*क्या राम ने शूद्र शम्बूक की हत्या की थी? (जानिये तर्कपूर्ण सच्चाई विस्तार से!)*

  

शम्बूक वध की सच्चाई !


क्या राम ने शूद्र शम्बूक की हत्या की थी? (जानिये तर्कपूर्ण सच्चाई विस्तार से!)

 आज के इस लेख में हम बाल्मीकि रामायण की कथा के उत्तरकाण्ड के संदर्भ में shambuk vadh in ramayan की वास्तविकता और उसकी प्रमाणिकता पर प्रकाश डालेंगे, और यह जानेंगे कि क्या वास्तव में राजा राम जी के द्वारा एक शूद्र जाति के तपस्वी व्यक्ति शम्बूक की हत्या की गई थी और वो भी केवल इस कारण से की शम्बूक एक शूद्र होते हुये तपस्या कर रहा था ?

 इसलिए हम कुछ तर्कपूर्ण बिन्दुओं पर विचार करेंगे कि क्या वाकेई में राम के द्वारा शम्बूक की हत्या की गई थी ?:-

  राम के द्वारा शम्बूक की हत्या का प्रसंग 

बाल्मीकि रामायण के उत्तरकाण्ड में एक कथा आती है कि 'एक शूद्र व्यक्ति शम्बूक के द्वारा वन में तपस्या करने के कारण एक ब्राह्मण व्यक्ति के बालक की अकाल मृत्यु हो गई थी।' 

 उस काल में यह माना जाता था कि किसी भी व्यक्ति की अकाल मृत्यु नहीं होती थी जबतक कि कोई व्यक्ति धर्मनियम (मनुसमृति के कानून) को न तोड़े। इस कारण ब्राह्मण अपने मृत बालक को लिए राजा राम के दरबार में आते हैं और कहते हैं कि 'हे राजा, तेरे राज्य में एक शूद्र व्यक्ति धर्मनियम को तोड़ कर तपस्या कर रहा है, जिसके कारण उसके द्वारा किये गये पापों का दण्ड मेरे बालक और मुझे प्राप्त हुआ। इसलिये आपको चाहिये की उस दुष्ट नीच पापी शम्बूक को मृत्यु दंड दें।' फिर राम जी तत्काल पुष्पक विमान पर बैठकर शैवल वन में शम्बूक की हत्या करने चले गये।

 1.संपूर्ण ब्राह्मण समाज को पाप का शाप क्यों नहीं लगा ?

लेकिन अब सवाल यह है कि शम्बूक के पाप कर्म का शाप केवल उस ब्राह्मण व्यक्ति को ही क्यों मिला, पूरे ब्राह्मण समाज को क्यों नहीं? जबकि धर्मनियम के अनुसार यह शाप तो पूरे ब्राह्मण समाज को मिलना चाहिये था?

2. रामायण के उत्तरकाण्ड में वर्णित शैवल पर्वत राम-राज्य में नहीं आता था।

बाल्मीकि रामायण के उत्तरकाण्ड में शैवल पर्वत का वर्णन आता है, जबकि शम्बूक कथा के समय शैवल पर्वत राम राज्य के अन्तर्गत नहीं आता था। 

 शैवल पर्वत तो दण्डकार्ण्य वन क्षेत्र में आता था। दण्डकार्ण्य वन क्षेत्र में अलग-अलग राज्य हुआ करते थे। तो धर्मनियम के अनुसार शाप तो उनमें से किसी एक राजा और उसके राज्य के वर्ण समाज को मिलना चाहिये था। किन्तु ऐसा नहीं हुआ, क्योंकि दण्डकार्ण्य वन क्षेत्रीय राज्य उस समय तक राम-राज्य के आधीन नहीं थे और उन पर कोई मनुस्मृति का कानून लागू भी नहीं था तो राम किस अधिकार से शम्बूक को मृत्यु की सजा देते?

3. शम्बूक वध की कहानी का वर्णन रामायण के उत्तरकाण्ड में मिलता है।  

जबकि उस समय तक राजा राम ने अश्वमेध यज्ञ भी नहीं किया था। अश्वमेध यज्ञ करने के पश्चात ही राजा राम ने विश्वविजय के संकल्प को लेकर बाद में दंडकार्ण्य वन क्षेत्रीय राज्यों को अपने अधीन किया था। तो इस तर्क के आधार पर भी कोई कारण नहीं बैठता की राम शम्बूक की हत्या करे!

4. रामायण के उत्तरकाण्ड में शम्बूक ऋषि की हत्या हेतू राम का पुष्पक विमान में प्रयाण का वर्णन।

 उत्तरकाण्ड में लिखा गया है कि राजा राम ने शम्बूक की हत्या करने के लिए शैवल पर्वत में जाने हेतू पुष्पक विमान में बैठकर प्रयाण किया था। जबकि रावण वध के तुरन्त पश्चात राजा राम जी ने रावण का सारा राज्य उनके छोटे भाई विभीषण को लौटा दिया था और इसी के साथ पुष्पक विमान भी रावण के बड़े भाई कुबेर को लौटा दिया था। तो शम्बूक के समय राम जी के पास कोई पुष्पक विमान था ही नहीं, तो वह कैसे उसमें बैठकर शम्बूक की हत्या करने के लिए शैवल पर्वत जाते? तो क्या राम जो एक सम्माननीय राजा थे वह ऐसे औछे कामों के लिए कुबेर जी से पुष्पक विमान hire करते?

5. अगर राजा राम ने शूद्र शम्बूक की हत्या केवल इसी आधार पर की कि वह एक शूद्र होते हुये तपस्या कर रहा है तो फिर उन्हें तो उससे पूर्व ही माता शबरी की हत्या कर देनी चाहिये थी, क्योंकि वह भी एक शूद्रजाति की महिला थी ? जबकि राम जी ने समय-समय पर शबरी को मात्ंग ऋषि के आश्रम में रहकर उनकी तपस्या के लिए उन्हे प्रोत्साहित किया। राम उन्हें स्ंदेश भेजा करते थे कि तपस्या अच्छे से हो रही है की नहीं, आप चेतना के किस स्तर तक पहुँच गई हो.......आदि-आदि। उन्होने तो यहाँ तक शूद्र स्त्री शबरी के जूठे बेर तक खा लिए थे।

 तो ऐसे में हम स्वयं सोचें कि वो राम जो एक शूद्र स्त्री शबरी को तपस्या के लिए प्रेरित करता है और यहाँ तक उसके जूठे बेर तक खा लेता है, और खेबट निशाद राज के साथ हृदय की गहराइयों से मित्रता रखता है, उसके वहाँ ठहरता है, खाता-पीता है, वो राम क्योंकर एक तपस्या करने वाले शूद्र शम्बुक की हत्या करेगा, यह बात समझ में नहीं आती?

6. हनुमान, सुग्रीब और जामबंत इत्यादि कौन थे?

 ये सब भी शूद्र जाति के समाज के ही लोग थे। पर राम जी तो इन्हीं के साथ रहा करते थे। इनके हाथ का खाना खाया-पीया करते थे। यहाँ तक की रामायण का युद्ध भी राम जी ने इन्हीं लोगों की सहायता से जीता था।

7. असुर, दानव और राक्षस जातियाँ कौन थीँ?

 असुर, दानव और राक्षस जातियाँ वास्तव में ब्राह्मण जाति की थीं। ये सभी कश्यप ऋषि की संताने थीं। 

रावण विश्रवा ऋषि की संतान था, परन्तु फिर भी राम ने उसका वध किया।

हरिण्याक्ष कश्यप ऋषि (ब्राह्मण) की संतान था, किन्तु भगवान ने उसका वध किया।

हरीण्यकश्यपु भी कश्यप ऋषि (ब्राह्मण) की संतान था किन्तु फिर भी भगवान ने उसकी भी हत्या की।

रामायण से पूर्व और रामायण के बाद महाभारत काल में भी भगवान ने दण्डस्वरूप जिन-जिन की भी हत्यायें कीं वे सभी अधिकांशतः ब्राह्मण जाति के ही थे या फिर क्षेत्रिय ही, किन्तु कोई भी शूद्र नहीं था ?

 भगवान ने केवल उन्हें ही दण्ड दिया, जिन्होने प्रजा को सताया। तो शम्बूक ने तो ऐसा कोई काम नहीं किया था। वह तो स्वर्ग की यात्रा के लिए तपस्या ही तो कर रहा था, तो क्योंकर राम उसकी हत्या करते?

बाल्मीकि रामायण में उत्तरकाण्ड की प्रमाणिकता!

 बाल्मीकि रामायण की रचना आज से तकरीबन 2500 से 3000 वर्ष पूर्व की है। जबकि रामायण की घटना अर्थात ज्योतिषविज्ञान की कालगणना के अनुसार भगवान राम जी का समय तकरीबन 7500 वर्षपूर्व का है।

 तो अब हम स्वयं सोचें कि उस काल में कथायें हों या पद, मौखिक रुप से ही पीढ़ी-दर-पीढ़ी संजोए रखे जाते थे। फिर उसके बाद रचनायें भोज पत्रों पर रची गईं थीं।

 तो मूल वास्तविक बाल्मीकि रामायण की कथा 7500 से 6000 या 5000 वर्ष पूर्व तक ही रही होगी। उसके बाद निश्चय ही उसमें बहुत सी मिलावटें हुई होंगी।

 फिर भी 2500 से 3000 वर्ष पूर्व की बाल्मीकि रामायण में उत्तरकाण्ड विद्यमान ही नहीं था। इसे तो बहुत बाद में आज से 250 से 400 साल पहले ही जोड़ा गया था।

साराँश 

 तो अब इन तर्कों के आधार पर हम स्वयं सोचें और समझें कि किसी न किसी वर्ग ने जातिवाद को बढ़ावा देने के लिए बाल्मीकि रामायण में उत्तरकाण्ड को जोड़ा और shambuk vadh in ramayan और सीता-अग्निपरीक्षा जैसी अमानवीय प्रसंग को जोड़ा और इन कथाओं के प्रचार को बरकरार रखा ताकि जातिवाद की खाई समाज में बनी रहे। 

 राम जैसे एक आदर्श व्यक्ति और आदर्श राजा की छवि को खराब करने की पूरी-पूरी कोशिश की गई, जिन्हें लोग भगवान की तरह पूजा करते हैं। जबकि राम के राज्य में मानव तो मानव, पशु और पक्षियों को भी बराबर का न्याय मिला करता था।

 इसीलिए ही तो भारतीय जनमानस सदियों से राम-राज्य के वापिस लौटने की कल्पना कर रहे हैं। 

और यह प्रतीक्षा केवल ब्राह्मण या क्षेत्रिय ही नहीं कर रहे बल्कि भारत के शूद्र भी प्रतिक्षा कर रहे हैं। 

निश्चय ही, शूद्रजाति के लोग राम-राज्य के वापिस लौट आने की प्रतिक्षा अधिक करते हैं, क्योंकि उन्हें और उनके शरीर के DNA की स्मृतियों को अच्छे से पता है कि राम एक कैसा उत्तम व्यक्ति था और वह एक कैसा उत्तम राजा था, जिसकी जितनी भी प्रसंशा की जाये उतना ही कम है !

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने