*प्राचीन भारतीय ऋषियों (वैज्ञानिकों) ने बताया, भूत होते हैं!
kya bhoot hote hain ? |
kya bhoot hote hain?, इस प्रश्न के उत्तर में तो भारतीय जनमानस सदैव से यह मानता रहा है कि जिस व्यक्ति की अकाल मृत्यु हो जाती है, वह मरने के बाद भूत बन जाता है अथवा जिस व्यक्ति का मरणोपरांत उचित रूप से संस्कार न किया जाये, तो वह भी अतृप्त भटकता रहता है। भारतीय मानस में छाई यह बात सर्वथा निराधार नहीं है। इसके पीछे तथ्य निम्नांकित हैं :-
भूतों के होने के कारण और तथ्य
निश्चित रूप से *इतर-योनियाँ (भूत-प्रेत) होती ही हैं चाहे वह भूत की हो, प्रेत की हो, राक्षस की हो, या ब्रह्म-राक्षस की। अन्तर यह होता है कि जहाँ मनुष्य पंचभूतात्मक होता है, वहीं इतर-योनियाँ चतुर्वर्गात्मक या त्रिवर्गात्मक होती हैं, उनमें *भूमि-तत्व का अभाव होता है। भूमि-तत्व का अभाव होने से ही उनकी गति और क्षमतायें असीम हो जाती हैं। भूमि-तत्व के अभाव के कारण ही वे दृष्टीगोचर भी नहीं होती हैं।
वास्तव में अपूर्ण प्रबल-इच्छाएं, असमय मृत्यु और वासनायें ही कारण होती हैं, किसी मनुष्य को इन योनियों में भटकाने के लिये। प्राय: किसी दुर्घटनावश अथवा हत्या आदि से व्यक्ति की असमय मृत्यु हो जाती है और ऐसे में जो प्रबल-मोह अपने परिवार के प्रति अथवा अपनी निज-वासनाओं के प्रति समाप्त नहीं हुआ होता, केवल वही कारण उसे विवश कर देता कि वह भूत या प्रेत योनि में जा पड़े।
ऐसे परिवारों में जिनमें कोई आकस्मिक मृत्यू हो गई हो, उनमें बहुधा इस तरह की बात सुनने या देखने को मिलती है कि उस परिवार का कोई सदस्य विभ्रमित हो गया, या पागल हो गया अथवा असमान्य व्यवहार करने लग गया। इसका सीधा-सीधा-सा कारण है कि मृत आत्मा परिवार के सबसे कोमल वृति-वाले सदस्य को अपना माध्यम बना लेती है और फिर उसके द्वारा जहां एक ओर परिवार में रहने की अपूर्ण इच्छा पूरी करती है, वहीं ऐसी योनियों में गये व्यक्तियों के लिये मर्यादाओं का कोई बंधन नहीं रहता। उनकी कामेच्छा बढ़ती ही जाती है, जिसकी पूर्ति वे किसी को भी माध्यम बना कर करते हैं। ऐसी योनियों में गये व्यक्तियों के लिये माँ-बहन, बहु-बेटी कोई रिश्ते अर्थ नहीं रखते और अपनी काम संबंधी इच्छाएं तथा भोजन संबंधी इच्छाओं की पूर्ति करने के लिये कुछ भी करने को तैयार रहते हैं।
*इसी से भारतीय धारणा सदैव से यही रही है कि व्यक्ति अपने को तृष्णाओं से मुक्त रखे।*
भूतों पर आधुनिक शोध
भूतों के अस्तित्व के संबंध में पूरे विश्व में शोध चल रहे हैं और सत्य तो यह है कि तथाकथित आधुनिक व विकसित माने जाने वाले पश्चिमी देशों में भूत-प्रेत संबंधी विश्वास हमारे समाज से कहीं अधिक दृढ़ है। जितनी रहस्यात्मकता, विचित्रता पश्चिम के देशों में जड़ी है, उसके सामने तो भारत की घटनायें तो कुछ भी नहीं हैं। इसका एक कारण यह भी है कि जहां विदेशों में वहां के निवासियों ने इसे मात्र कौतुहल व रोमांच समझ कर अपने जीवन में स्थान दिया, वहीं भारत में विवेचन किया गया, हजारों वर्ष पूर्व ही यह समझने का प्रयास किया गया कि क्या कारण होते हैं कि जो किसी व्यक्ति को मृत्यु के उपरान्त ऐसी योनियों में ढ़केल देते हैं, ऐसी योनियों का चरित्र क्या होता है, ऐसी योनियों में जाने पर क्या कष्ट होता है और व्यक्ति ऐसी योनियों में न जा पड़े, इसके लिये क्या उपाय किये जाने चाहियें आदि-आदि ?
इस संबंध में प्राचीन भारतीय शोध में विस्तार से यह बताया गया है कि कैसे कोई व्यक्ति इन इतर-योनियों (भूत-प्रेत) से बाधा-ग्रस्त न हो।
kya sach me bhoot hote hain
भारतीय ऋषियों के द्वारा इसका उत्तर खोज लेने के पश्चात उन्होंने अपनी भारतीय परंपराओं में गर्भाधान संस्कार से लेकर अंत्येष्टि संस्कार तक वैज्ञानिक-विधान रचे गये, और अंत्येष्टि संस्कार के उपरान्त भी मृत व्यक्ति को भूला नहीं गया, वरन उसकी वार्षिक श्राद्ध एवं वर्ष में पितर-पक्ष के नाम से एक पूरा पक्ष ही पूर्वजों के प्रति सम्मान व उनको तृप्ति देने के लिये रचा गया। यह सब व्यवस्थायें केवल पुरोहित-वर्ग (ब्राह्मणों) के जीवन-यापन हेतु ही नहीं रची गईं वरन इसके पीछे सूक्ष्म चिंतन थे। इसके पीछे चिंतन यह था कि व्यक्ति जिस पिण्ड से निर्मित हुआ है और जिस पिण्ड की सूक्ष्मता उसके शरीर में विद्यमान है, उसे वह सदैव तृप्त रखे, जिससे उसे सूक्ष्म रूप से निरंतर परिपुष्टि मिलती रहे। पिण्ड-दान आदि इसी का व्यवहार है।
अपने पूर्वजों के प्रति तर्पण, दान आदि करते रहने से जहां एक ओर उन्हें सूक्ष्म जगत में तृप्ति मिलती है और वे मुक्त होते हैं, वहीं अपने वंश के प्रति वे कृपालु हो उठते हैं।
हमारी भारतीय सनातन संस्कृति में यह भी व्यवस्था है कि कोई व्यक्ति मृत्यु के उपरान्त ऐसी इतर-योनियों में न जा गिरे, क्योंकि ऐसी योनियों का संसार अत्यन्त ही पीड़ादायक है। यह संसार जो छल-कपट से भरा हुआ है और उससे ऊबकर और दुखी होकर व्यक्ति प्राय: आत्महत्या कर लेता है, पर वह यह नहीं जानता कि इस जगत से परे जो जगत है, उसमें इससे भी ज्यादा व्यभिचार, छल-कपट और हिँसाएं हैं।
इतर-योनियों (भूत-योनियों) को समझा जाये तो वे मानव से ज्यादा मुक्ति के लिये छटपटाती हुई योनियाँ हैं। मानव के पास तो तब भी यह शरीर है, अपनी बहुत कुछ गतिविधियों को संचालित करने के लिये, किंतु उनके पास तो वह भी नहीं।
सारांश
तो kya bhoot hote hain?, निदान, निरंतर अपनी मुक्ति के लिये छटपटाती हूई अपनी अपूर्ण वासनाओं की तृप्ति के लिये भटकती, कभी इसको माध्यम बनाती तो कभी उसको माध्यम बनाती हूई, योनि का ही नाम है - *भूत !