*चंवरवंशीय क्षेत्रियों से चमार-जाति का जन्म हुआ! (जानिये विस्तार से.)*

चमार जाति का इतिहास !


चंवरवंशीय क्षेत्रियों से चमार-जाति का जन्म हुआ! (जानिये विस्तार से.)

 आज के इस लेख में हम चमार जाति का इतिहास के बारे में जानेंगे। भारतीय हिन्दू समाज सदियों से जात-पात जैसी अमानवीय प्रथा की शिकार रही है। यह अमानवीय प्रथा विज्ञान और प्रौद्योगिकी की उन्नति के बावजूद भी उत्तरोत्तर बढ़ रही है। 

 भारतीय हिन्दू समाज आज भी 1300 से 1400 साल पहले की तरह जातिप्रथा जैसी कुप्रथा के कारण बँटा हुआ है। हम सभी यह जानते हैं कि भारतीय हिन्दू समाज चार-जातियों में बँटा हुआ था। तो फिर ऐसे में जिन्हें हम चमार जाति कहते हैं, जो शूद्रजाति की कटेगरी में आते हैं वो वास्तव में शूद्रजाति के लोग हैं ही नहीं। यह एक गहरा किस्सा है जिसके बारे में बहुत कम भारतीयोंं को मालूम है।

  इस लेख का उद्देश्य जातिवाद को बढ़ावा देना नहीं है अथवा एक जाति को दूसरी जाति के बनिस्बत श्रेष्ठ साबित करना नहीं है बल्कि उस जाति के सच्चे इतिहास को उजागर करना है जिसकी सच्चाई अतीत के पन्नों में खो चुकी है।

 चमार शब्द का प्रयोग सबसे पहले कब किया गया ?

चमार जाति  शब्द का प्रयोग सबसे पहले सिकंदर लोधी के द्वारा 16वीं शताब्दी में किया गया था, जिस समय भारत में तुर्की और अफगान के आक्रमणकारियों ने भारत में प्रवेश करना शुरु किया था।

 चमार वास्तव में क्षेत्रियवंश के लोग थे.

 उस समय पश्चिमी बंगाल में चंवरवंश का राज्य हुआ करता था। चंवर लोग इक्ष्वाकू व सूर्यवंशी क्षेत्रिय वंश से संबंध रखते थे। गौतमबुद्ध, चंद्रगुप्त और सम्राट अशोक भी इसी वंश से संबंध रखते थे। 

 राजा चंवरसेन के शासनकाल के दौरान यह चरमकार वंश काफी ऊंचाइयों में पहुँच चुका था। संत रविदास जी भी इसी चवरवंश के थे।

  चितौड़ के राजा राणासाँगा और उनकी पत्नी सन्त रविदास जी को बहुत मानते थे। उन्होने संत रविदास जी से चितौड़ में बतौर राज ऋषि के रुप में रहने के लिये आग्रह किया था, जिसे संत रविदास जी ने सहज ही स्वीकार कर लिया था। इस तरह वह चितौड़ के महल में रहने लगे। 

 उनके काव्यों और रचनाओं ने लोगों को बहुत प्रभावित करना शुरु किया था। जिसके कारण सनातन धर्म का सर्वत्र प्रसार होने लगा।

 संत रविदास जी द्वारा इस्लाम धर्म ग्रहण न करना।

 इसी समय दिल्ली में सिकंदर लोधी का शासन चल रहा था। वह एक कट्टर मुस्लिम राजा था। वह लोगों से जबरन इस्लाम धर्म ग्रहण करवाया करता था। 

 जब सिकन्दर लोधी ने संत रविदास जी के बारे में सुना कि उनकी प्रसिद्धी के कारण बहुत से लोग हिन्दू धर्म में दृढ़ हो रहे हैं और जो गैर हिन्दू हैं वे भी हिन्दू धर्म ग्रहण कर रहे हैं, तो उसने इस बात को इस्लाम धर्म के प्रचार के मार्ग में एक बहुत बड़ा काँटा समझा। संत रविदास जी के फॉलोवर और अधिक न बढ़ें, इसके लिए उसने संत रविदास जी के पास मुल्ला सदना फकीर को भेजा। जब मुल्ला सदना फकीर चितौड़ में रविदास जी के पास पहुंचे और उनसे मुलाकात करके उनसे इस्लाम कबूलने की बात कही, तो रविदास जी ने उसे कहा, 'तुम मुझ से शास्त्रार्थ करो। अगर मैं शास्त्रार्थ में हार गया तो मैं इस्लाम कबूल कर लूंगा, पर अगर तुम हार गये तो तुम्हें सनातन धर्म ग्रहण करना पड़ेगा।'

 मुल्ला सदना को खुद पर आत्मविश्वास था। उसने इस शर्त को मंजूर कर लिया। परन्तु उस शास्त्रार्थ में संत रविदास जी की जीत हुई, क्योंकि मुल्ला सदना फकीर रविदास जी के तर्क-वितर्क, उनके विवेक और शास्त्रज्ञान के सम्मुख टिक न सके। इसलिये उसने रविदास जी के अद्भुत ज्ञान से प्रभावित हो कर इस्लाम धर्म छोड़ कर स्वयं हिन्दू धर्म अपना लिया। वह संत रविदास जी के शिष्य बन गये और उसने अपना नाम बदल कर रामदास रख लिया। इस प्रकार रामदास रविदास जी के साथ मिलकर सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार में जुट गये।

 किन्तु जब सिकंदर लोधी को पता चला कि सदना फकीर ने स्वयं सनातन धर्म ग्रहण कर लिया है तो वह क्रोध से भर गया और उसने संतरविदास जी को बंदी बनाने का आदेश दे दिया। इस प्रकार रविदास जी को बंदी बनाकर कारागृह में डाल दिया गया, जहाँ उन्हें उनका अपमान करने के लिए चमड़े के जूते बनाने का काम दिया गया।

 अपने समय में सिकंदर लोधी ने पूरे हिन्दू समाज में जबरन इस्लाम कबूल करवाने का प्रयास किया था। इसी प्रयास में उसने संत रविदास जी की भी गिरिफ्तारी की थी। जिससे उस समय के चवरवंश के लोग और समस्त हिन्दू समाज के लोग तथा राजा-महाराजा भी सिकंदर लोधी के खिलाफ हो गये। उन्होने लोधी से प्रतिशोध में दिल्ली का घेरा लगाया। फिर इस विद्रोह को देखते हुये उसने संत रविदास जी को कारागृह से रिहा कर दिया। लेकिन 1520 ईसवी में संत रविदास जी का देहांत हो गया।  

चमार जाति का इतिहास !


 सिकंदर लोधी के द्वारा चवरवंश के लोगों को चमार जाति बनवाना।

 इस प्रकार एक बार फिर से सिकंदर लोधी के अत्याचार बढ़ने लगे। मगर चवरवंश के लोगों ने अत्याचार सहन करते हुये भी इस्लाम धर्म को ग्रहण करने से साफ मना कर दिया। इसलिये सिकंदर लोधी ने चवरवंश के सैंकड़ों-हजारों लोगों को बंदी बना दिया, और उन्हें चमड़े के जूते और चमड़े के दूसरे सामान बनाने के काम में लगा दिया।

 इन विदेशी आक्रमणकारियों के भारत आने से पहले पूरे भारतवर्ष में चमड़े व चमड़े से बनने वाली चीजों का काम नहीं होता था। लोग चमड़े को अशुद्ध मानते थे।

सिकंदर लोधी ने चमड़े का काम करने वाले उन क्षेत्रिय (चवरवंश) लोगों का अपमान करने के लिए उन्हें सबसे पहले चमार कहकर संबोधित किया।

 ये वो क्षेत्रिय लोग हैं जिन्होने जबरन इस्लाम धर्म कबूल करने की बजाये चमार कहलवाना मंजूर कर लिया। इस प्रकार तभी से भारत में चमड़े का काम करने वाले लोगों को चमार जाति से संबोधित करना शुरु कर दिया गया।

 हिंदुओं द्वारा चमारों का अपमान व उनसे भेदभाव करना।

हम चमार जाति का इतिहास की इस जानकारी में देखते हैं कि इस जाति के लोगों को सामाजिक व धार्मिक क्षेत्र में हिन्दू समाज में हर तरफा पाबंदियां थीं। उन्हें शिक्षा ग्रहण करने से लेकर धार्मिक आस्था पर भी कोई अधिकार नहीं था। उन्हें सार्वजनिक जलकुंडों को न छूना, मंदिरों में प्रवेश वर्जित तथा समाज के हर जाति से निकृष्ट और घृणित माना गया। जबकि यह वो जाति थी जिसने इस्लाम धर्म ग्रहण करने की बजाये हिन्दू धर्म में ही रहना उचित समझा था।

 दरअसल सिकंदर लोधी ने तो सिर्फ इस्लाम धर्म ग्रहण न करने की वजह से ही इस क्षेत्रिय वंश के लोगों का अपमान करने के लिए ही इन्हें चमार जाति कहकर स्ंबोधित किया था, परन्तु यथार्थ में इस चवरवंश के लोगों का वास्तविक अपमान तो स्वयं हिन्दू समाज के लोगों ने ही किया है।

 जहाँ उन्हें इस वीरतापूर्ण कर्म के लिए हिन्दूसमाज के द्वारा सम्मानित किया जाना चाहिये था वहाँ उन्होने ही उनका भारी अपमान किया। यह अपमान इस कदर था और अब भी है कि उन्हें हिन्दू समाज में सबसे नीच-कोटि का माना जाता है। उनके साथ अब भी भारी-भेदभाव हिन्दूसमाज के द्वारा किया जाता है, जो कि एक अमानवीय बात है !

 इस जाति के लोगों में एक अन्तिम महान व्यक्ति हुये थे - श्री बाबा भीम राव अंबेडकर जी। जिन्होने वर्तमान भारतीय लोकतांत्रिक शासन प्रणाली का संविधान लिखा। वह मध्यकालीन हिन्दू मनुवादियों के संविधान से अलग आधुनिक धर्मनिरपेक्ष संविधान के निर्माता या यूं कहें आधुनिक भारतीय समाज के जनक (ब्रह्मा जी) अथवा आधुनिक मनु महाराज जी हैं, जिनकी वजह से भारतीय समाज से जात-पात जैसे अमानवीय भेदभाव व ये तेरा धर्म और ये मेरा धर्म का भेदभाव कानूनी रुप से प्रतिबंधित हो गये हैं। अत: भारतीय इतिहास में इस जाति का योगदान अतुलनीय है !

 

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