*भयंकर आपदाओं और महामारियों का कारक कौन?*

भयंकर आपदाओं और महामारियों का कारक कौन?

  विज्ञान के अनुसार मनुष्य का अस्तित्व इस पृथ्वी पर 25 लाख वर्ष पूर्व से है। जब से मनुष्य अस्तित्व में आया है तभी से उसने बहुत बार अकाल, भूकम्प और महामारियों का सामना किया है। तो क्या मनुष्य से पूर्व अकाल और महामारियां होतीं नहीं थीं ? हां, अवश्य ही होती थीं। मनुष्य से पूर्व भी नाना-प्रकार के प्राणियों ने भी भयंकर से भयंकर अकाल, भूकम्प और महामारियों का सामना किया है। न केवल अकाल और महामारी बल्कि भयंकर आपदाओं (उल्कापिंडों की बोछरें) को भी सहा है। जिसमें डायनसोर जैसे प्राणियों का समूल नाश ही हो गया।

  खैर! यह तो विज्ञान का अवलोकन हुआ। चलिये अब विचारते हैं कि धर्म इस बारे में क्या कहते हैं :-
  आँकड़ों के अनुसार इस सम्पूर्ण मनुष्य समाज में सम्भवता 12-13 हजार धर्म हैं। अकाल, भूकम्प, महामारियों तथा भयंकर आपदाओं के विषय इन सभी की एक ही वाणी है। इन सभी का कहना है कि ये सब उस परम-ईश्वर के द्वारा ही किया जाता है। *खास करके दुनियां के दो प्रमुख धर्मों ने तो अपने धर्म-ग्रन्थों में यह स्पष्ट व्यक्त किया है कि यह सभी परेशानियां व पीड़ाएं उस खुदा या परमेश्वर की इच्छा से ही मानवता पर कहर ढ़ाती हैं।

  अब सोचने वाली बात तो यह है कि वो सृजनहार ईश्वर क्यों ऐसा करते हैं ? क्या इस तरीके से वो मानवता पर अपना रोष व्यक्त करते हैं !

  यदि ऐसा है तो हमने यह जाना है कि मानवता से पूर्व भी प्राणी थे। तो उन पर समय-समय पर उस ईश्वर का यह रोष क्योंकर व्यक्त हुआ जबकि वे तो कर्म के अधीन न थे ? क्योंकि उनमें (उन धर्मों के विचार से) तो इश्वरिये आत्मा नहीं है न !
 अब यदि सच में यह मानवता पर ईश्वर का कहर अथवा रोष है तो जानते हैं कि मनुष्य में भी इसका असर सर्वाधिक किस वर्ग पर होता है !............:-
   अकाल, भूकम्प हो या महामारी हमने अधिकत: मनुष्यों में निम्न-वर्ग तथा मध्य-वर्ग को ही तडपते और मरते हुये देखा है। जब कभी भी ऐसी आपदाएं आती हैं तो हमने उच्चवर्ग को धडाधड़ तडपते व मरते नहीं देखा। आँकड़ों के अनुसार भी सबसे अधिक पीड़ाओं में तडपते और मरते हमने निम्नवर्ग को ही देखा है।

  तो सवाल अब यह है कि क्या उस ईश्वर का क्रोध मुख्यत: निम्नवर्ग पर ही बरसता है जिसने कि सम्पूर्ण मानवता का भार सम्भाला है ? रही कर्म की बात। क्या उच्चवर्ग के कर्म निम्नवर्ग के मुकाबले उत्तम होते हैं ? हमने तो यही देखा है कि उच्चवर्ग के कर्म बड़े ही बड़े दर्जे के बेशर्म और बेरहम होते हैं। तो वह ईश्वर अपने इस दण्ड चक्र में क्योंकर उन्हें सुरक्षित रखता है ?

  ये अकाल, भूकम्प और महामारी एक सामुहिक विपदा हैं, जो दण्ड स्वरूप ईश्वर मनुष्यों को देते हैं। ईश्वर इसमें किसी के व्यक्तिगत कर्म को नहीं देखते हैं। जबकि इसकी भयानक्ता की चपेट में सभी धर्मों के लोग भी आ जाते हैं। चाहे कोई धर्म का ना मानने वाला भी हो। चाहे कोई ईश्वर का बन्दा हो या काफीर अथवा अन्यजाति। सभी इस आपदा में पिस कर रह जातें हैं।

  तो फिर भी सवाल यहीं पर शेष रह जाता है कि इन आपदाओं में वो परमेश्वर मानवता में भी भेदभाव क्यों करते हैं। समाज में उच्च-स्तर के व्यक्ति अधिकत: सुरक्षित क्यों रह जाते हैं ? क्या उस ईश्वर में इतनी भी शक्ति नहीं होती कि  इस वर्ग को भी अपने कोप (क्रोध) अथवा रोष में पीस कर रख दे? हमेशा से ऐसा ही क्यों होता आया है कि उच्चवर्ग तथा मध्यवर्ग अधिकत: सुरक्षित बच जाते हैं - भयंकर दुःख और पीढ़ाओं में और मृत्यु से भी। बेचारे निम्न-वर्ग के लोग जो हाथों से काम करते हैं। मेहनत और मजदूरी करते हैं केवल वे हीं उस परमेश्वर के भयंकर कोप का शिकार होते हैं।

 हाय ! यह कैसा क्रोध है उस ईश्वर का जो कि निर्बलों व असहायों पर ही अधिकतर बरसता है.....!!!! 

1 टिप्पणियाँ

और नया पुराने