-जन्तुओं की और उन सब जीवित प्राणीयों की भी सृष्टि की जो चलते फिरते हैं जिनसे जल बहुत ही भर गया और एक एक जाति के उड़ने वाले पक्षियों की भी सृष्टि की। भौतिक विज्ञान अनुसार, डेवोनियन कल्प से मेसोजोइक महाकल्प के क्रिटेशियट कल्प में उत्पन्न जल थल व नभ के प्राणी।
डायनसोर, मछलियों के विभिन्न प्रकार उरग पक्षियों आदि। डायनसोर की एक प्रजाति जो जल और थल में विचरण करती थी इसी काल में हुई थी।
6वां दिन अध्याय 1:24-27 का वर्णन भौतिक शास्त्र अनुसार केनोजोइक महाकल्प के पेलियोसिन युग से प्लायोसिन युग तक की घटना है।
मनुष्य की उत्पति का वर्णन दूसरे अध्याय का 5-8 तक का वचन:- मैदान का कोई पौधा भूमि पर उगा न था।
*मैदान- भौतिक व जीव विज्ञानी भी यह मानते हैं कि मनुष्य किसी मैदान की मिट्टी से बना है। उस मिट्टी को वे एन्थ्रोपाइड तलछट कहते हैं।
प्लायोसिन युग में अन्त में परमेश्वर ने मनुष्य की सृजना की।
मानव जैसी प्रजातियाँ 25 लाख वर्ष पूर्व से चली आ रही हैं उनमें से भी गौरिल्ला, चिम्पेन्जी, बंदर आदि मौजूद हैं। जो प्रजातियाँ मानव से पूर्व थीं निश्चय ही वे बंदर इत्यादि से बेहतर थीं। मानव तो आज से ठीक 13235 वर्ष पूर्व परमेश्वर के द्वारा बनाया गया था।
इसका वृतांत अगले किसी पोस्ट में दूंगा।
मानव जैसी प्रजातियाँ 25 लाख वर्ष पूर्व से चली आ रही हैं उनमें से भी गौरिल्ला, चिम्पेन्जी, बंदर आदि मौजूद हैं। जो प्रजातियाँ मानव से पूर्व थीं निश्चय ही वे बंदर इत्यादि से बेहतर थीं। मानव तो आज से ठीक 13235 वर्ष पूर्व परमेश्वर के द्वारा बनाया गया था।
इसका वृतांत अगले किसी पोस्ट में दूंगा।
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