*बाईबल में पुनर्जन्म की सच्चाई ! (प्रमाण सहित पढ़ें!)*

  
bible me punarjanam ki sacchai !

 बाईबल में पुनर्जन्म की सच्चाई ! (प्रमाण सहित पढ़ें!)

  पूर्वी धर्मों में punarjanam की धारणायें सदियों से चली आ रही हैं। परन्तु पश्चिमी धर्मों में पुनर्जन्म जैसी कोई धारणा या विश्वास नहीं है। जबकि पुनर्जन्म के संदर्भ में पश्चिमी धर्मों के धर्मग्रंथों में कोई चर्चा ही नहीं की गई है/ तो क्या बाईबल में पुनर्जन्म है? इस संदर्भ में चर्चा न किये जाने का अर्थ यह नहीं हुआ कि उन धर्म ग्रंथों ने पुनर्जन्म की धारणा को सीरे से खारिज कर दिया। नहीं, ऐसा नहीं है। केवल इस विषय पर कोई बात ही न तो छेड़ी गई और न ही विस्तार से बताई ही गई है। शायद इन ग्रंथों को लिखने वालों ने यही उचित जाना कि इस विषय पर लिखना बेकार की बात है, जो मानवता के हित में नहीं है !

  पूर्वी धर्मों में पुनर्जन्म !

  समस्त पूर्वी धर्मों में पुनर्जन्म की धारणा है, और यहाँ पर अटूट विश्वास है कि मनुष्य जब मरता है तो वे अपने कर्मों के अनुसार अगला जन्म प्राप्त करता है।  मनुष्य का केवल यह शरीर ही मरता है, वे स्वयं (आत्मा) नहीं मरता। 

  कर्मों की यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक मनुष्य पूरी तरह कर्मबन्धन से मुक्त न हो जाये। उसके बाद मनुष्य का कोई पुनर्जन्म नहीं होता। वह शरीरों से ( जीव योनियों से) मुक्त हो जाता है और केवल आत्म-अवस्था में ही रहता है, जिसे मोक्ष कहते हैं।

  पश्चिमी धर्मों में पुनर्जन्म !

  नहीं, ऐसा नहीं है कि समस्त पश्चिमी धर्मों में पुनर्जन्म की धारणा नहीं होती। जब हम इतिहास को पढ़ते हैं तो हम यह पाते हैं कि बेबिलोनियन तथा मेसोपोटामिया की सभ्यता में भी पुनर्जन्म की धारणा विद्यमान थी। उनके धार्मिक ग्रंथों में (हमारे पुराणों की तरह की किताबों में) भी ऐसे कई किस्से व कहानियाँ हैं जिनसे यह पता चलता है कि उनकी संस्कृतियों में भी यह विश्वास था कि मनुष्य का पुनर्जन्म होता है। 

 तो पुनर्जन्म के बारे में बाईबल क्या कहती है ? - लेकिन जब उन संस्कृतियों में इब्राहिमिक धर्मों (यहुदी, इसाई व इस्लाम) का प्रसार हुआ तो वहाँ पर पुनर्जन्म की धारणा को बड़ी ही सफाई के साथ धर्म ग्रंथों में छुपा लिया गया। इतना कुछ होने पर भी इन्हीं इब्राहिमिक ग्रंथों में पुनर्जन्म की धारणा को पूरी तरह से नहीं छुपाया जा सका।

  *बाईबल में पुनर्जन्म प्रमाण सहित !

  इब्राहिमिक धर्म का बड़ा बेटा ईसाई धर्म में पुनर्जन्म की धारणा को पूरी तरह से छुपाया नहीं जा सका है। बाईबल के पुराने अहद्नामें में तो लगभग पूरी कोशिश की गई है कि पुनर्जन्म के विश्वास पर चर्चा ही न किया जाये। परन्तु बाईबल के नये अहद्नामें में पुनर्जन्म के विश्वास को छुपाया न जा सका, क्योंकि बाईबल के नये अहद्नामें का ईश्वर कोई अदृश्य परमेश्वर नहीं था बल्कि हमारी ही तरह एक जीता-जागता 100% मनुष्य भी था, जिससे उसके अनुयायियों के द्वारा चर्चा करते समय यह बात प्रकट हुई कि वाकई में मनुष्य का पुनर्जन्म होता है।

  बाईबल के नये अहद्नामें की जिस पुस्तक में तथा उसके उस अध्याय के जिस आयत में इस बात की चर्चा हुई है उस संदर्भ में निसन्देह, लोगों का ध्यान नहीं गया, और यदि गया भी है तो गहरे से गहरा ध्यान नहीं गया।

  *क्या पवित्रशास्त्र पुनर्जन्म के बारे में सिखाता है ?

  तो आइये इस पुस्तक के इस अध्याय के इस आयत को एक गहरी अंतर्दृष्टि से देखते हैं :-

  *यूहन्ना रचित सुसमाचार - 9:1-3. इस आयत में हम यह देखते हैं कि प्रभु येशु-मसीह से उसके चेलों ने यह सवाल किया कि, "हे प्रभु किसने पाप किया कि यह मनुष्य अन्धा जन्मा है?, क्या इसने स्वयं या फिर इसके माता-पिता ने ?" 

  बाईबल के पुराने अहद्नामें में तो केवल पूर्वजों के द्वारा किये गये पाप का ही जिक्र है। मतलब आदम का किया पाप, उसके बाद के हमारे पूर्वजों का पाप, जो हमारे नजदीकी पूर्वज अर्थात हमारे माता-पिता के पाप तक आती है, उनके पापों का भुगतान भी हमें ही करना पड़ता है।

  इसके अतिरिक्त हमारे द्वारा किये जाने वाले पापों का भुगतान हमारी पीढियाँ करेंगी, और हमें स्वयं अन्तिम न्याय के समय यह भुगतान करना पड़ेगा।

  लेकिन बाईबल के नया अहद्नामें के इस आयत में हम पूर्वी धर्मों के विश्वास की एक झलक स्पष्ट देखते हैं। या फिर ऐसा भी हो सकता है कि उक्त काल में उस संस्कृति के लोग भी यह जानते थे कि मनुष्य का पुनर्जन्म होता है। लेकिन बाइबल में इस संदर्भ में इस बात का जिक्र करना आवश्यक नहीं जाना हो !

  तो आइये एक बार फिर इस आयत को देखते हैं -

 "किसने पाप किया कि यह मनुष्य अन्धा जन्मा है ?,

  क्या स्वयं इस मनुष्य ने या फिर इसके माता-पिता ने ?" 

  अब बाईबल के लोग तो माता-पिता से मिले पाप के दण्ड के सिद्धांत को तो तुरन्त मान लेंगे, लेकिन स्वयं के किये पाप के दण्ड के सिद्धांत को जो कि अगले जन्म मे मिला हो उसे स्वीकार नहीं करते, जबकि उन्हें ऐसा करना चाहिये, क्योंकि बाईबल भी (वचन) स्वयं इस बात को उद्घाटित करती है कि मनुष्य का पुनर्जन्म होता है।

  क्योंकि इस आयत में प्रभु येशु-मसीह के चेले जो कि यहुदी थे, और इब्राहिमिक धर्म के अनुयायी थे, वे ये जानते थे कि मनुष्य का पुनर्जन्म होता है, तभी तो उन्होंने ऐसा और इस तरह का सवाल किया कि क्या इस मनुष्य ने पाप किया की यह अन्धा जन्मा है !

  तो इसी प्रकार आगे की आयत में भी हम देखते हैं कि प्रभु येशु-मसीह जिसे बाईबल परमेश्वर का वचन कहता है और यहाँ तक की स्वयं येशु-मसीह कहते हैं कि वह स्वय्ं परमेश्वर का वचन है, वह भी पुनर्जन्म की बात को सीरे से खारिज नहीं करते वरन अप्रत्यक्षता पुनर्जन्म की धारणा को स्वीकारते हैं।

   क्योंकि यहाँ एक अन्धे व्यक्ति की बात हो रही है, तो प्रभु ने उसी अंधे व्यक्ति के संदर्भ में ही उत्तर दिया कि उसकी ऐसी हालत क्यों है, तो इसका यह अर्थ कतई नहीं हुआ कि जितने भी मनुष्य जो अंधे जन्मते हैं या फिर कोई शारीरिक विकार को लेकर पैदा होते हैं वे सब के सब परमेश्वर की इच्छा ही से ऐसे जन्मते हैं। 

  नहीं, कहीं कुछ गड़बड़ है जो वे ऐसे जन्मते हैं, और वे गड़बड़ यह है कि यह उनके पूर्व जन्मों के कर्मों का फल है। जो प्रत्यक्षता यह प्रमाण देता है की हां, उस मनुष्य ने पूर्वजन्म में कुछ भयंकर पाप कर्म किये थे जो वे इस जन्म में ऐसा जन्मा है। 

तो क्या बाईबल में पुनर्जन्म है ?- इस संदर्भ में प्रभु येशु-मसीह ने उत्तर दिया कि , "न तो इस मनुष्य ने पाप किया था कि यह मनुष्य अन्धा जन्मा और न ही इसके माता-पिता ने।" अर्थात प्रभु येशु-मसीह जो स्वयं परमेश्वर का वचन है या फिर कहें कि स्वय्ं परमेश्वर हैं, वह स्वयं यह कह रहे हैं कि 'इस मनुष्य ने अपने पिछ्ले जन्म में ऐसा कोई पाप नहीं किया था कि यह इस जन्म में अन्धा जन्मा, वरन यह तो केवल परमेश्वर की इच्छा से केवल परमेश्वर की महिमा के लिये उस मनुष्य के साथ ऐसा किया गया था।'

  अत: प्रभु येशु-मसीह ने इस वचन  में punarjanam के विश्वास को स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है। अब इस आधार पर पुनर्जन्म की धारणा पश्चिमी धर्मों में एक विवाद का विषय नहीं रहा, वरन यह स्पष्ट हो चुका है कि मनुष्य का पुनर्जन्म उसके कर्मों के अनुसार होता ही रहता है !

 

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