*क्या धर्म बदलने पर आरक्षण नहीं मिलता?*

 

क्या धर्म परिवर्तन पर आरक्षण मिलता है ?

 क्या धर्म बदलने पर आरक्षण नहीं मिलता?

 स्वतंत्र भारत के लिये संविधान निर्माताओं ने जो संविधान तैयार किया है उसमें हिन्दु-जातिव्यवस्था पर आधारित आरक्षण की व्यवस्था की गई है। आरक्षण की इस व्यवस्था के अनुसार कोई भी व्यक्ति जो हिन्दुधर्म की जातिव्यवस्था से संबंधित है उसे आरक्षण की सुविधा दी जायेगी। इसके अलावा उसे अन्य प्रकार की सुविधायें एवं संरक्षण प्रदान किया जायेगा। वर्तमान में इस संदर्भ में एक बुनियादी सवाल यह है कि अगर कोई बौद्ध, ईसाई या मुसलमान बन जाए तो क्या  Reservation  मिलता है ?

 लेकिन उस वक्त हिन्दु धर्म की जाति-व्यवस्था से दुखी होकर बहुत से लोग हिन्दु धर्म को छोड़ कर अन्य धर्मों को अपनाने लगे। फिर.....................

 *1950 ईसवी में तत्कालिन राष्ट्रपति द्वारा जातिगत आरक्षण पर गजट नोटिफिकेशन जारी किया गया !

  जिसके अनुसार, 'अगर कोई भी हिन्दु व्यक्ति अपने हिन्दु धर्म को छोड़कर किसी दूसरे धर्म में धर्मपरिवर्तन करता है तो उसे तमाम आरक्षण की सुविधाओं से वंचित कर दिया जायेगा। मतलब धर्मपरिवर्तन करने पर जातिगत आरक्षण की सुविधा नहीं दी जायेगी !'

 *फिर 1956 ईसवी में हिन्दु धर्म छोड़ सिक्ख धर्म में परिवर्तन होने वालों को आरक्षण की सुविधा दी गई !

 उस वक्त हिन्दु धर्म छोड़ जो लोग सिक्ख धर्म में धर्म परिवर्तन किये थे उन्हें सिक्ख धर्म अपनाने पर भी जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा। मतलब सिक्ख धर्म अपनाने के बाद भी उन्हें सिक्ख समुदाय में एक नीच समुदाय होने का दर्जा मिला। जिसके चलते Converted सिक्ख समुदाय ने संविधान में Amendment की जोरदार गुजारिश की। जिसके चलते 1956 ईसवी में सिक्ख धर्म के ऐसे सिक्ख समुदायों को संविधान द्वारा जातिगत आरक्षण की सुविधा प्रदान की गई।

 *बौद्ध धर्म के अनुयाइयों को भी जातिगत आरक्षण की सुविधा प्रदान की गई !

 जब संविधान निर्माता डा.भीमराव अंबेडकर ने अपने लाखों अनुयाइयों के साथ हिन्दु धर्म को छोड़कर बौद्धधर्म को अपनाया तो भी जातिगत भेदभाव की हालतों में कोई बदलाव नहीं आया। बौद्धधर्म जो की हिन्दुधर्म के सर्वदा विपरीत धर्म है उसके मानने वालों ने भी सदियों से कहीं न कहीं जातिगत भेदभाव की भावना को अपना लिया था जिसके नतीजेतन बौद्धधर्म में भी हिन्दु जातिगत भेदभाव की भावना कार्य कर रही थी। फिर हुआ यह कि समानता का अधिकार पाने की लालसा में धर्मपरिवर्तित बौद्धों ने संविधान में संशोधन की अपील की। जिसके चलते 1990 ईसवी में संविधान में संशोधन कर यह व्यवस्था की गई की हिन्दुधर्म छोड़ कर बौद्ध बने लोगों को जातिगत आरक्षण की सुविधा प्रदान की जायेगी, अर्थात उन्हें आरक्षण से संबंधित तमाम सुविधायें व संरक्षण प्रदान किये जायेंगे।

 *तो क्या ईसाई और मुसलमान बने हिन्दुओं को जातिगत आरक्षण की सुविधा दी गई है ?

 देखिये, सिक्ख हो या बौद्ध दोनों ही धर्मों की उत्पत्ति किसी न किसी समय में हिन्दु धर्म ही से हुई मानी जाती है, और ये दोनों ही धर्मों की पैदाईश भी भारतीय संस्कृति ही से है, तो जाहिर-सी बात है हिन्दु धर्म की जातिगत भेदभाव की व्यवस्था की भावना कहीं न कहीं किसी न किसी तरीके से इन दोनों धर्मों में भी घर कर जाये। 

 इसीलिये संविधान संशोधन-कर्ताओं ने केवल इन्हीं दो धर्मों के लोगों को जातिगत आरक्षण की सुविधायें प्रदान कीं।

 ईसाइयत और इस्लाम दोनों ही धर्म विदेशी धर्म हैं और भारत से दूर और अलग संस्कृतियों की पैदाईश है। तो ऐसे में जो हिन्दु अपना धर्मपरिवर्तन करके ईसाई या मुस्लिम बनता है उसे उन समुदायों में हिन्दुधर्म से उपजी जातिगत भेदभाव की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है। क्योंकि इन दोनों ही धर्म समुदायों में समानता और एकता की भावना होती है।

 उपरोक्त तथ्य को आधार मानकर हिन्दुधर्म को छोड़कर ईसाई या मुसलिम धर्म अपनाने वालों को जातिगत आरक्षण की सुविधाओं से वंचित कर दिया गया है। मतलब जो भी हिन्दु व्यक्ति हिन्दु धर्म को छोड़ कर ईसाई या मुसलमान बनता है उसे जातिगत आरक्षण से संब्ंधित तमाम सुविधाओं एवं संरक्षण से वंचित कर दिया जायेगा। इस समय सन 2022 ईसवी तक इन दोनों धर्मों में परिवर्तित हिन्दूओं को जातिगत आरक्षण की सुविधायें नहीं दी जातीं।

  *जातिगत आरक्षण से संबंधित अपवाद !

  परन्तु फिर भी यह एक विवादास्पद विषय है, क्योंकि भारत-भूमी से संबंधित प्रत्येक हिन्दु व्यक्ति जातिगत भेदभाव की भावना से बड़े गहरे में ओत-प्रोत होता है। यह एक मिथ्या अह्ंकार उनके अंतस में चढ़ा हुआ रहता है, जिसे मिटा पाना बड़ा ही दुष्तर है।

 मुसलमानों में भी ऐसे बहुत से समुदाय हैं जो हिन्दूओं से मुस्लिम बने हैं उन्हें भी जातिगत भेदभाव की नीच भावनाओं का सामना करना पड़ता है। ठीक उसी प्रकार ईसाइयों में भी ऐसे बहुत से समुदाय हैं जहाँ Converted नीच लोगों से भेदभाव किये जाते हैं। 

 अब ऐसे में प्रश्न यह है कि क्यों संविधान संशोधन-कर्ताओं ने अब तक इन दो धर्मों के converted लोगों को जातिगत आरक्षण की सुविधाओं से वंचित रखा है ? 

 सरकार को चाहिये कि जल्द से जल्द इन दोनों ही धर्मों के लोगों को भी जातिगत आरक्षण की सुविधायें प्रदान की जायें, क्योंकि हिन्दुधर्म जो मूलतः जातिगतव्यवस्था पर आधारित है उसकी ये नीच भावनायें बड़ी ही तीव्रता से अपनी जड़ें किसी भी कौम, समुदाय या धर्म में फैला देती हैं जिसका ईलाज कर पाना असंभव हो जाता है, जब तक की स्वयं हिन्दु लोग जो सुवर्ण जाति के हैं इस व्यवस्था का ह्रदय से परित्याग नहीं कर देते !

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