*क्या तारे भी मरते हैं ? (जाने, तारों की मृत्यु के चरण!)*

 

  तारों की मृत्यु कैसे होती है ?

क्या तारे भी मरते हैं ? (जाने, तारों की मृत्यु के चरण!)

हमने पिछ्ले लेख में तारे के जन्म के किस्से का बयां किया था, लेकिन अब हम इस लेख में तारों की मृत्यु कैसे होती है ?, यह जानेंगे!

 तारे के जीवन के अन्तिम चरण !

 जैसे-जैसे तारे के अंदरूनी हिस्से में संलयन (Fusion) अभिक्रियाएँ (Process) होती जाती हैं उसकी हाइड्रोजन हिलियम में परिवर्तित होती जाती हैं। अत: कुछ समय के बाद तारे के क्रोड (मध्य हिस्से में - Central part) में सिर्फ हिलियम शेष रह जायेगी तथा संलयन अभिक्रियाएँ रूक जायेंगी।

 [संलयन :- किन्ही दो नाभिकों (Neucleus) का परस्पर जुड़ कर किसी तीसरे नाभिक का निर्माण करने की प्रक्रिया को संलयन कहते हैं।]

[संपीड़न :- Compression, संपीड़ित :- Compressed]

 इससे क्रोड में दाब (Pressure) कम हो जायेगा और तारा फिर खुद के गुरुत्वाकर्षण (Gravity) के कारण सिकुड़ने लगेगा।

 लेकिन इस अभिक्रिया में बाह्य कवच (आवरण - Shell) में हाइड्रोजन का संलयन (Fusion) होता रहेगा और ऊर्जा विमोचित (Release) होती रहेगी।

 इस कारण कवच का आकार बढ़ने लगेगा और उसकी सतह का क्षेत्र बढ़ने लगेगा। जिससे विकरित (निकलने वाली) उर्जा की तीव्रता घट जायेगी। 

इस अवस्था में तारा लाल दानव चरण (Red giant phase) में प्रवेश करता है। अब इसका रंग बदल जायेगा और यह लाल दिखाई देगा। *तारे कैसे मरते हैं ?

 अब से लगभग 5000 अरब वर्ष के बाद हमारे सूर्य की अंतिम अवस्था में भी ऐसा ही होगा। प्रसरित (फैलता हुआ) होता हुआ इसका कवच बुध, शुक्र तथा यहाँ तक कि पृथ्वी को भी निगल लेगा। 

 लाल दानव चरण में पहुंचने के बाद तारे का भविष्य इसके प्रारंभिक द्रव्यमान (Mass) पर निर्भर करता है। अगर किसी तारे का द्रव्यमान हमारे सूर्य के द्रव्यमान के बराबर हो तो उसका कवच प्रसरित (फैलता) होकर अन्ततः लुप्त हो जायेगा। बचा हुआ क्रोड धीरे-धीरे संकुचित (दब कर छोटा होना) होकर अत्यधिक घनत्व के द्रव्य (Matter)के गोले के रूप में बचा रहेगा।

 इसके परिणामस्वरूप तारे के अंदरूनी हिस्से का ताप अत्यधिक बढ़ जायेगा। जिससे हिलियम के नाभिक (Nucleus) संलयित होकर कार्बन जैसे तत्वों में उसी प्रकार परिवर्तित होने लगेंगे जिस प्रकार हाइड्रोजन के संलयन से हिलियम बनी थी।

 हिलियम के संलयन के परिणामस्वरूप विमोचित ऊर्जा (Released energy) के कारण यह क्रोड किसी श्वेत वामन (White dwarf) के समान दीप्त (प्रजवलित) हो जायेगा। यह तब तक दीप्त रहेगा जब तक इसकी समस्त हिलियम उच्च द्रव्यमान के नाभिकों में परिवर्तित नहीं हो जाती। इसके बाद श्वेत वामन घने दृव्य के टुकड़े के रूप में लुप्त हो जायेगा।

 श्वेत वामन तारे के अंदरूनी हिस्से में द्रव्य अत्यधिक संपीड़ित होता है। किसी श्वेत वामन तारे के 1 घन सेंटिमीटर आयतन में 10,000 किलोग्राम तक द्रव्य संपीड़ित हो सकता है। सायरस नामक तारे के निकट एक ऐसे ही श्वेत वामन तारे की खोज हुई थी।

तारों की मृत्यु कैसे होती है ?

सुपरनोवा विस्फोट अथवा अधीनव तारा!

 इसके विपरीत अगर सूर्य की तुलना में तारे का द्रव्यमान (Mass) बहुत ज्यादा हो तो उसका अंत अत्यधिक रोचक हो सकता है, लाल दानव चरण के दौरान बना हिलियम का क्रोड  सिकुड़ता चला जाता है जिससे ताप उच्च से और उच्च की ओर बढ़ता चला जाता है।

 सिकुड़ने के दौरान विमोचित (Released) ऊर्जा के कारण बाह्य कवच विस्फोट के साथ ध्वंस (blast) हो जाती है। इस विस्फोट के साथ अत्यन्त दीप्त-दमक उत्पन्न होती है। आवरण का यह विस्फोट इतना शक्तिशाली हो सकता है कि इसमें एक सेकंड में लगभग उतनी ही ऊर्जा विमोचित हो सकती है जितनी सूर्य लगभग एक सौ वर्ष में विमोचित करता है। इसके कारण आकाश बहुत दिनों तक जगमगा उठता है। ऐसे विस्फोटक तारे को ही अधिनवतारा या सुपरनोवा (Supernova) कहते हैं।

 किसी तारे की मृत्यु से नये तारे का जन्म होता है !

 सुपरनोवा विस्फोट में गैसों के बादल अंतरिक्ष में विमोचित हो जाते हैं। ये गैसें नये तारे के निर्माण हेतु कच्चे पदार्थ प्रदान करती हैं।

 सुपरनोवा विस्फोट के बाद सिर्फ क्रोड बचा रहता है जो निरंतर सिकुड़ता चला जाता है। विशाल गुरुत्वाकर्षण बल क्रोड को संपीड़ित कर उसके पदार्थ का घनत्व असीमित परिमाण में बढ़ा देता है। अत्यधिक संघनित द्रव्य का यह पिंड न्यूट्रॉन तारा (Neutran star) कहलाता है।

 न्यूट्रॉन तारे का घनत्व एक अरब टन प्रति घन सेंटिमीटर या अधिक हो सकता है। प्रचकण (spin) करता हुआ न्यूट्रॉन तारा रेडियो तरंगें उत्पन्न करता है और इसको पल्सार (pulsar) कहते हैं।

 हमारी आकाशगंगा के अरबों तारों *तारों की मृत्यु कैसे होती है ? में से अभी तक केवल छ: सुपरनोवा विस्फोट रिकार्ड किये गये हैं। पहले दो के रिकार्ड प्राचीन लेखन में मिलते हैं। जिनके अनुसार ये दो विस्फोट 1006 ईसवी तथा 1054 ईसवी में हुये थे। अन्य के दो प्रेक्षण प्रसिद्ध खगोलशास्त्री टायको ब्राहे द्वारा वर्ष 1572 ईसवी में तथा जोहैंस कैप्लर द्वारा वर्ष 1604 में किया गया था।  पाँचवे सुपरनोवा का प्रेक्षण 24 फरवरी 1987  ईसवी में किया गया। इसको सबसे पहले चिली के एक युवक खगोलशास्त्री जैन शैल्ट ने देखा। इस प्रकार के विस्फोट, वैज्ञानिकों को तारों के जीवन चक्र का अध्ययन करने का एक दुर्लभ अवसर प्रदान करते हैं।

 *कृपया कमेंट सेक्शन में बताएं कि हमारी आकाशगंगा का छठवां सुपरनोवा विस्फोट कब हुआ था ?

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