प्रेरक कवितायें, यथार्थ से परिपूर्ण!
अनादि ब्रह्म बन कर!
आदि ने जन्म लिया धर्म बन कर
धर्म ने धरण लिया सम्प्रदाय बनकर,
सम्प्रदाय ने कर्म किया विवाद बन कर
विवाद ने अवलोकन किया विज्ञान बनकर,
विज्ञान ने परीक्षण किया विश्वास छलकर
विश्वास ने रुदन किया अहसास बनकर,
अहसास ने अनुभव किया इन्सान बनकर
इन्सान ने अर्पण किया विद्वान बनकर,
विद्वान ने दर्पण दिया भगवान बनकर
और भगवान ने तर्पण लिया अनादि ब्रह्म बनकर...!!!
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हे लेखक कुछ ऐसा लिख दे!
हे लेखक कुछ ऐसा लिख दे
जो पढ़ा ना हो किसी ने,
कवि सुना गया, दिखा रहा है रवि सब कुछ
ईर्षा-द्वेष, फूलना-फलना, मन को है बस अब कुण्ठित करना,
दिखा रहा है ये सब कुछ....मैं की की अकड़ को मैं के घमंड को और मैं के सताते हुये पहल को,
देखना और सुनना अब तेरा है काम नहीं
तुझे बस कुछ बातों को है कहना जो हैं तेरे बर्कों का गहना,
गहनों की इस चमक से तुझे है इक वाटिका बनाना
जिसमें टिके न वे सब कुछ
कवि सुना गया जो पुकार,
रवि दिखा रहा जो अन्धकार.........!!!
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*कवितायें*