*शिक्षा प्रणाली में सुधार कैसे ? Reform tips on education system in hindi*

शिक्षा क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता !

शिक्षा प्रणाली में सुधार कैसे?  Reform tips on education system in hindi      

इस धरा में अन्य प्राणियों से भिन्न मनुष्य एक सीखने व सिखाने वाला प्राणी है। मनुष्य की प्रगति की बुनियाद उसकी शिक्षा प्रणाली पर निर्भर करती है। वस्तुत: मनुष्य की शिक्षा तो जन्म लेने के बाद उसी के घर से शुरु हो जाती है। उसके माता व पिता उसके पहले अध्यापक होते हैं, फिर घर के अन्य सद्स्यगण। बाल्यावस्था में मनुष्य अधिकतर देखकर व सुनकर शिक्षा ग्रहण करता है। फिर एक वक्त आता है जब वह पढ़कर शिक्षा ग्रहण करता है।

पढ़कर शिक्षा ग्रहण करने की सही उम्र!

पढ़कर शिक्षा ग्रहण करने की सही उम्र मनुष्य की बाल्यावस्था के 8वें वर्ष में शुरु होनी चाहिये। इस उम्र से पूर्व मनुष्य के मस्तिष्क के खांचों को शब्दों के ढ़ेर से भरना उचित नहीं है।  यदि हम मनुष्य की अत्यन्त छोटी अवस्था में उसे पढ़ाना शुरु करेंगे तो इसके परिणामस्वरूप मनुष्य शिघ्रातिशीघ्र अपनी प्रौढ़ता को प्राप्त होना शुरु हो जायेगा, फिर संभवत: मनुष्य अपनी बाल्यावस्था को तथा उम्र की कोमलता व नैसर्गिकता को खोना शुरु कर देगा। यहाँ तक की उसकी औसतन आयु में भी घटोतरी होनी शुरु हो जायेगी। इसके अतिरिक्त मनुष्य के शारिरीक विकास में निर्बलता आनी शुरु हो जायेगी। मनुष्य मस्तिष्क से तो तीक्ष्ण बुद्धि का होगा परन्तु शरीर से दुर्बल हो जायेगा।

 यह एक मनोवैज्ञानिक आंकलन है जिस पर हमें गौर करना चाहिये!

इसलिये विभिन्न देशों की सरकारों को चाहिये कि बच्चों को स्कूल भेजने की सही उम्र 8वें वर्ष में होनी चाहिये।
 इस उम्र से पहले बच्चों को कुछ भी पढाया नहीं जाना चाहिये, केवल सिखाया जाना चाहिये।

बच्चों के 8वें वर्ष से पूर्व की शिक्षा उन्हें सुना कर व दिखा दिखा कर सिखाने की होनी चाहिये। और इस शिक्षा की शुरुवात बच्चों की उम्र के 5वें वर्ष में (5 वर्ष तक बच्चे का मस्तिष्क विकसित हो रहा होता है।) होनी चाहिये, इससे पूर्व बिल्कुल भी नहीं। बच्चों को 5 वर्ष तक पूर्णतः उसकी माता के सानिध्य की शिक्षा में ही रहने देना चाहिये।


 प्राथमिक शिक्षा व शिक्षकों की व्यवस्था !

 प्राथमिक शिक्षा के पहले 3 वर्ष (5 वर्ष से 8 वर्ष तक) मौखिक व दृश्यात्मक शिक्षा पर केंद्रित होना चाहिये।


  बच्चों के लिये प्राथमिक शिक्षा के विषय (8वें वर्ष से) शब्द ज्ञान के बाद अत्यन्त कोमल व नैसर्गिक होनी चाहिये। उनकी शिक्षा के विषय अत्यन्त जटिल नहीं होने चाहिये, जैसा की वर्तमान शिक्षा प्रणाली में होता है।
 गणित, IT, GK और विज्ञान की शिक्षा को सुगम्य बनाने हेतु हर देशों की सरकारों को कोई न कोई तकनीक (कला-Art) विकसित करना चाहिये जिससे की बच्चा उस ज्ञान को सरलता से आत्मसात कर सके।

  दूसरी बात, प्राथमिक शिक्षा के शिक्षक विशिष्ट शिक्षा में पढ़े-लिखे विद्वान ही होने चाहियें। जिन्होने विषयपरक शिक्षाओं के साथ-साथ मनुष्य की मनोवैज्ञानिक शिक्षा को भी प्राप्त किया हो। जिन्हे यह पता हो कि इंसानी बच्चों व उनके अविभावकों के साथ किस प्रकार से व्यवहार किया जाना चाहिये। बच्चों की मानसिक्ता को पढ़ने व समझने तथा उन्हें निखारने की विद्या में वे पूर्णतः शिक्षित होने चाहियें। उच्चदर्जे के मानवतावादी शिक्षित लोगों को ही प्राथमिक शिक्षा के शिक्षक नियुक्त किये जाने चाहिये और इन शिक्षकों को क्लासवन अधिकारी का दर्जा दिया जाना चाहिये तथा उनकी सेलरी भी क्लासवन अधिकारी के समान ही होनी चाहिये।
  माध्यमिक शिक्षा के दर्जे पर शिक्षकों का ओधा घटा देना चाहिये तथा सेलरी भी।
  उच्च व उच्चतम शिक्षकों का दर्जा कदापि क्लासवन नहीं होना चाहिये और उनकी सेलरी भी किसी क्लर्क की सेलरी के समान ही होनी चाहिये।
शिक्षा क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता !

 ये सब उल्टा परिवर्तन इसीलिये किया जाना चाहिये क्योंकि हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली में कोई दम नहीं है। यदि दम होता तो आज हमें अपने छोटे-छोटे बच्चों को स्कूलों से बाहर ट्यूशन पढ़वाने की आवश्यकता महसूस ही न होती। हमने छोटी सी उम्र में मासूम बच्चों पर भारी-भरकम किताबों का बोझ लाध दिया है, और ऊपर से स्कूलों में उनके निम्नदर्जे के शिक्षक (*इसीलिये शिक्षकों की शिक्षा भी सैद्धांतिक से अधिक व्यवहारिक शिक्षा होनी चाहिये।)।

बच्चों की माध्यमिक शिक्षा  

बच्चों की माध्यमिक शिक्षा में उन्हें उनकी संस्कृति, समाज व राजनीति की शिक्षा के साथ-साथ *सार्वभौमिक आध्यात्मिक शिक्षा भी दी जानी चाहिये। जिसका संबंध किसी धर्म, इतिहास व अतीतिय व्याख्याओं से न हो वरन पूर्णता मनुष्य की आत्मा से हो।
 यह *सार्वभौमिक आध्यात्म की शिक्षा प्रत्येक देशों को भारत देश की सँस्कृति से एडॉप्ट करनी चाहिये। केवल यही उपाय है बच्चों को एक बेहतरीन मनुष्य बनाने का। इसके साथ-साथ बच्चों की शिक्षाओं में योगासन (विशिष्ट शारीरिक कसरत), ध्यान व ज्ञान और योग की शिक्षा भी कम्पल्सरी होनी चाहिये, न की आप्श्नल।

बच्चों की उच्च व उच्चतर शिक्षा 

 बच्चों की उच्च व उच्चतर शिक्षा में केवल यही परिवर्तन होना चाहिये कि वह व्यवहारिक हो। अर्थात शिक्षा का 50% भाग सैद्धान्तिक शिक्षा का होना चाहिये तथा बाकि का 50% भाग व्यवहारिक शिक्षा का होना चाहिये। उच्चशिक्षाओं में प्रत्येक देशों की सरकारों को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिये की वहाँ पर व्यवहारिक शिक्षा का प्रबंध हो सके। इसके लिये उन्हें व्यवहारिक शिक्षा किस प्रकार दी जानी चाहिये इस हेतु कलाएँ (Art n technics) विकसित करनी चाहियें। जैसे, नाटयात्म्क तरीके से विद्द्यार्थीयों का उन उन विषयों पर रोल प्ले करना आदि-आदि।

  नौकरी के लिये भर्ती प्रणाली में सुधार! 

 भर्ती प्रणाली में भी सुधार की नितांत आवश्यकता है। क्योंकि खास करके भारत देश की भर्ती प्रणाली निम्न है। बच्चों को नौकरी पाने के लिये Objective n Subjective पेपरस में से होकर गुजरना पढ़ता है। परन्तु ये पेपरस भी पूर्णता उस नौकरी के क्षेत्र से संबंधित नहीं होता। भर्ती प्रणाली में होना यह चाहिये की जिस क्षेत्र की नौकरी है केवल उसी क्षेत्र से संबंधित ही पेपरस होने चाहियें- चाहे Objective हों या Subjective. जनरल विषय का पेपरस बहुत कम अंकों के साथ होना चाहिये।

 अत: यदि प्रत्येक देशों की सरकारें शिक्षा क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता  में इन उपरोक्त उपायों को व्यवहार में लायेंगी तो अवश्य ही मनुष्य का भविष्य और वर्तमान सुधार की ओर अग्रसर होना शुरु हो जायेगा, तथा सबसे बड़ा परिवर्तन यह होगा कि मनुष्य का इस धरा पर एक बेहतरीन पुनर्जन्म होगा !!!

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