प्राचीन यूनानी सभ्यता ! Ancient Greek civilization in hindi
हम देखते हैं कि यूरोप और एशिया, इन दोनों में कितनी बातें एक दूसरे से भिन्न हैं और कितनी एक-दूसरे से मिलती-जुलती हैं। तो आइये प्राचीन यूरोप पर, जैसा कि वह बतलाया जाता है, एक नजर डालें :-
भूमध्यसागरीय प्रदेश
बहुत दिनों तक भूमध्यसागर के चारों तरफ के देश ही यूरोप समझे जाते थे। हमें उस जमाने के यूरोप के उत्तरी देशों का कोई हाल नहीं मिलता। भूमध्यसागर के देशों के रहने वालों का ख्याल था कि जर्मनी, इंग्लैंड और फ्राँस में जंगली और बर्बर कबीले रहा करते हैं। यहां तक कि लोगों का ख्याल था शुरु जमाने में सभ्यता भूमध्यसागर के पूर्वी हिस्से तक ही सीमित थी। परंतु मिश्र (जो अफ्रीका में है, यूरोप में नहीं) और नोसास ही पहले देश थे, जो आगे बढ़े। धीरे-धीरे आर्य लोग एशिया से पश्चिम की ओर बढ़ने लगे और यूनान तथा आस-पास के मुल्कों में फैल गये। ये आर्य वही यूनानी हैं, जिन्हें हम प्राचीन यूनानी कहते हैं और जिनकी तारीफ करते हैं। ये आर्य लोग उन आर्यों से बहुत भिन्न नहीं थे , जो शायद इसके पहले भारत में उतर चुके थे। लेकिन बाद में धीरे-धीरे इनमें परिवर्तन हुये, और धीरे-धीरे आर्य जाति की इन दोनों शाखाओं में दिन-पर-दिन ज्यादा फर्क होता गया। भारतीय आर्यों के ऊपर उससे भी पुरानी भारत की सभ्यता, यानी द्रविड़ सभ्यता का और शायद उस सभ्यता के बचे-खुचे हिस्से का बहुत असर पड़ा, जिसके खँडहर हमें मोहन-जो-दडो में मिलते हैं। आर्यों और द्रविडों ने एक-दूसरे से बहुत-कुछ लिया और एक-दूसरे को बहुत कुछ दिया भी, और इस तरह इन्होने मिल-जुलकर भारत की एक मिली-जुली सँस्कृति बनाई।
यूनान से यूरोपियन सभ्यता का जन्म होना
इसी प्रकार यूनानी आर्यों पर भी नोसास (नीनीवे) की उस पुरानी सभ्यता का बहुत ज्यादा असर पड़ा होगा जो कि यूनान की भूमि पर इनके आने के समय खूब जोरों से लहरा रही थी। इनके ऊपर इसका असर जरुर पड़ा, लेकिन इन्होनें नोसास को और उसकी सभ्यता के बाहरी रूप को नष्ट कर दिया और उसकी राख पर अपनी सभ्यता रची। हमें यह कभी भी नहीं भूलना चाहिय कि यूनानी आर्य और भारतीय आर्य, दोनों उस पुराने जमाने में बड़े सख्त और जांबाज लड़ाके थे। ये बड़े जीवट-वाले थे और जिन नाजुक या अधिक सभ्य लोगों से इनका सामना हुआ, उन्हें या तो इन्होनें हजम कर लिया या नष्ट कर डाला।
इसी तरह नोसास ईसा के पैदा होने के करीब एक हजार वर्ष पहले नष्ट हो चुका था, और नये यूनानियों ने यूनान में और आस-पास के टापुओं में अपना अधिकार जमा लिया था। ये लोग समुद्र के रास्ते एशिया कोचक के पश्चिमी किनारे तथा दक्षिण-इटली और सिसली तक और दक्षिण-फ्राँस तक भी जा पहुंचे। फ्राँस में मारसाई नाम के शहर को इन्होने ही बसाया था। लेकिन शायद इनके जाने के पहले वहाँ फिनिश लोगों की बस्ती थी।
फिनिश जाति एशिया कोचक की मशहूर समुद्र-यात्री कौम थी, जो व्यापार की तलाश में दूर-दूर तक धावे मारा करती थी। उस पुराने जमाने में ये लोग इंग्लेंड तक पहुँच गये थे, जिन दिनों वह बिल्कुल जंगली देश था, और जब जिब्राल्टर के जल-डमरूमध्य का जहाजी सफर जरूर खतरनाक रहा होगा।
यूनानी महाकाव्य
यूनान की मुख्य भूमि में एथेंस, स्पार्टा, थीब्स और कोरिंथ जैसे मशहूर शहर आबाद हो गये। यूनानियों के, जो उस वक्त हेलेन्स कहलाते थे, पुराने जमाने का हाल 'ईलियद' और 'औदेसी' नाम के दो महाकाव्यों में बयान किया गया है। ये दोनो महाकाव्य, हमारे देश की रामायण और महाभारत की तरह के ग्रंथ हैं। कहते हैं कि होमर ने जो अँधा था, ये काव्य लिखे हैं। 'ईलियद' में यह किस्सा बयान किया गया है कि किस तरह सुन्दरी हेलेन को पेरिस अपने शहर त्राय में भगा ले गया और किस तरह यूनान के राजाओं और सरदारों ने उसे छुड़ाने के लिये त्राय के चारों तरफ घेरा डाला। और 'औदेसी' त्राय के घेरे से लौटते वक्त औदेसियस या यूलियस के भ्रमण की कहानी है। एशिया कोचक में, समुद्र-तट से बहुत नजदीक, त्रायका नामक यह छोटा सा शहर बसा था। आज इसका कोई निशान नहीं है और उस्की हस्ती मिटे बहुत जमाना हो गया; लेकिन कवि होमर की प्रतिभा ने इसे अमर बना दिया है।
यूनानी शहर यूरोपियन साम्राज्य में तबदील हुये
इधर हेलेन्स या यूनानी कौम तेजी के साथ, थोड़े दिन की लेकिन शानदार जवानी पर पहुँच रही थी। उधर एक दूसरी शक्ती का, जो आगे जाकर यूनान को जीतनेवाली और उसकी जगह लेने वाली थी, चुपचाप उदय होना, दिलचस्पी की बात है। कहा जाता है कि इसी जमाने में रोम की बुनियाद पड़ी। कई सो वर्षों तक इसने दुनियां के रंगमंच पर कोई महत्व का काम करके नहीं दिखाय। लेकिन ऐसे महान शहर की स्थापना अवश्य ही उल्लेखनीय है, जो सदियों तक यूरोपियन संसार पर हावी रहा और जो 'संसार की स्वामिनी' और 'अमरपूरी' के नाम से मशहूर हुआ। रोम की स्थापना के बारे में अजीब-अजीब किस्से कहे जाते हैं। कहते हैं कि 'रेमस' और 'रोमुलस' को, जिन्होने इस शहर की बुनियाद डाली थी, एक मादा भेड़िया उठा ले गई थी और उसी ने उन्हें पाला था।
जिस जमाने में रोम की बुनियाद पड़ी, उसी जमाने में या कुछ समय पहले प्राचीन दूनियाँ का एक दूसरा बड़ा शहर भी बसाया गया। इसका नाम 'कारथेज' था और इसे अफ्रिका के उत्तरी समुद्र-तट पर फिनिश लोगों ने बसाया था। यह शहर बढ़ते-बढ़ते एक बड़ी समुद्री शक्ती बन गया। रोम के साथ इसकी भयंकर प्रतिस्पर्धा चली और बहुत-सी लड़ाइयां हुईं। अंत में रोम ने विजय पाई और कारथेज बिलकुल नष्ट कर दिया गया।
फिलिस्तीन देश पर एक नजर
यूनान अथवा यूरोप के साथ-साथ फिलिस्तीन पर भी एक सरसरी नजर डालते हैं। फिलिस्तीन यूरोप में नहीं है और न इसका कोई ज्यादा ऐतिहासिक महत्व ही है। लेकिन बहुत-से लोग इसके प्राचीन इतिहास में दिलचस्पी रखते हैं, क्योन्की इसका जिक्र तौरात (बाईबल के पुराना नियम) में पाया जाता है। इस कहानी का संबंध यहूदियों के कुछ कबीलों से है, जो इस छोटे से देश में रहते थे, और इसमें बताया गया है कि यहूदियों को अप्ने दोनों तरफ बेस हुये शक्तिशाली पडौसियों, बाबुल, अशर और मिश्र से कितने झगड़े करने पड़े। अगर यह कहानी यहूदी और ईसाई मजहबों का हिस्सा न बन गई होती तो शायद ही किसी को इसका पता चलता।
जिस समय नोसास नष्ट किया जा रहा था, फिलिस्तीन के इजराईल भाग का बादशाह 'सालूस' (शाऊल) था। इसके बाद 'दाऊद' और फिर 'सुलेमान' हुआ जो अपनी अक्लमंदी के लिये बहुत मशहूर है।