* योग के प्रकार और उद्देश्य - स्पष्ट अर्थ में !

 

योग का अर्थ !

 योग के प्रकार और उद्देश्य - स्पष्ट अर्थ में ! 

योग का अर्थ ? योग  मस्तिष्क के बायें हिस्से द्वारा तर्क, गणित और विज्ञान के प्रयोग से आगे जाने की कोशिश करते हुये अस्तित्व (खुद में अथवा ईश्वर में) में पहुंचने का एक प्रयास है।

 विशेषत: योग तीन प्रकार के होते हैं :- 

 1.देह-अभ्यासगत योग।

 2. ध्यानयोग।

 3. पथयोग।

  *योग के प्रकार :-

 देह-अभ्यासगत योग

 देह-अभ्यासगत योग कठिन है, जटिल है। इसमें मनुष्य को तरह-तरह से खुद को सताना पड़ता है: शरीर को इरछा-तिरछा करो, मरोडो, उल्टे-सीधे बैठो, सताओ, सिर के बल खड़े होओ--- अभ्यास पर अभ्यास। लेकिन यह योग लोगों को बहुत आकर्षक मालूम होता है।

 ध्यानयोग

 ध्यानयोग जिसमें किसी दूसरी वस्तु, प्रतिछाया, व्यक्ति या समष्टि के प्रति ध्यान लगा कर मिलना। इसका एक उदाहरण है - जब स्त्री और पुरुष का मिलन होता है तब योग होता है। उससे पहले की प्रक्रिया ध्यानयोग में आती है। वे करीब आते हैं, बिल्कुल करीब आते हैं, एक दूसरे में घुल मिल जाते हैं और फिर एक दूसरे में समा जाते हैं। फिर विपरीत का संघर्ष मिट जाता है और परम विश्राम होता है।

पथयोग

  पथयोग में - ज्ञानयोग का पथ, कर्मयोग का पथ और भक्तियोग का पथ। कर्म शरीर से संबंधित है और शरीर को पीछे छोड़ देना पड़ता है। ज्ञान मस्तिष्क से संबंधित है और मस्तिष्क को पीछे छोड़ देना पड़ता है। भक्ति हृदय से संबंधित है और हृदय को पीछे छोड़ देना पड़ता है।

 योग एक महाअभियान है !

 योग में हमें स्वयं को सतत सुधारना पड़ता है, स्वयं पर काम करना पड़ता है। यह सुधार का, उपलब्धि का, प्राप्त करने का एक महाअभियान है। योग अस्तित्व (परमात्मा) के साथ लयबद्ध होने का विज्ञान है।

योग का अर्थ !

 योग एक लंबी और कठिन प्रक्रिया है !

 योग एक लंबी और कठिन प्रक्रिया है और उसका कोई भविष्य नहीं है जब तक कि विज्ञान उसके साथ न मिल जाये और उसकी सहायता न करे। अगर विज्ञान उसके साथ नहीं होता तो फिर अकेला योग बहुत ज्यादा श्रम मांगता है। इसलिये छोटे रास्ते खोजने जरुरी हैं।

 योग का उद्देश्य

 पथयोग को छोड़, देह-अभ्यासगत योग और ध्यानयोग का उद्देश्य थकावट कम करना है। योग के द्वारा दिव्यता प्राप्त नहीं की जा सकती। केवल अहम को दूर किया जा सकता है। किसी भी विधि से दिव्यता नहीं आती। यह तो बस, बहुत अधिक परिश्रम है जिससे पूर्ण विश्राम की अवस्था तक पहुंच जाते हैंं ताकी जब मुट्ठी खुल जाती है तो फिर बन्द करने की शक्ति नहीं होती।

 जीवन का उद्देश्य जागरुक होना है। योग एकदम जागरुकता की ओर होने की विधि है, जो स्वयं में एक जागरुकता का आना है।

 योग की पूर्णता (योग का अर्थ) और कुछ नहीं बल्कि केंद्रित होने में है। केंद्र की तरफ बढ़ना, वहां अप्नी जड़ें जमाना, वहां स्थिर हो जाना। वहां से पूरा परिदृश्य बदल जाता है। जब हम केंद्र से देखते हैं, तो धीरे-धीरे दुविधा समाप्त होने लगती है। धीरे-धीरे हम विश्राम पाने लगते हैं। समस्या इसलिये आती है क्योंकि हम जीवन में सतह पर होते हैं, अपने केंद्र में नहीं। योग केंद्र में (स्वयं में) होने का नाम है। 


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