*जल-प्रलय की सच्ची घटना (एक वैज्ञानिक सच्चाई) !*


जल-प्रलय की सच्ची घटना (एक वैज्ञानिक सच्चाई )!


    आरम्भ में परमेश्वर ने मनुष्य को भूमध्यभूमी की मिट्टी से बनाया और फिर उसे पूर्व में अदन की वाटिका में रख दिया। 
बाईबल अध्याय 2:8- अदन की वाटिका में रखना पूर्व में। 
 भूमध्य मैदान की मिट्टी से रचा, अध्याय 3:23 इसलिए यहोवा परमेश्वर ने उसको अदन की वाटिका में से निकाल दिया कि वह उस भूमि पर खेती करे जिसमें से वह बनाया गया था अर्थात भूमध्यभूमी के पूर्व की ओर अदन- ईराक।

 निसन्देह यह सत्य है की पृथ्वी पर मानव जैसी प्रजातियाँ लगभग 25 लाख वर्ष पूर्व से चली आ रही हैं। ताजुब की बात तो यह है कि ये प्रजातियाँ विभिन्न चरणों मे अपना उत्थान पाती हैं अथवा मिट जाती हैं और पुन: अन्य प्रजातियों का प्रादुर्भाव होता है। इस सिलसिले में हमारे हिसाब से 98% हिस्सा व्यतीत हो जाता है और तब जाकर एक अत्यधिक जटिल प्राणी (मनुष्य का) का श्रीगणेश होता है। जो अपने जीवन का मात्र 2% हिस्सा ही व्यतीत कर चुका है। विज्ञान की किसी भी बात की अवहेलना करना अपने आप को मूर्ख बनाने के समान है। किन्तु फिर भी विज्ञान एक खोज प्रधान पद्यति है जो तर्क एवं अन्वेषण तथा परीक्षण पर आधारित है। विज्ञान मात्र स्थूल चीजों पर तर्क, अन्वेषण व परिक्षण कर सकता है। अब इस क्रम में भी उसके अपने बहुत से परीक्षण तथा अनुसन्धान असत्य सिध्द हो जातें हैं और पुन: नये पडताल की आवश्यकता महसूस की जाती है। 
 इस प्रकार अतीत की या पदार्थों की बहुत सी बातें स्पष्ट नहीं हो पातीं। ईश्वरीय योजना अतीत में क्या रही हों यह हममें से कोई नहीं जानता और अभी तथा आगे भी क्या रहेगी यह भी नही। हम केवल गहन अन्वेषण कर सकते हैं।

जिस काल की जलवायु की और भौतिक दशा की बात मैं करूंगा उस स्थिति में मानव तथा मानव के समरूप नस्ल का लगभग एक साथ रहना मुमकिन है। यदि ना भी रहे हों तो भी उक्त काल के प्रलय से वे सभी यकीनन नष्ट हो गये।

हिम्युग के दौर में पृथ्वी का अधिकतम हिस्सा हिमालय हो गया था। जिसमें मानव समान प्राणियों ने सम मौसमियों क्षेत्रों की तरफ पलायन किया। जो ना कर सके वे नष्ट हो गये।
ऐसा ही एक पलायन भूमध्य मैदान की ओर हुआ जिसमें मनुष्य भी रहते थे।

उक्त काल में अर्थात नवपाषण काल में भूमध्य मैदान में भूमध्यसागर नही था बल्कि यहां एक या दो झीलें थीं। लालसागर भी नहीं था। यह सब जमीन थी। हिन्दुस्तान का बडा हिस्सा टापू था। पंजाब जल मगन था। दक्षिणी भारत, मध्य भारत एक बहुत बड़ा द्वीप था। किन्तु हिमालय व उसके मैदान जल मगन थे। उस काल में ये सभी क्षेत्र तथा संसार का अधिकतम क्षेत्र भीषण सर्दी की चपेट में था। धीरे-धीरे ठण्ड का वातावरण विलुप्त हुआ। किन्तु प्राणी अधिकतम भूमध्य क्षेत्र में सिम्टे थे। 

हिम्युग के समापन से मध्य एशिया में घने वन उग आये। किन्तु यह करीब-करीब 8000 वर्ष पहले की बात है। नव पाषण काल के अन्तिम चरण में 5000 वर्ष में परमेश्वर के द्वारा जल प्रलय किया गया। यह महाघटना  परमेश्वर की ओर से मानो एक पंथ दो काज था। एक ओर प्राणियों के दुष्कर्म का दण्ड तो दूसरी ओर उन्ही के लिये पृथ्वी के क्षेत्र का विस्तार।  

उस काल में यकायक युरोप व अफ्रीका के बीच में जिब्राल्टर के पास जमीन बह गई और अटलांटिक समुंद्र का पानी उस नीचे गड्डे में भर गया। यही नही हिन्दुस्तान में भी और समस्त पृथ्वी में भी हलचल जैसी घटना हुई। इस प्रकार भारत का वर्तमान रूप प्रकट हुआ तथा पृथ्वी के अन्य हिस्से का भी। अटलांटिक समुद्र का पानी भूमध्य मैदान में उतरने से भूमध्य सागर का जन्म हुआ। तथा जल प्रलय में समस्त प्राणियों का नाश हुआ। जो नूह के साथ जहाज में थे केवल वही बचे। जिनमे नाना प्रकार के प्राणियों के जोड़े आदि थे।

इससे पूर्व मनुष्य जैसी जातियों ने पृथ्वी के छोर-छोर में जो कुछ भी किया आज उसके प्रमाण अवशेष स्वरूप विज्ञानिक पा रहे हैं। पृथ्वी के छोर-छोर में जल मगन की स्थिति असमान रूप से जल के फैलाब-बहाब से थी। किन्तु समस्त भूमध्य भाग जहां पर आरम्भिक मानवीय सभ्यता पनपी थी, नष्ट हो गई। 
इस प्रकार नूह का जहाज आरारत नामक पहाड़ी पर टिका (ईराक) और फिर वहीं से उतर कर उवैद कालीन सभ्यता से विश्व सभ्यताओं का श्रीगणेश होता है।
कृषि का पहला प्रमाण जल प्रलय से पूर्व पश्चमी एशिया (भूमध्य भूमि क्षेत्र)।
सम्भव है कि मनुष्य 9000 वर्ष पूर्व ही या इससे पहले ही पश्चमी एशिया, ईराक, ईरान, मिश्र, इटली, यूरोप के कुछ हिस्सों तक फैल गये थे। किन्तु ये सब नष्ट हो गये।


  




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