मसीही विश्वासी पंथ ! (क्या एक धर्म है?)
हर धर्मों की अपनी एक संस्कृति होती है। हर धर्मों के अपने-अपने रीत-रीवाज व परम्पराएं होती हैं जिन्हें उनके मानने वाले अनुसरण करते हैं।
तो क्या संसार के सभी धर्मों में ये रीत-रीवाज, परंपराएं व संस्कार विद्यमान होते हैं ?
इसके जवाब में उत्तर तो यही है कि हाँ होते हैं, और इसी से उस धर्म के समुदाय की संस्कृति की पहचान होती है।
किन्तु इन सब से भिन्न एक पंथ ऐसा है जो पहचान में तो एक धर्म है किन्तु वास्तव में वह एक धर्म नहीं है।
हाँ, यहाँ बात हो रही है क्रिश्चन धर्म की।
इससे पहले कि हम क्रिश्चयन धर्म के बारे में अवलोकन करें, यह निहायती जरूरी है की हम अन्य धर्मों के बारे में भी एक अति संक्षिप्त अवलोकन करें कि वे सभी भी धर्म हैं की नहीं !
हिन्दु धर्म को वास्तव में सनातन धर्म कहा जाता है। इसके आदि के विषय में किसी को नहीं पता। इसका कोई एक भगवान या गुरु संस्थापक नहीं है। इस पन्थ को पूर्णतः एक धर्म कहा जा सकता है, क्योंकि इसमें हजारों वर्षों से चली आ रही एक व्यवस्थित परम्पराएं, रीत-रीवाज हैं जो की एक संस्कृति के रूप में हिन्दु समुदाय में सतत् चली आ रही है। इसमें मनुष्य जीवन के जन्ं से लेकर मृत्यु तथा मृत्यु के पश्चात भी व्यवस्थित संस्कार व रीवाज निर्धारित किये गये हैं। अत: यह एक धर्म है।
बौद्ध धर्म व जैन धर्म भी हिन्दू धर्म की शुरुवात या बाद की एक टूटी हुई शृंखला हैं। जिनमें भी मनुष्य के जन्म से मृत्यु और मृत्यु के बाद तक के संस्कार निर्धारित किये गये हैं। अतः ये भी धर्म ही हैं।
यहुदी धर्म वास्तव में एक एकेश्वरवादी धर्म है। इस पंथ की शुरुआत प्रकट व व्यवस्थित रूप से हजरत मूसा के समय से मानी जाती है। इस पन्थ में भी मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक के व्यवस्थित संस्कार व रीवाज निर्धारित किये गये हैं। अतः यह पंथ भी एक धर्म ही है।
इस्लाम धर्म, जो की यहुदी धर्म का ही एक भिन्न, परन्तु एक परिष्कृत रूप है। इस पन्थ की शुरुआत हजरत मुहम्मद के समय से मानी जाती है। इस पंथ में मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक के व्यवस्थित संस्कार, रीत-रीवाज तथा परम्पराएं निर्धारित किये गये हैं। जैसे, मनुष्य को दिन मे कितनी बार इबादत करनी है, और किस ढ़ंग से करनी है। क्या पहनना है , कैसे दाढ़ी बनानी है, शादी-व्याह किस तरह से करना है और मृत्यु होने पर संस्कार कैसे निभाने है इत्यादि-इत्यादि। अत: यह पन्थ भी एक धर्म ही है।
इसाई धर्म, जो की वास्तव में एक धर्म है ही नहीं, परन्तु दुर्भाग्य से दूसरी तीसरी शताब्दी से ही इस पंथ के अनुयायियों ने इसे एक धर्म में बदलने की भरपूर कोशिश करते हुये इस पन्थ को एक *कागजी धर्म* बना दिया।
यदि हम बाईबल के नया-नियम की पुस्तक की ओर गौर फरमायें तो हम पायेंगे कि वास्तव में इस पन्थ में कहीं भी मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक और मृत्यु के पश्चात तक के कोई व्यवस्थित रीत-रीवाज, परंपराएं तथा संस्कार निर्धारित नहीं किये गये हैं। इस पन्थ में मनुष्य के लिये केवल उसके आध्यात्मिक जीवन पर ही जोर दिया गया है। उसके विश्वास और आस्था को दृढ़ करने के लिये ही आध्यात्मिक संदेश एक उपदेश के रूप में नया-नियम की पुस्तक में लिखे गये हैं। यहाँ कहीं भी ऐसा लिखा नहीं गया है कि जन्म से पहले या जन्म लेते ही मनुष्य के लिये क्या संस्कार निभाने हैं। यहाँ कहीं भी ऐसा लिखा नहीं गया है कि मनुष्य को किस ढ़ंग से विवाह करना है, किस ढ़ंग से कपड़े-लत्ते लगाने हैं, किस धन्ग से मृत्यु संस्कार निभाने हैं- जलाना है या दबान है या फिर चील-कौवों को खिलाना है इत्यादि-इत्यादि।
*इसाई अथवा मसीही पन्थ* में केवल और केवल मनुष्य के विश्वास और हृदय परिवर्तन पर ही जोर दिया गया है।
इस पन्थ की शुरुवात येशु-मसीह ने नहीं की, परन्तु वास्तव में इसकी शुरुवात तो मनुष्य जीवन के आदि काल ही से हुई थी जो अब्राहम जैसे मनुष्य में अभिव्यक्त हुई थी। परन्तु मूसा के समय में इब्राहिमिक समुदाय में इस विश्वास रूपी आध्यात्मिक पंथ की जगह एक व्यवस्थित धर्म (यहुदी धर्म) ने ले ली थी, जिसे आगे चल कर बाद में *प्रभु येशु-मसीह ने इस व्यवस्थित यहुदी धर्म को बडी ही कोमलता से तोड़ने की कोशिश की।*
प्रभु येशु-मसीह की यह आध्यात्मिक कोशिश उनके ही अपने यहुदी कौम में तथा बाहर की अन्य कौमों में एक आध्यात्मिक क्रान्ति की लहर की तरह प्रकट हुई, और येशु-मसीह से लेकर आज तक के समय तक बाईबल के नया-नियम के अनुसार यह पन्थ अन्तकाल तक केवल एक विश्वासी पन्थ है, जो परमेश्वरीय श्रद्धा पर निष्ठा और उस परमेश्वरीय कर्म पर निष्ठा पर ही आश्रित व आधारित है। इस पन्थ का संबंध कभी भी मनुष्य के रीत-रीवाज व परंपराओं तथा संस्कारों से नहीं है।
अत: यह पन्थ एक धर्म तो कतई भी नहीं है। यह केवल एक पंथ है, जो आध्यात्मिक विश्वास से गतिशील होती है।
Good information!
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