देवी देवता कहाँ चले गए ? |
देवी-देवता कहाँ चले गये?
परमेश्वर की संगति से आदम और हव्वा के निकल जाने के बाद, परमेश्वर ने भी उन्हें सृष्टि व सृष्टि के नियंताओं के हवाले छोड़ दिया।>*Bible-Genesis-chptr-1. आदम की संताने पृथ्वी पर जैसे-जैसे बढ़ती चली गईं वैसे-वैसे उनका सामना इस सृष्टि के नियंताओं से होता चला गया। सृृृष्टि के ये नियंता इस सृष्टि के नियंत्रक व नियामक अधिकारी हैं। ये वे देवदूत हैं जिनका कार्य इस सृष्टि की संपूर्ण व्यवस्था को चलाने से है। जब तक यह सृष्टि है तब तक ये देवदूत इस सृष्टि के नियंत्रक व नियामक अधिकारी हैं। ये विभिन्न देवदूत हीं विभिन्न देवी-देवताओं के नाम से जाने जाते हैं। Contents :-
1.बहुदेववाद ! (देवी-देवता)
2.परमेश्वर ने बहुदेवीय आराधना क्यों होने दी?
3.देवी-देवता फिर से लौटने वाले हैं !
बहुदेववाद ! (देवी-देवता)
आदम और उसकी पत्नी के भटक जाने के बाद उसकी संताने भी भटकती चली गईं। भटकाव के इस क्रम में उनका सामना कुछ दुष्ट प्रकृति के पार्लौकिक जीवों से हुआ, तो कुछ का इस सृष्टि के संचालकों से।
जहां-जहां आदम की संततिये-कबीलों का सामना दुष्ट-पार्लौकिक-प्राणियों से हुआ, वहाँ की सँस्कृति बड़ी ही अमानवीय व अजीबोगरीव संस्कृति प्रतीत होती हैं। यदि गौर से देखा जाये तो पता चलता है कि ये अधोलोक के नियंत्रक व नियामक अधिकारी हैं। इनका संबंध - *पश्चिम एशियाई सँस्कृति, कुछ करके पूर्वी एशियाई संस्कृति और उत्तर, मध्य व दक्षिण अमेरिकाई संस्कृति से है।
इसी प्रकार प्राचीनकाल में कुछ मनुष्य कबीले *भंवरलोक के संचालक अधिकारियों के संपर्क में आये और उन्हीं के द्वारा प्रदत्त संस्कृति का अनुसरण किया।
ठीक इसी क्रम में प्रचीनकाल में कुछ मानवीय कबीलों का सामना *स्वर्गलोक के संचालक अधिकारियों से हुआ। और फिर उन्होंने उन्हीं के द्वारा प्रदत्त संस्कृति का पालन किया। जिनमें है- आर्यजाति संस्कृति, विशेषकर भारत में।
जहां-जहां आदम की संततिये-कबीलों का सामना दुष्ट-पार्लौकिक-प्राणियों से हुआ, वहाँ की सँस्कृति बड़ी ही अमानवीय व अजीबोगरीव संस्कृति प्रतीत होती हैं। यदि गौर से देखा जाये तो पता चलता है कि ये अधोलोक के नियंत्रक व नियामक अधिकारी हैं। इनका संबंध - *पश्चिम एशियाई सँस्कृति, कुछ करके पूर्वी एशियाई संस्कृति और उत्तर, मध्य व दक्षिण अमेरिकाई संस्कृति से है।
इसी प्रकार प्राचीनकाल में कुछ मनुष्य कबीले *भंवरलोक के संचालक अधिकारियों के संपर्क में आये और उन्हीं के द्वारा प्रदत्त संस्कृति का अनुसरण किया।
ठीक इसी क्रम में प्रचीनकाल में कुछ मानवीय कबीलों का सामना *स्वर्गलोक के संचालक अधिकारियों से हुआ। और फिर उन्होंने उन्हीं के द्वारा प्रदत्त संस्कृति का पालन किया। जिनमें है- आर्यजाति संस्कृति, विशेषकर भारत में।
परमेश्वर ने बहुदेवीय (देवी-देवता) आराधना क्यों होने दी?
परमेश्वर का मार्ग सरल व सीधा था। जो कि इंसानी संदेह, विवेक, तर्क व ज्ञान पर आधारित नहीं था। मनुष्य नंगा रहता था पर लजाता न था। फिर मनुष्य के हृदय में संदेह व ज्ञान के आने से मनुष्य लजाने लगा।>*Bible-Genesis-chptr-1. लज्जा, छिपना व छिपाना केवल पाप की पहचान होती है। जहाँ पाप है केवल वहीं लज्जा का भाव होता है। पशु-पक्षीयों को देखो, क्या वे अपनी नंगनता में लजाते हैं? नहीं न? इसलिये नहीं कि वे जानवर हैं, बल्कि इसीलिये नहीं लजाते क्योंकि उनमें पाप नहीं है।संपूर्ण मनुष्यजातिय इतिहास के गहरे अतीत में सभी मनुष्य जातियों का सामना इन बहुसंख्यिय देवी देवताओं से हुआ। इन सभी ने मनुष्य जातियों को इस सृष्टि का ज्ञान देना आरम्भ किया। इस सृष्टि की सामान्य बातों से लेकर गूढ़ से गूढ़तम बातों का ज्ञान इन्होनें मनुष्यों को देना आरम्भ किया।
इस सृष्टि पर परमेश्वर की संगती से बेसहारा मनुष्यों को इन्होनें सहारा दिया। इन्होनें मनुष्यों को अंधकार की शक्तियों से बचाए रखा। इस क्रम में इन्होने मनुष्यों को ऐसे-ऐसे ज्ञान देने आरम्भ किये जो कि मनुष्यों की भलाई ही के लिये थीं। सर्वोच्च देवताओं के द्वारा प्रदत्त मनुष्य कल्याण की प्रमुख पुस्तक *ऋग्वेद थी जो कि कालान्तर में चार भागों में विभाजित कर दी गई। सृष्टि ज्ञान की इन पुस्तकों के दिये जाने के पीछे का ध्येय यही था कि मनुष्य इस सृष्टि की विभिन्न कठिनाइयों का सामना कर सके और स्वयं को बुरी शक्तियों से दूर रख सके, जब तक की परमेश्वर उन्हे अपनी संगती में वापिस न ले ले।
फिर उसके हजारों वर्षों बाद *एकेश्वरवाद (परमेश्वर पर आधारित) के ज्ञान का स्पष्ट अवतरण (पवित्रशास्त्र के माध्यम से {बाईबल में केवल *यीशु मसीह के विचार और उपदेश ही}) होना इस ओर ईशारा करता है कि परमेश्वर पुन: मानवजाति को स्वयं की संगती में वापिस लेना चाहते हैं !
देवी देवता कहाँ चले गए ? |
देवी-देवता फिर से लौटने वाले हैं !
हमारे इस भौतिकलोक के संचालक आलौकिक-लोक के निवासी हैं। जलप्रलय से पूर्व-पूर्व तक ये देवी-देवता पृथ्वी पर मनुष्यों के साथ अस्थाई कालोनी बना कर रहते थे। विश्व की प्रत्येक सभ्यताओं में, चाहे यूनान, चीन, मध्य या दक्षिण अमेरिका या भारत की सभ्यता हो, हमने इनका मनुष्यों के एक साथ रहने की जानकारी पाई है।फिर सतयुग के अन्त में जब चारों ओर विनाश और तबाही का मंजर था उस समय परमेश्वर ने पृथ्वी पर जलप्रलय करके मनुष्यों और देवी-देवताओं की एक संगती को अलग-अलग कर दिया, अर्थात जलप्रलय से पूर्व ही समस्त देवी-देवता पृथ्वी पर अपनी-अपनी अस्थाई कालोनियों को छोड़ कर आलौकिक दुनियां में चले गये; और यदि अब भी उनके यहीं पर होने का विश्वास या पुष्टि होती है तो वह मात्र उनके प्रति विश्वास या प्रतिछायात्मक शक्ति हैं। जलप्रलय के बाद सभी देवी-देवता प्रत्यक्ष रूप से पृथ्वी को छोड़ कर अपने-अपने लोकों में जा चुके हैं, और ये सब परमेश्वर की इच्छा के अनुसार ही हुआ है।
अत: एकेश्वरवाद का धर्मशास्त्र यह कहता है कि वो वक्त अब शीघ्र आने वाला है जब ये सभी देवदूत सृष्टि चलाते हैं उस परमप्रधान परमेश्वर के साथ अंधकार की शक्तियों का समूल नाश करने के लिये इस पृथ्वी के मध्यआकाश में (*भंवरलोक में यानि कि अंतरिक्ष में) पुन: प्रकट होने वाले हैं। हाँ, वे सभी लौटने वाले हैं पर कुछ समय के लिये ही !
कृपया अन्य लेख पढ़ें :- *क्या Aliens होते हैं (पौराणिक ग्रंथों से प्रमाण)?
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धर्म और विज्ञान
Bahut achhi jaankaari din hai !
जवाब देंहटाएंDhanyawad ji !
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