*एकता और विभिन्नता !* Unity and Diversity



  क्या सच में Unity और Diversity का value है?

  हम सभी बचपन से पढ़ते आयें हैं कि एकता में बल है।
 तो क्या वाकेई में एकता में बल होता है ? 
 एकता का शाब्दिक अर्थ होता है, 'जो एक की स्थिति में दृढ़ रहे !'

  इसकी सरल सी व्याख्या यह है की कोई संज्ञा या वस्तु अनेक हैं परन्तु अपनी स्थिति में एक हैं। अर्थात अपने विचारों, धारणाओं और सिद्धांतों में एक-रूपता में सुदृढ़ हैं। यहाँ बात विभिन्नता में एकता की नहीं हो रही है बल्कि अनेकों के विचार या धारणा या सिद्धांतों की एकता की हो रही है।


 संस्थागत एकता

  संस्थागत एकता एक बहुत ही महत्वपूर्ण पहलु होता है किसी भी परिवार, समाज या देश की उन्नति के लिये।  यदि पारिवारिक संस्था में सभी सदस्यगणों में विचारों, धारणाओं या सिद्धांतों में एकता है तो कोई दो राय नहीं कि उस परिवार की उन्नति न हो। वह परिवार चहुमुखी ओर से सुरक्षित, मजबूत व संपन्न होता है। परन्तु यदि उनमें विचार, धारणा या सिद्धांत में विभिन्नता पाई जाये तो निसंंदेह वह परिवार असुरक्षित, कमजोर व दरिद्र हो जाता है। ठीक यही स्थिति समाज के संदर्भ में भी लागु होती है और किसी देश के संदर्भ में भी।

 गणतांत्रिक प्रजातंत्र की एकता एक भ्रम है !

  गणतांत्रिक प्रजातंत्र के संदर्भ में लोग एकता का बड़ा बखान करते हैं। खास करके भारत देश के संदर्भ में यह स्लोगन प्रसिद्ध है - 'विभिन्नता में एकता।' निसंदेह ! हजारों वर्षों से भारत देश एक आश्चर्यजनक ढंग से अपनी विभिन्नता के बावजूद एकता के सुत्र में बन्धा रहा है जो की एक प्रशंसनीय बात है। परन्तु इसका श्रेय केवल यहाँ की भगौलिक स्थिति को ही दिया जा सकता है। यहाँ की भौगोलिक स्थिति ही ऐसी है जिसने भी यहाँ आक्रमण किया या यहाँ शासन करना चाहा, तो उसे न चाहते हुये भी यहाँ की विभिन्नता को स्वीकारना पड़ा।

  इस प्रकार बाहर से देखने पर तो विभिन्नता में एकता परिलक्षित होती है परन्तु अंदर ही अंदर कोई भी यहाँ एक नहीं। सब के सब बँटे हुये हैं - भाषा, धर्म, जाति, संप्रदाय, राजनीति और वर्ग के आधार पर। यह तो कुछ संवैधानिक कड़े कानून हैं जिनके कारण इनमें विस्फोट नहीं होता, अन्यथा स्थिति तबाही की सुरक्षित है।
 इसीलिये राजतन्त्र को एक चोर का शासन तथा प्रजातन्त्र को सो चोरों का शासन कहा गया है। इसी कारण लोकतांत्रिक देश की आन्तरिक व ढांचागत उन्नति अन्य तंत्रों के बनिस्बत बड़ी धीमी गति से होती है।


 धर्मों की विभिन्नता भी एक भ्रम है !

  धर्म या आस्था के संदर्भ में भी अनेकों मत हैं जिनसे प्राचीनकाल से लेकर वर्तमान युग तक का मनुष्य बहुत कन्फ्यूज और दुखी है। अधिकतर इस तरह की आस्थाओं ने मनुष्य को समझाने से अधिक डराने का काम किया है। किसी भी धर्म की गहराइयों में यदि झांका जाये तो हम उनमें एक वैज्ञानिक पहलु पायेंगे। जैसे, नाना प्रकार के देवी-देवताओं की आराधना के पीछे एक वैज्ञानिक ज्ञान है, तो उसी प्रकार एकेश्वर की आराधना के पीछे भी एक वैज्ञानिक ज्ञान है। धर्म में त्रिएक्त्व का सिद्धांत भी पूर्णता एक वैज्ञानिक ज्ञान ही है।

  विभिन्न देवी-देवताओं की आराधना, इसकी वैज्ञानिक महत्ता हिन्दु वेदिक ज्ञान हमें बताते हैं।
 केवल एक ईश्वर की आराधना, इसका वैज्ञानिक ज्ञान हमें इस्लाम सिखाता है।
 त्रिएक्त्व की आराधना की वैज्ञानिक महत्ता हमें ईसाइत बताती है।  अनेकों देवी-देवता की आराधना के पीछे का रहस्य यह है कि प्रत्येक की महत्ता को स्वीकार करना, जो कुछ भी इस सृष्टि में है और इस सृष्टि से परे है, उनकी प्राण-उर्जा को अपनी भलाई अथवा कल्याण के लिये सद्पयोग करना।
  एकेश्वरवाद में केवल सर्वसृष्टि के मूल को ही महत्ता देना होता है। केवल उसी एक की प्राण-उर्जा को अपनी भलाई अथवा कल्याण के लिये सद्पयोग करना।
 त्रियेक्त्व के सिद्धांत में तीन की एकता (Tricotmy) को स्थापित करके उनकी महत्ता को महिमित किया जाता है और अपनी भलाई अथवा कल्याण के लिये उनकी प्राण उर्जा का सद्पयोग किया जाता है।

  जहाँ जिस भी परिवार, समुदाय, समाज या देश में विचार, धारणा और सिद्धांत में एकता सुदृढ़ हो जाती है तो वहाँ प्रगति का मापदंड उच्च ठहराता है। परन्तु इसकी सबसे बड़ी बिडंबना यह होती है कि जहाँ केवल 'एकता' होती है वहाँ 'निर्ममता' भी होती है। जैसे, धर्म की एकता, राजनीति की एकता या फिर किसी भी क्षेत्र की एकता। जब कभी कोई भिन्न विचार, धारणा या सिद्धांत को लेकर आये तो उसे 'एकता की भूमि' में बर्दास्त नहीं किया जाता है। उसे इसका मूल्य चुकाना ही पड़ता है अपनी जान खोकर भी।


 अत: एकता का सिद्धांत निसंदेह बल देता है, परन्तु यह भी यथार्थ है कि एकता अनेकता का हत्यारा बन जाता है। 
 भारत के संदर्भ में यहाँ की अनेकता परस्पर विरोधाभासी है। इसके लिये यहाँ के विद्वानों को धर्म से लेकर के हर क्षेत्र तक के ज्ञान में बहुत करके एकता के तत्व को उकेरते रहना चाहिये, ताकि वर्तमान व भविष्य में कोई अशांति या उपद्रव का सामना न करना पड़े।

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