*क्या वाक़ेई सनातन धर्म विश्व का प्राचीन धर्म है?*

 

सनातन धर्म क्या है ?

 क्या वाक़ेई सनातन धर्म विश्व का प्राचीन धर्म है? 

  हममें से अक्सर हर व्यक्ति यह जाने की इच्छा रखता है कि सनातन धर्म कितना पुराना है ? इस दशक के हिन्दुवादी लोग अपने धर्म का बखान करने के लिये यह पुरजोर प्रयत्न करते हैं कि किस तरह यह तथ्य स्थापित किया जाये कि हिन्दुवादियों की ब्राहमण संस्कृति ही विश्व की सबसे प्राचीन, और खास करके भारत की एक प्राचीन सँस्कृति है। वे इस ब्राह्मण संस्कृति को सनातन धर्म के नाम से संबोधित करते हैं, जबकि वेदों, उपनिषदों और पुराणों तक में 'सनातन धर्म' नाम का कोई शब्द तक नहीं पाया जाता है। 

 जिसे ये सनातन धर्म कहते हैं वह इनकी मान्यता के अनुसार संपूर्ण विश्व का अतिप्राचीन धर्म है, जिसकी स्थापना किसी भी प्रवर्तक ने नहीं की।

 तो आईये, इस संदर्भ में इस सच्चाई को जानते हैं कि क्या वाकेई में यह सनातन धर्म, जिसे हिन्दुधर्म भी बोला जाता है, क्या संपूर्ण विश्व का प्राचीन धर्म था ? :-

 *सनातन धर्म क्या है ?

 हिन्दु शब्द का अर्थ :- हिन्दु एक भौगोलिक स्थान पर रह रहे लोगों को दर्शाता है। यह शब्द मध्यकाल में अरबी व्यापारियों द्वारा भारतीय लोगों के लिये इस्तेमाल किया गया था। हिन्दु शब्द सिन्धु शब्द से निकला है - *सप्तसिन्धु प्रदेश में रह रहे लोग। अरबी भाषा में 'स' को 'ह' बोला जाता है, इसलिये सिन्धु शब्द का हिन्दु हो गया। तो इस लिहाज से भारत में रह रहे सभी भारतीय हिन्दु ही कहलाए जाते हैं - चाहे वे मुस्लिम हों, ईसाई हों, बौद्ध हों, जैन हों या सिख ही, सभी हिन्दु हैं।

 सनातनधर्म :- देखिये, सनातन धर्म वास्तव में कोई धर्म का नाम नहीं है बल्कि यह एक विशेषण है, संज्ञा नहीं है। 

 संज्ञा का अर्थ होता है - किसी वस्तु, व्यक्ति या स्थान का नाम।

 विशेषण होता है - उस वस्तु, व्यक्ति या स्थान की विशेषता (खासियत या गुण)।

तो सनातन शब्द जो है, यह कोई संज्ञा नहीं है बल्कि यह एक विशेषता है, कोई नाम नहीं।

 तो जाहिर सी बात है यह एक आर्य धर्म है, जिसका नाम तथाकथित सनातनियों को पता नहीं है। चूँकि इस धर्म की पुस्तकों को लिखने का संपूर्ण श्रेय उनके ब्राह्मण वर्ग के लोगों को जाता है, इस लिहाज से हम इसे 'ब्राह्मण धर्म' पुकार सकते हैं, क्योंकि ब्राह्मण एक विशेषण होते हुये भी लोगों के समूह को दर्शाता है, अत: यह ब्राह्मण एक समुदायवाचक संज्ञा है।

 *भारत की सबसे प्राचीन सभ्यता सिन्धुघाटी की सभ्यता है!

  पुरातात्विक वैज्ञानिक्ता की प्रमाणिकता के आधार पर भारत की सबसे प्राचीन सभ्यता सिन्धुघाटी की सभ्यता है। वेदिक (सनातन अथवा हिन्दु) सभ्यता के हमें अनगिनत लिखित प्रमाण मिले हैं जो कि भोजपत्रों में अधिकतर लिखें गये हैं, जबकि सिंधुसभ्यता एक आद्यऐतिहासिक सभ्यता है, जिसके प्रमाण हमें भोज पत्रों पर लिखित नहीं मिलते।

  इस सभ्यता में लेखन कला अपनी प्रारंभिक अवस्था में थी, अर्थात चित्रात्मक शैली में और वह भी पत्थरों और मोहरों इत्यादि पर ही लिखे गये हैं। उस वक्त की कोई भी लिखित पुस्तकें हमें प्राप्त नहीं हुईं हैं।

  सिन्धुसभ्यता में पत्थरों और मोहरों पर जो उत्कीर्ण लेख मिले हैं उनकी प्राचीनता लगभग 2500 से 3500 ईसापूर्व पुरानी है, जबकि वेदिक सभ्यता के जो लेख मिले हैं उनकी प्राचीनता लगभग 1500 से 900 ईसा पूर्व ही पुरानी है।

 *सनातनी (आर्य लोग) लोग भारत में अल्पसंख्यक लोग थे!

   सिन्धुघाटी की सभ्यता के बाद भारत के जितने भी बड़े-बड़े साम्राज्य हुये , वे सभी असनातनी (गैर हिन्दु) सभ्यता के लोग थे, सिवाए गुप्त साम्राज्य को छोड़ के।

  हर्यक वंश, नंद वंश, मौर्य वंश, कुषाण वंश, शक वंश इत्यादि-इत्यादि ये सभी गैर आर्यजाति वंश के लोग थे।

  सिन्धु सभ्यता के बाद इन सभी समयों में भारत की जनसामान्य भाषा संस्कृत भाषा नहीं थी, और न ही वह एक राजकीय भाषा ही थी। उस काल में लोगों की भाषा प्राकृत भाषा थी और राजकीय लिपि पाली भाषा की लिपि थी।

  पर्याप्त स्त्रोतों के आधार से इन भाषाओं और लिपियों के अनुसार उस काल में लोगों का धर्म सनातन धर्म (ब्राह्मण धर्म) नहीं था। लोग ब्रह्मा-विष्णु-महेश की पूजा नहीं करते थे और न ही अन्य ब्राह्मनिक देवताओं की पूजा ही। उस काल में लोग सिन्धुघाटी सभ्यता के देवीय शक्तियों की आराधना करते थे।

 लेकिन मौर्य और हर्यक वंश से पूर्व ही भारत में बौद्ध धर्म संपूर्ण भारत का एकमात्र व्यापक धर्म हो गया था। कोई मूर्ति पूजा नहीं होती थी। किसी ईश्वर की पूजा नहीं होती थी, केवल जीने के ढ़ंग पर विचार किया जाता था।

  उस काल में कहीं भी वेदिक धर्म के देवी-देवताओं की पूजा के प्रमाण नहीं मिलते, और न ही लोगों को वेद, उपनिषद, पुराण और महाकाव्यों की जानकारी ही थी। यदि उस काल में भगवतगीता लिखी गई होती, तो, गौतम बुद्ध का बुद्ध धर्म उत्पन्न ही न होता !

  उस वक्त आर्यजाति के लोग भारत में रह रही एक विदेशी जाति थी और इनका ब्राह्मण धर्म एक प्रचारक धर्म नहीं था।

 *सर्वप्रथम कुषाण साम्राज्य ने मूर्तिपूजा को स्वीकारा !

  यूनानियों के प्रभाव में आकर कुषाणवंश ने जो कि गैर आर्यजाति कौम थी, ने मूर्तीपूजा का प्रचलन किया, जब बौद्ध भिक्षुओं ने तंत्रसाधना में 'ध्यानमार्ग' को मजबूत करने के लिये मूर्तियों का सहारा लिया।

  पूरे भारतवर्ष में बौद्ध भिक्षुओं की ही मूर्तियां प्रचलित हुईं, प्रमुखतः गौतम बुद्ध की - 'अवलोकितेश्वर'।

 तब भी उस काल में सनातन धर्म (ब्राह्मण धर्म) का एक भी प्रमाण हमें मूर्तियों के रूप में नहीं मिलता और न ही ग्रंथों के रूप में ही।

 *गुप्तवंश ने ब्राह्मण धर्म (सनातन धर्म) की स्थापना की!

  फिर धीरे-धीरे जब ये अल्पसंख्यक आर्य लोग जो उत्तरी भारतभर में बिखरे हुये थे, श्रीगुप्त और चंद्रगुप्त प्रथम के नेतृत्व में एक हुये, तो उन्होने संपूर्ण उत्तरी भारत में आर्य सभ्यता की नींव डाली। चूँकि उनका धर्म एक प्रचारक धर्म नहीं था, तो इसलिए उन्होने(ब्राह्मणों ने) बौद्ध धर्म से प्रतिस्पर्धा करते हुये बुद्ध की प्रतिमाओं को अपने देवताओं की मूर्तियों में ढाल दिया। अब बुद्ध की अवलोकितेश्वर मूर्ति ब्रह्मा-विष्णु-महेश की संयुक्त मूर्ति में परिवर्तित कर दी गई।

 अधिकाँश सनातन धर्म  के Scriptures गुप्तवंश में ही लिखे गये थे। पूरे भारतवर्ष में इतिहास में पहली बार संस्कृत भाषा एक राजकीय भाषा बनी। परन्तु फिर भी जनता की आम भाषा 'प्राकृत' भाषा ही थी। तो इससे तो यही सिद्ध होता है कि यहाँ के बहुस्ंख्यक लोग भारत के प्राचीन लोग ही थे, वे गैर आर्यजाति (असनातनी) लोग ही थे।

 सनातन धर्म कितना पुराना है ?, तो इसके प्रतिउत्तर में यदि सनातन धर्म संपूर्ण विश्व का प्राचीन धर्म होता तो इसके प्रमाण हमें संपूर्ण विश्व की विभिन्न सभ्यताओं में से मिल जाते। जबकि वहाँ हिन्दु देवी-देवताओं के बारे में लोगों को कोई ज्ञान नहीं, उन्हें तो उनके नाम तक नहीं पता ! 

 अत: सनातन शब्द किसी धर्म का नाम नहीं है, न ही यह भारत का प्राचीन धर्म है, और न ही संपूर्ण विश्व का प्राचीन धर्म ही !

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