human nature in hindi |
मनुष्य प्रकृति के प्रकार (एक वैज्ञानिक विश्लेषण)! human nature in hindi
human nature के बहुआयामी गुण हैं जिनमें प्रधान गुण तो केवल छ: हैं। मनुष्य की मूल प्रकृति एक सृजनात्मक प्रकृति है। इसलिये मनुष्य अपने जीवन भर में कुछ न कुछ करता रहता है जिसकी छाप वो अपने जाने के बाद छोड़ जाता है। वस्तुतः मनुष्य के ये सृजनात्मक गुण मनुष्य समाज को विकास के पथ पर आगे बढ़ाती है। परन्तु कुछ सृजनात्मक गुण ऐसे भी हैं जिनसे समाज का विकास तो नहीं होता, केवल उसी मनुष्य का विकास होता है पर बदले में समाज की भयंकर तरीके से हानि भी होती है।
बहरहाल, हम यहाँ मनुष्य सृजन के नकारात्मक पहलु की बात नहीं करेंगे, हम यहाँ बात करेंगे केवल उसके सकारात्मक पहलु की।
मानव प्रकृति और उसकी सामाजिक और आध्यात्मिक उन्नति
मनुष्य समाज के निर्माण के पीछे उसकी प्रकृति ही निहित है।अन्य जीव-जन्तुओं का भी अपना अपना एक समाज होता है, परन्तु उनके समाज का विकास नहीं होता, क्योंकि मनुष्य को छोड़ सभी जीव सृजनशील प्रकृति के नहीं होते। एक मनुष्य ही है जो अपनी सृजन प्रकृति से अपने समाज का निर्माण तो करता ही है और साथ ही उसका विकास भी।
बच्चे पैदा करना और परिवार बनाना यह तो केवल उसकी जैविक प्रकृति है, परन्तु इससे अधिक मनुष्य अपनी बौद्घिक प्रकृति से अपने समाज का निर्माण और विकास भी करता है।
मनुष्य समाज पूर्णतः एक बौद्धिक प्रकृति का स्वरूप ही है। मनुष्य प्रकृति में सबसे निचले स्तर का गुण है- रचनात्मकता, अर्थात साधारण प्रकृति।
इस गुण के परिणामस्वरूप कोई मनुष्य कलाकार है तो कोई संगीतकार, कोई डाक्टर है तो कोई वकील, कोई शिक्षक, वैज्ञानिक, किसान और बिल्डर आदि आदि।। परन्तु ये सब मनुष्य प्रकृति के साधारण गुण हैं जो किसी भी मनुष्य में घटित हो सकते हैं। अत: इसमें कोई घमंड नहीं कर सकता कि मैं वैज्ञानिक हूँ तो दूसरे से श्रेष्ठ हूँ, क्योंकि दूसरा भी अपने स्तर से कुछ न कुछ तो है ही।
जो मनुष्य अपनी बौद्धिकता से अपने हृदय के भीतर की गहराइयों में उतरना शुरु करते हैं केवल वही मनुष्य इस स्तर के मकाम को हांसिल करते हैं। इस स्तर को छूने वाले मनुष्य की प्रकृति कल्याणमय चिंतन व प्रेम की गहराइयों को लिये हुये होती है, जिनमें लेखक, कवि, दार्शनिक, चिंतक इत्यादि आते हैं।
human natur in hindi |
इस दर्जे के लोगों की प्रकृति में कल्याणमय चिंतन व प्रेम की गहराइयाँ स्थिर होती हैं।
इस प्रकार की प्रकृति के मनुष्य, मनुष्य होने का भाव जानते हैं। इनमें उदाहरणस्वरूप *बुद्ध जैसे श्रेष्ठ मुनि, ओशो और सद्गुरु जग्गीवासु जैसे श्रेष्ठ मुनि आते हैं
इस प्रकार की प्रकृति के मनुष्य इससे पहले के समस्त प्रकृतियों को धारण किये हुये होते हैं। इनमें कल्याण, चिंतन, प्रेम, विवेक, तर्क और वैज्ञानिक्ता सब कुछ का समावेश एक साथ होता है। इनकी प्रकृति पूर्णतः सात्विक होती है। ये अन्धकार और पापी का कड़ा और प्रत्यक्ष विरोध करते हैं। इस दर्जे में आने वालों में से उदहारणस्वरूप- राम, कृष्ण जैसे श्रेष्ठ पुरुष हैं।
इस प्रकार की प्रकृति का मनुष्य बुद्धि, विवेक, तर्क और विरोध की सारी सीमाओं को पार कर पूर्णतः आत्म-स्थापित हो जाता है। जैसे सूर्य भले और बुरे दोनो तरह के मनुष्यों के लिये एक समान प्रकाश देता है ठीक उसी तरह का स्वभाव या चरित्र इस दर्जे के व्यक्ति का होता है।
यह अन्धेर या पापी का विरोध नहीं करता वरन पाप व अन्धकार का विरोध कर सूर्य के समान सब मनुष्यों पर अपना उजाला प्रकट करता है।
अत: human nature के समस्त गुणों में से केवल यही गुण पूर्णतया ईश्वरीय गुण है, जो की फिलहाल *एक मनुष्य को छोड़ किसी भी मनुष्य में उज्वल नहीं हुआ है।
प्राचीनकाल से संसार के सभी समाजों में बहुतायत मनुष्य की साधारण प्रकृति का ही प्रकाशन हुआ है, या इससे अधिक ऊधर्वमानव के स्तर से लेकर उद्भासितमानव तक हम मनुष्य को इतिहास में सामान्यता देखते हैं। परन्तु अन्तरबौधि और अधिमानव के स्तर को केवल भारतिय मनुष्यों ने छूआ है। तो इससे यही पता चलता है कि भारतीय मनुष्यों की प्रकृति अपनी सृजनशीलता में विकास के पथ पर चरमसीमा पर थी। परन्तु जहाँ मनुष्यों की प्रकृति अपनी सृजनशीलता में विकास के पथ पर न के बराबर थी वहाँ पर केवल *एक मनुष्य ने ही *अतिमानव (Superman) होने का गौरव प्राप्त किया।
इसे छोड़ इस संसार में किसी भी मनुष्य ने मनुष्य प्रकृति के इस सर्वोच्च दर्जे को प्राप्त नहीं किया !!!
Deep information !
जवाब देंहटाएं