मर्मस्पर्शी-कवितायें !
हे दोस्त जरा तू मेरी सुन!
हे दोस्त जरा तू मेरी सुन
जीवन आखिर क्या है इस पर मेरी धुन,
सगे-सम्बन्धी अपने-पराये जीवन के ये सभी पर्याये
इन पर सहज उतरना ही जीवन का प्रथम चरण
बाकि जो कुछ भी है वो जीवन का अभिकलन,
कुछ करना कुछ बनना जीवन का द्वित्तीय चरण
लालसा है जिस पर तेरी वही रहे परम,
फिर भी जीवन में कुछ और है करना
जिसके अस्तित्व की हो महिमा............
आखिर यही तो एक अद्वितीय है
जो जीवन का एक उद्देश्य है,
बने हैं जीव और वनस्पतियाँ समुंद्र से
तो क्यों न उसी में डूबा जाये...............
जीवन आखिर क्या है इसी को देखा जाये,
हे दोस्त जरा तू मेरी सुन जीवन आखिर क्या है............!
सगे-सम्बन्धी अपने-पराये जीवन के ये सभी पर्याये
इन पर सहज उतरना ही जीवन का प्रथम चरण
बाकि जो कुछ भी है वो जीवन का अभिकलन,
कुछ करना कुछ बनना जीवन का द्वित्तीय चरण
लालसा है जिस पर तेरी वही रहे परम,
फिर भी जीवन में कुछ और है करना
जिसके अस्तित्व की हो महिमा............
आखिर यही तो एक अद्वितीय है
जो जीवन का एक उद्देश्य है,
बने हैं जीव और वनस्पतियाँ समुंद्र से
तो क्यों न उसी में डूबा जाये...............
जीवन आखिर क्या है इसी को देखा जाये,
हे दोस्त जरा तू मेरी सुन जीवन आखिर क्या है............!
कवि पहचान से इक भगवान दे!
लड़ते-झगड़ते बनते-संवरते जीवन का यह खेल
इंसानों के बीच कवि हुआ मैं फैल, हाये कवि! समझ न पाया आखिर इन्सान ने है क्या चाहया,
इसको पाया उसको खोया यही है उनके जीवन का बोया,
मन करे निकल पडूँ मैं जीवन के इस अंजाम से
आखिर दुविधा में पड़ गया हूं अपने ही ईमान से,
कभी कहता है कवि, ईमान को मत पहचान दे
पर दिखा रहा जो रवि, सो पहचान से इक भगवान दे.....!!!
इंसानों के बीच कवि हुआ मैं फैल, हाये कवि! समझ न पाया आखिर इन्सान ने है क्या चाहया,
इसको पाया उसको खोया यही है उनके जीवन का बोया,
मन करे निकल पडूँ मैं जीवन के इस अंजाम से
आखिर दुविधा में पड़ गया हूं अपने ही ईमान से,
कभी कहता है कवि, ईमान को मत पहचान दे
पर दिखा रहा जो रवि, सो पहचान से इक भगवान दे.....!!!
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