*क्रिसमस के त्यौहार में Christmas tree क्यों सजाया जाता है ?*

 

क्रिसमस ट्री सजाने की शुरुआत कैसे हुई ?

क्रिसमस के त्यौहार में Christmas tree क्यों सजाया जाता है ?

 आप में से बहुत से लोगों के मन में यह ख्याल जरुर आता होगा कि क्रिसमस के त्यौहार में क्रिसमस ट्री क्यों सजाया जाता है ?

 इससे पहले कि हम यह जाने कि क्रिसमस ट्री सजाने की शुरुआत कैसे हुई, पहले हम यह बात जानेंगे कि क्रिसमस में कौन से पेड़ को सजाया जाता है ?

 *क्रिसमस में कौन-से पेड़ को सजाया जाता है ?

 क्रिसमस के पवित्र दिन क्रिसमस ट्री कौन से पेड़ से बनता है - लोग क्रिसमस ट्री के रूप में 'स्प्रूस' के पेड़ को सजाते हैं। इसके अलावा लोग 'फ़र अथवा डगलस फ़र' के पेड़ को भी सजाया करते हैं। ये सभी पेड़ कोनिफर यानी शंकुधारी पेड़ हैं, इनके फल शंकु के आकार के होते हैं, जैसे, चीड़ और देवदार के फल।

 स्प्रूस हो या फर, इनके पेड़ नीचे से चौड़े और ऊपर की ओर लगातार पतले होते जाते हैं। इसीलिये देखने में ये तिकोने लगते हैं। ये सभी पेड़ वास्तव में चीड़ परिवार के ही सदस्य हैं। लेकिन इनका वंश और जाति अलग-अलग है।

 भारत के उत्तर-पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में कश्मीर से उतराखंड तक स्प्रूस के सदाबहार पेड़ पाये जाते हैं। उतराखण्ड में इन्हें केथेला, मोरेंडा या काला चीलू कहा जाता है। कश्मीर, शिमला, डलहौजी और देहरादून में स्प्रूस के पेड़ों की शोभा देखते ही बनती है।

 *Christmas tree का इतिहास !

 क्रिसमस ट्री की कहानी यह है कि जब सातवीं सदी में इंग्लेंड के डेवोनशायर प्रान्त में क्रेडिटन का एक मठवासी अर्थात धार्मिक उपदेशक (Pastor) प्रभु यीशु मसीह का सुसमाचार प्रचार करने के लिये जर्मनी गया। वहाँ वह थुरिंजिया क्षेत्र में रहा। वह वहाँ के लोगों में त्रिएक-परमेश्वर (Trinity God) - पिता-पुत्र और पवित्र आत्मा की अवधारणा को समझाने के लिये 'फर' के तिकोने पेड़ का उदाहरण दिया करता था। तब लोगों ने 'फ़र' के तिकोने पेड़ को प्रभु का पवित्र पेड़ मानना शुरु कर किया। उससे पहले तक वे बाँझ यानी ओक के पेड़ों को पवित्र मानते थे।

यह मान्यता है कि पहली बार 1510 ईसवी में तालबिया में क्रिसमस ट्री को सजाया गया था। मार्टिन लूथर ने सोलहवीं सदी में अपने बच्चों को दिखाने के लिये क्रिसमस ट्री पर ममबत्तियाँ सजाइँ कि देखो, अन्धेरी रात में तारे इसी तरह टिमटिमाते हैं। फिर क्या था जर्मनी में क्रिसमस बाजार लगने लगे। उनमें क्रिसमस ट्री सजाने के लिये कागज के फूल, र्ंगीन तार, और तरह-तरह का सामान मिलने लगा। इससे अधिक लोग क्रिसमस ट्री को 'अदन की वाटिका का पवित्र पेड़' यानि कि 'Tree of Paradise' भी मानने लगे।

 फिर 1610 ईसवी में चांदी की चमकीली पन्नी का आविष्कार हुआ और क्रिसमस ट्री सजाये जाने लगे। तीन साढ़े तीन सौ साल तक चांदी की कीमती पन्नी से ही क्रिसमस ट्री चमकते रहे।

जियोर्जियाई राजाओं के साथ क्रिसमस ट्री जर्मनी से इंग्लेंड पहुँचा। इंग्लेंड में रहने वाले जर्मन व्यापारी क्रिसमस के त्यौहार पर अपने कालोनियों में क्रिसमस ट्री सजाने लगे। हालाँकि ब्रितानी लोगों को जर्मन राजा पसंद नहीं थे, फिर भी लोगों की देखा-देखी ब्रितानियों ने भी क्रिसमस ट्री की शौकियाना रिवाज को अपनाना शुरु कर दिया।

 अब यह रिवाज धीरे-धीरे इंग्लेंड से अमेरिका तक लोकप्रिय हो गया। महीलायें बड़ी मेहनत से क्रिसमस ट्री सजाने लगीं, उसमें नन्हीं टोकरियाँ लटका कर, उनमें मीठे बादाम रख देतीं, पेड़ की चोटी पर देवदूत सजातीं। इस तरह पेड़ की सजावट बढ़ती गई।

 क्रिसमस ट्री की सजावट का प्रचलन जब बढ़ता चला गया तो अधिकाधिक लाखों फ़र के पेड़ों के सर कलम हो जाते, क्योंकि फ़र के ऊपरी हिस्से को काट कर लोग क्रिसमस ट्री बना लेते। इस तरह लाखों पेड़ों की बढ़वार रुक जाती। इसीलिये सर्वप्रथम जर्मनी में फ़र के पेड़ों के सर कलम पर रोक लगा दी गई। उसके बाद अन्य देशों ने भी इस पर रोक लगा दी।

 फर के पेड़ों की जगह अब हँस के पंखों से बने नकली क्रिसमस ट्री बनाये जाने लगे।

क्रिसमस ट्री सजाने की शुरुआत कैसे हुई ?

 पहले लोग क्रिसमस के वक्त क्रिसमस ट्री को सामुहिक रूप से सजाया करते थे, मगर 1747 ईसवी के बाद अमेरिका के पेन्सिलवेनियां में क्रिसमस ट्री अब लोगों के घर के भीतर पहुँच गया। अब घरों में बड़े-बड़े फ़र के पेड़ सजाये जाने लगे। जिस अमीर का जितना बड़ा घर, उसमें उतना ही बड़ा फ़र ! सजा-धजा चमकता फ़र !!

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