![]() |
| Ancient civilizations in hindi |
प्राचीन सभ्यतायें और हमारी विरासत!(Ancient civilizations in hindi)
विश्व की प्राचीन सभ्यताओं (Ancient civilizations) ने मिश्र और क्रीट (नोसास) और उस मुल्क में जो आज इराक या मैसोपोटामिया कहलाता है, तथा चीन, भारत और यूनान में पहले-पहल जन्म लिया। यूनान शायद औरों से कुछ देर में सामने आया। इसलिये प्राचीनता के लिहाज से भारत की सभ्यता मिश्र, चीन और इराक की सभ्यताओं की बराबरी की है। प्राचीन यूनान की सभ्यता भी इनके मुकाबले में कम उम्र की है।
प्राचीन सभ्यताएँ और विवरण !
नोसास खत्म हो गया। सच तो यह है कि करीब तीन हजार वर्षों से उसका कोई नाम-निशान भी नहीं है। यूनान की बाद की सभ्यता के लोग यहां पहुंचे और उन्होने इसे नष्ट कर दिया। मिश्र की पुरानी सभ्यता कई हजार वर्षों के शानदार इतिहास के बाद समाप्त हो गई, और अल-अहराम, स्फिंक्स, बड़े-बड़े मन्दिरों के खंडहरों, मोमियाइयों और इसी तरह की दूसरी चीजों के अलावा वह अपना कोई निशान नहीं छोड़ गई। मिश्र का देश तो अब भी है और नील नदी पहले की तरह अब भी उसमें होकर बहती है, और दूसरे देशों की तरह वहां भी स्त्री और पुरुष रहते हैं, लेकिन इन नये आदमियों को इनके देश की पुरानी सभ्यता से जोड़नेवाली कोई कड़ी नजर नहीं आती।
इराक और ईरान- इन देशों में कितने साम्राज्य फूले-फ़ले और एक-दूसरे के बाद विस्मृति के गर्भ में समाते गये। इनमें सबसे पुराने साम्राज्यों के ही कुछ नाम लिये जायें तो वे हैं बाबुल, अशर और खाल्दिया। बाबुल और निनीवे इनके विशाल नगर थे। इन्जील या बाईबल का पुराना हिस्सा तौरात यहां के लोगों के वर्णनों से भरा पड़ा है। इसके बाद भी प्राचीन इतिहास की इस भूमि में दूसरे साम्राज्य फूले-फ़ले और मुरझा गये। *अलिफ़लैला की मायानगरी* बगदाद यहीं है। लेकिन साम्राज्य बनते और बिगड़ते रहते हैं और बड़े-से-बड़े और अभिमानी-से-अभिमानी राजा और सम्राट दुनियां के रंगमंच पर सिर्फ थोड़े ही अरसे के लिये अकड़ के साथ चल पाते हैं। पर सभ्यतायें कायम रह जाती हैं। लेकिन इराक और ईरान की पुरानी सभ्यताएं मिश्र की पुरानी सभ्यता की तरह बिलकुल ही खत्म हो गई।
यूनान की महानता और उसका पतन
अपने प्राचीन दिनों में यूनान सचमुच महान था और आज भी लोग उसकी शान-शौकत का हाल अचरज के साथ पढ़ते हैं। आज भी हम उसकी संगमरमर की खूबसूरत मूर्तिकला देखकर स्तंभित और चकित हो जाते हैं, और उसके पुराने साहित्य के उस अंश को, जो बच गया है, श्रद्धा और आश्चर्य के साथ पढ़ते हैं। कहा जाता है, और ठीक ही कहा जाता है, कि मौजूदा यूरोप कई दृष्टी से यूनान का बच्चा है क्योंकि यूरोप पर यूनानी विचार और यूनानी तरीकों का गहरा असर पड़ा है। लेकिन वह शान जो यूनान की थी, अब कहाँ है ? इस पुरानी सभ्यता को गायब हुये अनेक युग बीत गये। उसकी जगह दूसरी तरह के तौर-तरीकों ने ले ली और यूनान आज यूरोप के दक्षिण-पूरब में एक छोटा-सा मुल्क भर रह गया है।
चीन और भारत की सभ्यता का हाल
मिश्र, नोसास, इराक और यूनान- ये सब खत्म हो गये। इनकी सभ्यता की हस्ती भी बाबुल और निनीवे की तरह मिट गई। तो फिर इन प्राचीन सभ्यताओं (Ancient civilizations) के साथी बाकी दो, चीन और भारत, का क्या हुआ ? और देशों और मुल्कों की तरह इन दोनों देशों में भी साम्राज्य के बाद साम्राज्य कायम होते रहे। यहां भी भारी तादाद में हमले हुये, बरबादी और लूटमार हूई। बादशाहों के वंश सैंकडों वर्षों तक राज करते रहे और फिर इनकी जगह पर दूसरे आ गये। भारत और चीन में ये सब बातें वैसे ही हुईं जैसे दूस्रे देशों में। लेकिन सिवाय चीन और भारत के, किसी भी दूसरे देश में सभ्यता का असली सिलसिला कायम नहीं रहा। सारे परिवर्तनों, लड़ाइयों और हमलों के बावजूद इन देशों में पुरानी सभ्यता की धारा अटूट बहती आई। यह सच है कि ये दोनों अपने पुराने गौरव से बहुत नीचे गिर गये हैं और इनकी प्राचीन संस्कृतियों के ऊपर ढ़ेर-की-ढ़ेर गर्द और कहीं-कहीं गंदगी, लम्बे अर्से से जमा होती गई है। लेकिन ये संस्कृतियां अभी तक कायम हैं और आज भी वही भारतीय सभ्यता और भारतीय जीवन का आधार है। अब दुनियां में नई हालतें पैदा हो गई हैं; फ्यूल से चलनेवाले जहाजों, रेलों और बड़े-बड़े कारखानों ने दुनियां की सूरत ही बदल दी है। हो सकता है, बल्कि वास्तव में संभव है कि वे भारत की भी काया-पलट कर दें, जैसा कि वे कर भी रही हैं- नेनो-टेक्नोलॉजी।
लेकिन भारतीय संस्कृति और सभ्यता, जो इतिहास के उदयकाल से लेकर लम्बे-लम्बे युगों को पार करती हूई वर्तमान तक चली आई हैं, के इस लम्बे विस्तार और सिलसिले का ख्याल दिलचस्प और बहुत-कुछ आश्चर्यजनक है। एक अर्थ में भारत के हम लोग इन हजारों वर्षों के उत्तराधिकारी हैं। यह हो सकता है कि हम लोग उन प्राचीन लोगों के ठेठ वंशज हों जो उत्तर-पश्चिम के पहाड़ी दर्रों से होकर उस लहलहाते हुये मैदान में आये, जो ब्रह्मवर्त, आर्यवर्त, भारतवर्ष और बाद में हिन्दुस्तान कहलाया। बहादुरी और साहस की भावना से भरे हुये ये लोग, परिणामों की परवा न करते हुये हिम्मत के साथ आगे बढ़ते चले गये। अगर मौत आई तो उन्होने उसकी परवा नहीं की। हँसते-हँसते उसे गले लगाया। लेकिन उन्हें जीवन से प्रेम था और वे जान्ते थे कि जीवन का सुख भोग्ने का एकमात्र तरीका यह है कि आदमी निडर हो जाय, और हार और आफतों से परेशान न हो। क्योंकि हार और आफत में एक बात यह होती है कि वे निडर लोगों के पास नहीं फटकती। अप्ने उन प्राचीन पूर्वजों का ख्याल तो करो जो आगे बढ़ते-बढ़ते एकदम समुद्र की ओर शान के साथ बहती हूई पवित्र गंगा के किनारे आ पहुंचे। यह दृश्य देख कर उनका हृदय कितना आनंदित हुआ होगा ! और इसमें आश्चर्य की कौन-सी बात है कि इन लोगों ने गंगा के सामने आदर से अप्ना सिर झुका दिया हो और अपनी समृद्ध और मधुर भाषा में उसकी स्तुति की हो !
यह सोचकर कुतूहल होता है कि हम विश्व की प्राचीन सभ्यताओं (Ancient civilizations) के इन सब युगों के उत्तराधिकारी हैं। लेकिन हमें घमंड से फूल न जाना चाहिये क्योंकि अगर हम युग-युगांतरों के उत्तराधिकारी हैं तो उसकी अच्छाई और बुराई दोनों के हैं। और भारत में हमें मौजुदा विरासत में जो कुछ मिला है, उसमें बहुत-सी बुराइयाँ हैं; बहुत-कुछ ऐसा है, जिसने हमें दुनिया में नीचा गिराये रक्खा और हमारे महान देश को सख्त गरीबी में डाल दिया और उसे दूसरों के हाथ का खिलौना बना दिया। लेकिन क्या हमने यह निश्चय नहीं कर लिया है कि यह हालत अब न रहने देंगे ?
