*दुनियाँ का सबसे सच्चा धर्म कौन सा है ?*

 

Sacha dharm koun sa hai ?

  दुनियाँ का सबसे सच्चा धर्म कौन सा है?

  *सारी दुनियाँ में लगभग 90% लोग धर्मों को क्यों मानते हैं ?

 *क्या वजह रही है कि लोग समय-समय पर अलग-अलग धर्मों या मजहबों को मानते आये हैं ?

 *हर धर्म या मजहब के लोग अपने मजहब या धर्म को ही सर्वश्रेष्ठ मानते आये हैं।  ऐसा क्यों ?  इसलिए *सबसे सर्वश्रेष्ठ धर्म कौन सा है ?

 *क्या वजह है कि लोग बिना धर्म या मजहब के जीवन की कल्पना तक नहीं करते !

 *आखिर धर्म या मजहब में लोग ढूंढ़ते क्या हैं और पाते क्या हैं !

 तो आइये जरा इस बात को गौर से समझें :-

धर्म क्या है ? और *विश्व का सर्वश्रेष्ठ धर्म कौन सा है ?

 धर्म की परिभाषा में तो धर्म का अर्थ धारण करना है। आखिर क्या धारण करना है ? क्या कोई विचार, कला या संस्कृति या रीत-रीवाज, या फिर ऐसा सत्य जो अस्पष्ट-सा हो जिसे सिद्ध न किया जा सके। या फिर कोई आसमानी-बात जो एक दावागत सत्य के साथ एक अलग ही अटपटी-सी संस्कृति और रीवाज को लेकर आती हो, या फिर इसी ग्रह के मनुष्यों के द्वारा स्वयं के द्वारा की गई सत्य की खोज ही धर्म है !

 हर धर्म या मजहब आखिर चाहते क्या हैं ? और *सर्वश्रेष्ठ धर्म  कौन सा है?

 हर धर्म या मजहब मनुष्य को मृत्यु के बाद का वो मार्ग दिखाने की कोशिश करते हैं जहाँ जाकर मनुष्य सदा-सुखी, प्रसन्न और आनन्द की अवस्था में रहें। 

 पर ताज्जुब की बात तो यह है कि हर धर्म और मजहब कहता है कि मेरा मार्ग या रास्ता सच्चा और अच्छा है बाकी का झूठा !

 इससे पहले कि ये मृत्यु के बाद का मार्ग दिखाएं, ये इसी जीवन में एक अलग और दूसरों से भिन्न रीत और रीवाज को फॉलो करने को कहते हैं। सच तो यह है कि उनके यही रीत-रीवाज, नियम और कायदे-कानून ही उनके वो सच्चे मार्ग होते हैं जिन पर चलकर ही कोई मनुष्य सुखलोक व अमरलोक में प्रवेश कर सकता है।

Sacha dharm koun sa hai ?


 *सबसे पवित्र धर्म कौन सा है ?

 क्या सभी धार्मिक और मजहबी लोग उनके बताये धर्म या मजहब के नियमों का पालन करते हैं ?

  हाँ निसन्देह करते हैं ! इसी चक्कर में ही तो धार्मिक और मजहबी आदमी एक दूसरे के खून का प्यासा हो जाता है। 

 *अगर उनके ये नियम और कायदे-कानून वाकेई में किसी एक ही ईश्वर अथवा परमेश्वर ने दिये होते तो धार्मिक या मजहबी झगडे और लड़ाइयाँ होती ही नहीं। 

 *अगर वाकेई में ये धर्म और मजहब किसी एक ईश्वर ने बनाये होते तो वे इस सृष्टि के सभी मनुष्यों के साथ, एक साथ और एक ही सुर में बात करता।

 *वो सारी मानवता को एक ही धर्म या एक ही मजहब सौंपता, न कि अलग-अलग धर्म और मजहब बना कर इंसानों में फूट डलवाता।

 **या फिर एक संभावना यह भी है कि अतीत में जो धर्म या मजहब उन लोगों को सौंपे गये वे परग्रहियों के द्वारा उन्हें दिये गये थे।

 अधिकतर संभावना तो यही है कि इस संसार के लगभग सभी धर्म या मजहब परग्रहियों की देन हैं। अगर ये हमने बनाये होते तो आज हम सभी सुरक्षित होते और अपना ही सत्यनाश न करते। इसलिये इस पृथ्वी से बाहर कोई हैं जो नहीं चाहते कि इंसान इस पृथ्वी पर सुख और चेन से रहे सकें। ये हमसे हमारी गुलामी चाहते हैं. और अगर हम इनकी गुलामी न करें तो ये हमारी घज्जियाँ उड़ा देते हैं. ये हमारा लहु बहाने में आतुर हैं. हमारा लहु बहने से मानों उनकी प्यास बुझती हो!

Sacha dharm koun sa hai ?

 *दुनियाँ का सबसे सच्चा धर्म कौन सा है ?

 हम इस संसार में स्पष्ट रूप से देख और समझ सकते हैं कि जो धर्म मनुष्य ने बनाया है केवल वही आध्यात्मिक है। 

 आध्यात्मिक धर्म केवल ईश्वरीय धर्म नहीं होता बल्कि यह मनुष्य का मनुष्य को और इस सृष्टि को जानने की विद्या ही होती है। यह एक प्रकार से तत्व ज्ञान (जबकि मजहब तत्वज्ञान से बैर करता है और इसकी मनाही करता है।) होता है जो जीवन की गहराइयों में जाकर जीवन को बिना विरोधभाव के प्रकट करता है।

 इस संदर्भ में भारतीय सनातन धर्म शीर्ष पर है। जिसकी उपनिषदक शिक्षायें और गीता का ज्ञान ही वास्तविक आध्यात्मिक ज्ञान है।

 लेकिन ध्यान रहे, यहां हिन्दु धर्म की बात नहीं हो रही है जिनमें जातिवाद और बहुदेववाद का विधान होता है, जिनमें अनगिनत रीत-रीवाज और प्रथाओं का उल्लेख होता है; बल्कि यहां बात हो रही है उपनिषदिक विद्याओं और गीता ज्ञान की, जिनके कारण ही भारतभूमि को सनातन धर्म की भूमी कहा गया  जबकि यहां केवल 10% लोग ही सनातनी हैं, बाकी तो सभी तनातनी हैं !

 किस धर्म वाले को मुक्ति, निर्वाण, अनंतजीवन या मोक्ष मिलेगा ?

  धार्मिक और मजहबी लोग ईश्वर को अपने (खुद से) से बाहर ढूंढ़ते हैं। वे उसे किसी मनुष्य या धर्म-पुस्तकों (धर्मशास्त्रों) में ढूँढते हैं।

  इसलिये जो लोग ईश्वर को बाहर ढूंढ़ते हैं वे लोग मृत्यु के बाद गहरी-अन्धेरी खाई में जा गिरेंगे।

  पर जो लोग इस चाह में कि *सबसे सर्वश्रेष्ठ धर्म कौन सा है अपनी अंतरआत्मा में ईश्वर को स्वयं के भीतर और अन्य प्राणियों के भीतर तथा इस समस्त चरा-चर जगत में देखते हैं केवल वही लोग मुक्ति, निर्वाण, अनंतजीवन और मोक्ष को प्राप्त करेंगे। क्योंकि ऐसे लोग निर्मल-बुद्धि के होते हैं, इनमें भेदों वाली बुद्धि नहीं होती। इनमें समस्त सृष्टि के प्रति अनुग्रह और गहरा प्यार छिपा रहता है जो उनके व्यवहार से प्रकट हो जाता है।

  इस संदर्भ में यदि कोई कहे कि +कृष्ण ही परमेश्वर है तो वह मूर्ख है। क्योंकि परमेश्वर आत्मा है, और उसी 'पवित्रात्मा' ने भगवतगीता में यह कहा है कि बादल की बूंद भी मैं ही हूँ, अर्जुन भी मैं हूँ और वृष्णिवंशियों में बसुदेव पुत्र कृष्ण भी मैं ही हूँ - भगवतगीता:- अध्याय 10:19-42. अत: मेरी विभुता को पहचान !

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