*परम-ईश्वर एक नहीं है ! Is God one in hindi*

 
ईश्वर एक है या अनेक हैं ?

परम-ईश्वर एक नहीं है ! Is God one in hindi

    इस संसार में सामान्य लोगों का मानना है कि परम-ईश्वर एक है।
 तो क्या वाकेई में परम-ईश्वर एक है ?, या फिर ईश्वर एक है या अनेक हैं?
 हाँ, यह एक बुनियादी विषय है जिस पर चर्चा करने की आवश्यकता है। इस संदर्भ में इस लेख का संबन्ध नास्तिकों से कदापि नहीं है, इसका संबन्ध केवल आस्तिकों से ही है।


 आस्तिकों का वर्गीकरण

  इस संसार में यदि नास्तिकों का वर्गीकरण किया जाये तो हम पाते हैं की नास्तिकों का कोई वर्गीकरण नहीं किया जा सकता है। क्योंकि नास्तिकों का समूह केवल एक ही होता है, और वे केवल नास्तिक होते हैं, जो केवल परम-ईश्वर या ईश्वरों की सत्ता को स्वीकार नहीं करते। बाकि मामलों में उनके विचार और चरित्र अलग-अलग हो सकते हैं, जैसे कि आस्तिकों के भी होते हैं।
 
 परन्तु यहाँ समस्या यह है कि इस संसार में आस्तिकों का वर्गीकरण बहुतायत से किया जा सकता है, और हर आस्तिक अपने वर्ग की आस्था को दूसरी आस्थाओं के बनिस्बत उत्तम व यथार्थ सत्य मानता है। इसी बिन्दु से सारी समस्याओं की शुरुवात होती है, क्योंकि ये आस्थाएँ ही मनुष्य के मानवतावादी हृदय को खा जाती हैं और उन्हें एक कठोर, कट्टर तथा एक निकृष्ट मानव बना देती हैं।

  यहाँ कुछ तथ्य उकेरे जा रहे हैं जिन पर यदि गौर किया जाये तो स्पष्टतया हम पायेंगे कि परम-ईश्वर एक नहीं है।:-

  हिन्दु धर्म  
  हिन्दु धर्म के अनुसार, परम-ईश्वर अदृश्य, निराकार व एक निष्क्रिय प्राणी है, जो किसी भी जीव या मनुष्य की सृष्टि नहीं करता। वह स्वयं किसी भी मनुष्य के जीवन तथा उसके कर्म विधान में हस्तक्षेप नहीं करता। उस परमेश्वर ने सृष्टि निर्माण से लेकर सृष्टि समापन तक का सारा काम-काज देवताओं के हाथों सौंप रखा है। इनमें तीन देवता प्रमुख हैं। ये विभिन्न देवी देवतायें हीं सृष्टि व मनुष्य जीवन में हस्तक्षेप कर सकते हैं। इनका प्रभाव सृष्टि व मनुष्यों पर तथा मनुष्यों के कर्म-धर्म का प्रभाव इन पर पड़ता है।
   बुद्ध धर्म   
 बुद्ध धर्म में परमेश्वर की शुन्यवादी कल्पना है। अर्थात मानो तो ठीक, न मानो तो भी ठीक।
  जैन धर्म  
  जैन धर्म में परमेश्वर की धारणा है ही नहीं। वहाँ तो श्रेष्ठ व अतिप्राचीन गुरु को ही परमेश्वर मान लिया गया है। यदि केवल्य ज्ञान प्राप्त कर लिया जाता है तो एक साधारण मनुष्य को भी परम-गुरु के समकक्ष मान लिया जाता है।
 मुस्लिम धर्म   
 मुस्लिम धर्म की धारणा भी बड़ी ही रोचक है। एक जमाना था जब अरब देश में लोग *365 देवी-देवताओं की उपासना किया करते थे, और उन देवी-देवताओं के प्रधान देवता का उपासना स्थल अरब के *मक्का में था। अरब के लोग इस प्रधान देवता को *अल्लाह कहा करते थे। यह माना जाता था कि अल्लाह वह है जिसकी *तीन बेटियां (देवियां) हैं। यह अल्लाह पूरी कायनात का प्रमुख ईश्वर है।  
 परन्तु उसके सैंकडों वर्षों बाद *मुहम्मद जी के विचार यहुदी+क्रिश्चनस, जो की येशु जी के अनुयायी थे उनके संपर्क में आने के बाद उनके स्वयं के अल्लाह के संदर्भ में बदल गये। अब मुहम्मद जी ने अपने अल्लाह के संदर्भ में एक नया अपडेटिड ज्ञान दिया। इस प्रकार अल्लाह एक प्रमुख ईश्वर न होकर के अब सर्वोच्च ईश्वर (परमेश्वर) हो गया। अब उसकी कोई बेटियां नहीं। अब वो अकेला था, अकेला है और सदा अकेला ही रहेगा। परन्तु जो उसके हैं जो उस पर विश्वास रखते और ईमान लाते हैं केवल वे ही अल्लाह के साथ रहेंगे।

 इस प्रकार 365 देवी-देवताओं के अस्तित्व को नकार दिया गया। सृष्टि की उत्त्पति व उसके अन्त की कहानी इस्लाम धर्म में कुछ और है। मनुष्य की दिनचर्या के कायेदे और कानून कुछ और हैं जो किसी भी अन्य आस्थाओं से कदापि मेल नहीं खाते।

   यहुदी धर्म   
  यहुदी धर्म में भी सृष्टि की रचना से लेकर सृष्टि के अन्त की कहानी जो दी गई है वो भी अलग है। पर काफी हद तक मुहम्मद जी के इस्लाम धर्म से मेल खाते हैं। परन्तु यह ऐसा इसलिये है क्योंकि मुहम्मद जी ने वास्तव में यहुदी परंपरा से ये ज्ञान कुछ करके एडाप्ट किया था।
 यहूदियों का परमेश्वर *यहोवा है। जो अकेला था, अकेला है और सर्वदा अकेला ही रहेगा। उसके अलावा कोई दूसरा ईश्वर नहीं। अर्थात अन्य देवताओं के अस्तित्व को शैतान की ओर से माना जाता है। इनकी धारणाओं में बहुत सी बातें हैं जो अन्य आस्थाओं से पूरी तरह अनमेल हैं।

    इसाई धर्म   
 इसाई धर्म में सृष्टि उत्त्पति व अन्त के संदर्भ में यहूदियों ही की आस्था का अंश है। ऐसा इसीलिये है क्योंकि इसाई धर्म की उत्त्पति यहुदी संप्रदाय में ही से हुई थी। ईसा के अनुयायियों ने अपनी बुद्धि व विवेक के अनुसार यहोवा को *त्रियेक्त्व में विभक्त कर दिया। अर्थात इसाई धर्म यहुदी धर्म ही है किन्तु अब यह अपडेटिड है इसीलिये इसमें त्रियेक्त्व है।

  इसाई धर्म में भी यहुदी धर्म ही की भाँति यहोवा एक सर्वोच्च ईश्वर है, मूर्ती-पूजा वर्जित है, अन्य देवताओं को झूठा कहा गया।

  जैसा की मुस्लिमों में मुस्लिम और काफिरों का भेद-भाव है ठीक उसी प्रकार इसाईयों में भी विश्वासी और अन्यजातियता (अविश्वासी) का भेदभाव है।

 निष्कर्ष पर आयें और निर्णय लें !

   अब जरा चित लगा कर सोचें कि ईश्वर एक है या फिर अनेक हैं ? हिन्दु धर्म में परमेश्वर की परिभाषा कुछ और है, उसका चरित्र और स्वभाव कुछ और है।
 जबकि मुस्लिमों का अल्लाह मानों कोई आदमी है जिसका स्वभाव और चरित्र कुछ और है।
 यहूदियों का यहोवा भी मानों कोई असमाजिक व्यक्ति है जिसका स्वभाव और चरित्र कुछ और है।
 इसाईयों का एली जो कि यहोवा है, यीशु के रूप में आने पर उसने अपना स्वभाव और चरित्र एकाएक बदल दिया है। अब वह पहले की भाँति सनकी, क्रोधी और अहिश्नु नहीं और न ही वह किसी का रक्त बहाने वाला व रक्तपात करवाने वाला ही है। वह अब प्रेम और करुणा की मूर्त बन गया है और हरेक मनुष्य के जीवन में हस्तक्षेप कर सकता है।
  इन सभी आस्थाओं में सबसे बड़ी एक मार्के की बात तो यह है कि सृष्टि (उत्त्पति व अन्त) व मनुष्य जीवन के संदर्भ में तथा उनके परमेश्वर की आज्ञाओं में पूर्णतः अलग-अलग बात है, जो किसी भी लिहाज से एक दूसरे से मेल नहीं खातीं। इन बातों से बढ़कर भेद की बात यह है कि हिन्दुओं के धार्मिक स्मारक अथवा मंदिर, यहुदिओं, मुसलामानों, ईसाइयों और बौद्धों के धार्मिक स्मारकों में कितना बड़ा अंतर है !, और ये सब इसीलिए है क्योंकि उनके ये स्मारक उनके परमेश्वर के लोक के स्मारकों की नक़ल हैं; इसका मतलब यह है कि उनके ईश्वर जिस दुनिया से आये थे उन्होंने अपनी उसी दुनियाँ के अपने घर या स्मारकों की शकल के नक़्शे अपने मानने वालों के दिलो-दिमाग में डाल दिए, ताकि इस दुनियाँ के लोग उसकी उस दुनियाँ से जुड़ सके. हाँ, इसका सीधा-सीधा सा अर्थ है कि ये सभी एलियंस गॉड्स हैं इनके अलावा और कुछ नहीं !
 अब बतायें, क्या परमेश्वर एक है ?
 हाँ, कदापि एक नहीं।
 हिन्दुओं का परमेश्वर अलग है,
 बुद्धों और जैनों का अलग है,
 यहूदियों का परमेश्वर अलग है,
 मुस्लिमों और इसाईयों का परमेश्वर सर्वथा अलग-अलग हैं।
 क्योंकि उन परमेश्वरों का स्वभाव और चरित्र अलग-अलग है,
 उनका ज्ञान अलग-अलग है,
 उन परमेश्वरों की मंशा अलग-अलग है,
 उन परमेश्वरों के आदेश मानवता के लिये अलग-अलग हैं जो कि उन्हीं की आस्था के धर्मशास्त्रों में अभिव्यक्त हैं।

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