*स्वस्थ रहने के सहज तरीके !*

स्वस्थ रहने के सहज तरीके !

  अंग्रेजी में एक कहावत है, "If you lose money then nothing goes, but if you lose health then you lose everything !" इसी तरह हिन्दी में भी कहा गया है, "स्वास्थ्य से बड़ा उत्तम धन कोई नहीं।"

  स्वास्थ्य का अर्थ केवल यह नहीं होता कि कैसे हम बिमारियों से ठीक हों या उनसे बचे रहें, बल्कि स्वास्थ्य का अर्थ यह होता है कि हमें इस बात की चिंता ही न करनी पड़े कि हम विभिन्न बिमारियों से कैसे निजात पायें या उनसे दूर रहा जाये। 

  स्वास्थ्य की परिभाषा :- "मनुष्य न केवल शरीर से वरन मन, प्राण और आत्मा से भी स्वस्थ हो !"

  किन्तु अफसोस! आज स्वास्थ्य के सन्दर्भ में केवल शारीरिक व्याधियों और स्वस्थत: के बारे में ही फोकस किया जा रहा है, जो कि एक बेहद ही अफसोस जनक बात है।

 स्वास्थ्य को एक विषय बनाते हुये इस दशक में कुछ स्वार्थी लोगों ने एक मकडजाल को बुनते हुये इस टापिक को भरपूर लाभ का (आय कमाने का जरिया) एक जरिया बना दिया है। बहुसंख्यक लोग अपने-अपने स्वास्थ्य की चिंता में घुलते हुये आये दिन Internate में स्वास्थ्य से संबंधित विषयों के निदान की जानकारियाँ ढूँढते रहते हैं। बदले में होता कुछ भी नहीं, क्योंकि आज की स्वास्थ्य जांच पद्धति पूर्णतः Lab-tests और Sonographies पर निर्भर करती है; तथा मनुष्य की स्वयं की जीवन जीने की पद्धति पर। यहाँ तक की डाक्टरस व वेद-हकीम भी इन्हीं पर निर्भर करते हैं, क्योंकि उनमें ऐसी दक्षता होती ही नहीं जिससे वे प्राचीनकाल के वेद-हकीमों की तरह बिमारियों की जड़ बता सकें।

 तो आइये स्वास्थ्य के इस सीरीज को आरम्भ करते हैं "कैसे स्वस्थ रहा जाये !*, स्वस्थ रहना और स्वास्थ्य को पाना दो अलग अलग विषय हैं, हम यहाँ बात करेंगे कि स्वस्थ कैसे रहा जाये ! :-

  गर्भावस्था में स्वस्थ रहने की तकनीक! 

   जब कोई स्त्री गर्भवती होती है तो उसे अपने व अपने होने वाले बच्चे के स्वास्थ्य की ओर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिये। उसे अपने भोजन में हर प्रकार के भोज्य पदार्थों का सेवन करना चाहिये। परन्तु उसे अपने रात्रि के भोजन में कभी भी प्रोटीन-युक्त भारी भोज्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिये।

  यदि महिला को अपने भोजन में भाँति-भाँति के खाद्य-पदार्थों की उपलब्धि न हो पाये तो कम से कम उसे किसी भी रूप में अपने भोजन में गुड, शहद, पालक, मेथी, नीम्बु व दहीं का सेवन तो अवश्य ही करना चाहिये।

  एक गर्भवती महिला को अपने छोटे-मोटे घरेलु काम-काजों के साथ-साथ अपना ध्यान हमेशा उत्तम विचारों की ओर ही केंद्रित रखना चाहिए। 
उन्हें ईश्वरवादी होना चाहिये, और बिना किसी नीजि स्वार्थ के ईश्वर की भक्ति निरंतर करनी चाहिये। इससे उनका मन शान्त चित रहेगा। यदि माता का मन शान्त रहता है तो गर्भ में पल रहे बच्चे का मन भी शान्त रहेगा। इससे होगा यह कि जन्म लेने के बाद बच्चे को किसी भी प्रकार के मनोविकार कभी न घेरेंगे। मनोविकार से रहित होने के कारण बच्चा भाँति-भाँति के शारीरिक व्याधियों से लगभग अछूता ही रहेगा।

क्या खायें और क्या न खायें !

  मनुष्य के लिये प्रकृति ने इस धरती पर भाँति-भाँति के भोज्य पदार्थ उपलब्ध कराये हैं।  मनुष्य बेखटके उन्हें खा सकता है। परन्तु मनुष्य उन वस्तुओं का सेवन कदापि न करे जिन पर मनुष्य की वैज्ञानिक्ता का प्रयोग हुआ हो। हाँ, वो ऐसे बीजों के पदार्थों का सेवन कभी न करे जिन्हें प्रयोगशालाओं में परिवर्तित किया गया हो। इसके अतिरिक्त मनुष्य को किसी भी पेस्टीसाइडिड पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिये। 
 आज फलों-सब्जियों, दालों और अनाजों में भरपूर मात्रा में पेस्टीसाईड होता है। इसलिये जितना हो सके लोगों को पेस्टिसाइडिड चीजों का सेवन नहीं करना चाहिये। यदि आपके पास थोडी सी भी भूमि का टुकड़ा है तो उस पर सब्जियां लगाएँ, फल और अनाज लगाएँ, पर उन पर कभी भी स्प्रे (पेस्टीसाईड) न करें। स्प्रे रहित उन पदार्थों का ही नित्य सेवन करें। बाजार में उपलब्ध डिब्बा बन्द भोज्य पदार्थों का सेवन न करें।

 इन तरीकों से मनुष्य अपने जीवन से 70% बिमारियों से बचा रहेगा, चाहे वे बिमारी शारीरिक हों या मानसिक। उसकी उम्र पेस्टीसाइडिड युग से पहले के युग की भाँति निरोगी व लम्बी हो जायेगी।

दंतरोगों से मुक्ति !    

 क्या हमने किसी गाय, बेल, गधे, घोड़े या किसी भी जानवर को Toothbrush करते देखा है ? नहीं न ! तो मनुष्य भी जो कि एक उत्तम श्रेणी का जानवर है क्योंकर उसे Toothbrush की जरुरत पडी!
 शुरु शुरु में जब Toothpaste और Toothbrush नहीं बनाये गये थे तो उस वक्त दांत-रोगों की संख्या संपूर्ण विश्व-जनसंख्या का केवल २ से ३ % ही था। तो उसके बाद आधुनिक विज्ञान के चलते कुछ कंपनियों ने दाँतों को चमकाने, सुगन्धित करने व दर्द से राहत देने के ऐजेंडे को लेते हुये केवल अपने लाभ के हेतु Toothpaste और Toothbrush का प्रचार किया। इसका परिणाम यह हुआ कि बहुसंख्यक लोग इनकी इस लुभावनी मशुरी पर जो की अस्पतालों से सर्टीफाईड हुई पर अत्याधिक विश्वास किया।

  इस प्रकार जो की विश्व की जनसंख्या का ३% हिस्सा दंत रोगों से परेशान था मगर अब दांत-रोगों का रेशो सभी में अत्यधिक बढ़ गया। जहाँ Toothpaste और Toothbrush का आविष्कार दांतों को चमकाने और सुगंधित करने के एजेण्डे के रूप में हुआ था, अब इसी के चलते दंत-रोगों की अत्याधिक मात्रा में इतनी वृद्धि हो गई कि आज विभिन्न देशों की सरकारों को अपने-अपने अस्पतालों में दांत-रोगों का एक अलग सा संभाग बनाने की आवश्यकता पडी।

  अत: दांत रोगों से मुक्ति का एक ही 
सर्वोत्तम उपाये है, वह यह है कि मनुष्य अपने बाल्यावस्था ही से Toothpaste और Toothbrush न करे।  उसे अपने हर खाने-पीने के तुरन्त बाद अपनी उँगल से कुल्ला कर लेना चाहिये और मुह में पानी भर के गरारे करना चाहिये। देशी दंत पाउडर का इस्तमाल अगर करना हो तो उँगल से ही करना चाहिये। वैसे भी दाँतों की रक्षा के लिये प्रकृति ने हर जानवर को जीभ दी है, और मनुष्य को तो हाथ भी दिये हैं जिससे की वह अपनी उँगल से दांतों का कुल्ला कर सके। 

  प्रिय पाठको,
 आपको यह लेख कैसा लगा ?
 पढ़ कर जरुर कमेंट करना। इसी स्तम्भ के लेख आगे लिखता रहूंगा।
    धन्यवाद 

2 टिप्पणियाँ

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