शहरी बनाम ग्रामीण संस्कृति (शहरों से शीघ्र पलयान करो)! City vs Village culture in hindi
जब से मनुष्य की सृजना हुई है तभी से उसने अपने जीने की जिस कला का विकास किया है उसे ही संस्कृति कहते हैं। मनुष्य सँस्कृति में भी अलग-अलग सँस्कृतियों का निर्माण हुआ, और ये सब उनके समुदायों के पृथ्वीभर में अलग-अलग दिशाओं में फैलने के कारण हुआ। अब इन सँस्कृतियों ने अपनी-अपनी सँस्कृतियों के जिन स्थाई मानदंडों को स्थापित किया उन्हें ही सभ्यताएं कहते हैं।
परन्तु फिर भी शहरी संस्कृति उक्त समाज या देश की संस्कृति की एक जीवित पहचान होती है, क्योंकि इसमें निरंतर हलचल रहती है, चाहे राजनीति के क्षेत्र की बात हो, धर्म के क्षेत्र की बात हो, कला के क्षेत्र की बात हो या फिर किसी भी क्षेत्र की बात हो, इसमें Updated जीवन होता है जो आने वाले भविष्य के जीवन (संस्कृति) की बुनियाद होती है।
जितने भी घृणित और अमानवीय कार्य होते हैं वे सब के सब शहरी संस्कृतियों की गोद में रह कर ही होते हैं।
*राजनीति की अमानवीयता के केंद्र शहर ही होते हैं,
धर्म की अमानवीयता का केंद्र शहर ही होते हैं,
अर्थ जगत की अमानवीयता का केंद्र शहर ही होते हैं,
कला के क्षेत्र की अमानवीयता का केंद्र भी शहर ही होते हैं !
इसलिये इस युग में जो कोई शहरों में बसा रहेगा उसके सिर पर मौत का तांडव सदैव बना रहेगा- "कभी भूकम्प से, आगजनी से, यान-विमान के क्रेश से, विस्फोटों से, आतंकवाद से, अराजकता की हिंसा से, धर्म-कर्म के झगड़े से, मांग अधिकार के झगड़े और शोषण व अत्याचार के बदले से, चोरी, लूटपाट, हिंसा, अपहरण, बलात्कार और बहुत से घृणित घृणित काम इन शहरों में लोगों की बहुआबादी के बीच हुआ करेंगी; क्योंकि शहरों में अस्तित्व को बनाये रखने की मांग है- पैसा, पैसा और सिर्फ पैसा। इसलिये मानव मन इसे पाने के लिये शैतान की राह पर भटक जाता है और जो व्यक्ति नाकामयाबी और हताशा में मायूस हो जाता है वो अपना भड़ास हिंसा, लूट और बलात्कार के जरिये निकालता है।"
परमेश्वर की योजना में भी मनुष्य का पापयुक्त हो कर शहरी संस्कृति की योजना नहीं थी। जलप्रलय से पूर्व पूर्व जब मनुष्यों ने शहरी सभ्यताओं का विकास किया था तो प्रकृति ने उन सभी शहरी सभ्यताओं का समूल नाश भी किया था जिनके कारण समस्त मानवों का भी एक साथ नाश हुआ था।
अब के इस युग में भी प्रकृति अपने समयों में अपना क्रोधी हाथ बढ़ाती है और शहरों में विनाश का तांडव मचाती है, जिसमें गेहूँ के साथ घुन भी पिस जाता है।
इस युग में शहरों से गावों या पहाड़ों की ओर पलायन मनुष्य की अंतरात्मा की मांग है।
अत: जिसके पास बुद्धि हो वे अपनी अंतरात्मा की आवाज को सुन कर गावों या पहाड़ों की ओर शिघ्रातिशीघ्र पलायन करें !
ग्रामीण सँस्कृति Culture
ग्रामीण संस्कृति में उस सभ्यता का प्राचीनतम रूप वर्तमान में भी निरंतर बना रहता है, जिससे उस समुदाय या देश की पहचान बनी रहती है।शहरी संस्कृति
शहरी संस्कृति में उस समुदाय या देश की Updated सँस्कृति निरंतर बनी रहती है। इसमें उस सभ्यता की प्राचीनता ही विद्यमान हो यह आवश्यक नहीं होता। वास्तव में शहरी संस्कृति की पहचान यह होती है की इसमें अन्य समुदायों या देशों की संस्कृतियों का मिश्रण भी हो जाता है। कुल मिलाकर यह उक्त सभ्यता की मूलतः और मूल्यता की विशुद्ध पहचान नहीं होती।परन्तु फिर भी शहरी संस्कृति उक्त समाज या देश की संस्कृति की एक जीवित पहचान होती है, क्योंकि इसमें निरंतर हलचल रहती है, चाहे राजनीति के क्षेत्र की बात हो, धर्म के क्षेत्र की बात हो, कला के क्षेत्र की बात हो या फिर किसी भी क्षेत्र की बात हो, इसमें Updated जीवन होता है जो आने वाले भविष्य के जीवन (संस्कृति) की बुनियाद होती है।
शहरों से शीघ्र पलायन करो !
शहरी संस्कृति से भरे इस युग में जहाँ एक ओर संस्कृतियों का विकास हो रहा है वहीं दूसरी ओर विभिन्न संस्कृतियों का बिगड़ाव भी हो रहा है।जितने भी घृणित और अमानवीय कार्य होते हैं वे सब के सब शहरी संस्कृतियों की गोद में रह कर ही होते हैं।
*राजनीति की अमानवीयता के केंद्र शहर ही होते हैं,
धर्म की अमानवीयता का केंद्र शहर ही होते हैं,
अर्थ जगत की अमानवीयता का केंद्र शहर ही होते हैं,
कला के क्षेत्र की अमानवीयता का केंद्र भी शहर ही होते हैं !
इसलिये इस युग में जो कोई शहरों में बसा रहेगा उसके सिर पर मौत का तांडव सदैव बना रहेगा- "कभी भूकम्प से, आगजनी से, यान-विमान के क्रेश से, विस्फोटों से, आतंकवाद से, अराजकता की हिंसा से, धर्म-कर्म के झगड़े से, मांग अधिकार के झगड़े और शोषण व अत्याचार के बदले से, चोरी, लूटपाट, हिंसा, अपहरण, बलात्कार और बहुत से घृणित घृणित काम इन शहरों में लोगों की बहुआबादी के बीच हुआ करेंगी; क्योंकि शहरों में अस्तित्व को बनाये रखने की मांग है- पैसा, पैसा और सिर्फ पैसा। इसलिये मानव मन इसे पाने के लिये शैतान की राह पर भटक जाता है और जो व्यक्ति नाकामयाबी और हताशा में मायूस हो जाता है वो अपना भड़ास हिंसा, लूट और बलात्कार के जरिये निकालता है।"
परमेश्वर की योजना में भी मनुष्य का पापयुक्त हो कर शहरी संस्कृति की योजना नहीं थी। जलप्रलय से पूर्व पूर्व जब मनुष्यों ने शहरी सभ्यताओं का विकास किया था तो प्रकृति ने उन सभी शहरी सभ्यताओं का समूल नाश भी किया था जिनके कारण समस्त मानवों का भी एक साथ नाश हुआ था।
अब के इस युग में भी प्रकृति अपने समयों में अपना क्रोधी हाथ बढ़ाती है और शहरों में विनाश का तांडव मचाती है, जिसमें गेहूँ के साथ घुन भी पिस जाता है।
इस युग में शहरों से गावों या पहाड़ों की ओर पलायन मनुष्य की अंतरात्मा की मांग है।
अत: जिसके पास बुद्धि हो वे अपनी अंतरात्मा की आवाज को सुन कर गावों या पहाड़ों की ओर शिघ्रातिशीघ्र पलायन करें !