परमेश्वर कैसा है ? |
कौन है यह परमेश्वर ? (जानें विस्तार से!)
*परमेश्वर आत्मा है, परमेश्वर पवित्र-आत्मा है, वह परमात्मा है! तो आईये जानते हैं कि -परमेश्वर कैसा है ? :-
1. परमेश्वर आत्मा है :- इस दुनियां में जितने भी प्राणी हैं वे सभी शरीरधारी (आकारी) प्राणी हैं। चाहे देवी-देवता या स्वर्गदूूूत ही क्यों न हों (परन्तु परमेश्वर को आज तक कभी किसी ने नहीं देखा।) । न जाने इस असीम संसार में कितने आयाम हैं। लेकिन अनुमान में कहा जाता है कि दस आयाम हैं या चौदह आयाम हैं। इन आयामों में भी जितने ब्रह्माण्ड हैं उन ब्रह्मांडो के प्राणी भी कुछ तो स्थूल-शरीर वाले हैं, कुछ स्थूल और सूक्ष्म के बीच के प्राणी, तो कुछ सूक्ष्म प्राणी हैं। सूक्ष्म प्राणियों को 'दिव्य' भी कहा जाता है। दिव्य प्राणी भी आकारमय होते हैं। अधिकतर दिव्य संसारों को तथा स्थूल संसारों को बनाने व बिगाड़ने वाले यहीं के प्राणी होते हैं। हमारे ब्रह्मांड के सन्दर्भ में इनमें मुख्यत: आते हैं - शंकर, विष्णु और ब्रह्मा जी। ये तीनों ही हमारे इस असीम ब्रह्मांड के सर्वोच्च देवता हैं। जिनका कार्य किसी सर्वोच्च सेवक (लोकतंत्र के प्रधान-मंत्रि की तरह) की तरह होता है। ये तीनों स्वयं सत-रज-तम से परिपूर्ण होते हैं और इसी आधार पर इस ब्रह्मांड के लोकों को चलाते हैं।
2. परमेश्वर पवित्र-आत्मा है :- इन संपूर्ण आयामों के संपूर्ण ब्रह्मांडों में जितने भी प्राणी हैं वे सभी सत-रज और तम के गुणों के अधीन (वश में) हैं। परन्तु परमेश्वर इन गुणों से रहित है। क्योंकि वह स्वयं इन आयामों और ब्रह्मांडों में नहीं है। उनकी तो मात्र इस सृष्टि पर नजर भर है। त्रिगुणों से रहित होने के कारण परमेश्वर को पवित्र-आत्मा कहा जाता है। बाकि जितने भी स्थूल-शरीरधारी प्राणी हैं उन सभी की आत्माएं तो तीनों गुणों के अधीन होने के कारण 'अति-पवित्र' नहीं कहलाई जातीं हैं।
3. परमेश्वर परमात्मा है :- परमेश्वर की सृष्टि में आने वाली समस्त शरीर-धारियों की आत्माएं सृष्टि-बन्धन में होने के कारण साधारण तथा महान तो कहलाई जा सकती हैं परन्तु 'परम' नहीं। परमेश्वर सृष्टि से बाहर होने के कारण 'परम-आत्मा' कहलाए जाते हैं।
1. परमेश्वर आत्मा है :- इस दुनियां में जितने भी प्राणी हैं वे सभी शरीरधारी (आकारी) प्राणी हैं। चाहे देवी-देवता या स्वर्गदूूूत ही क्यों न हों (परन्तु परमेश्वर को आज तक कभी किसी ने नहीं देखा।) । न जाने इस असीम संसार में कितने आयाम हैं। लेकिन अनुमान में कहा जाता है कि दस आयाम हैं या चौदह आयाम हैं। इन आयामों में भी जितने ब्रह्माण्ड हैं उन ब्रह्मांडो के प्राणी भी कुछ तो स्थूल-शरीर वाले हैं, कुछ स्थूल और सूक्ष्म के बीच के प्राणी, तो कुछ सूक्ष्म प्राणी हैं। सूक्ष्म प्राणियों को 'दिव्य' भी कहा जाता है। दिव्य प्राणी भी आकारमय होते हैं। अधिकतर दिव्य संसारों को तथा स्थूल संसारों को बनाने व बिगाड़ने वाले यहीं के प्राणी होते हैं। हमारे ब्रह्मांड के सन्दर्भ में इनमें मुख्यत: आते हैं - शंकर, विष्णु और ब्रह्मा जी। ये तीनों ही हमारे इस असीम ब्रह्मांड के सर्वोच्च देवता हैं। जिनका कार्य किसी सर्वोच्च सेवक (लोकतंत्र के प्रधान-मंत्रि की तरह) की तरह होता है। ये तीनों स्वयं सत-रज-तम से परिपूर्ण होते हैं और इसी आधार पर इस ब्रह्मांड के लोकों को चलाते हैं।
2. परमेश्वर पवित्र-आत्मा है :- इन संपूर्ण आयामों के संपूर्ण ब्रह्मांडों में जितने भी प्राणी हैं वे सभी सत-रज और तम के गुणों के अधीन (वश में) हैं। परन्तु परमेश्वर इन गुणों से रहित है। क्योंकि वह स्वयं इन आयामों और ब्रह्मांडों में नहीं है। उनकी तो मात्र इस सृष्टि पर नजर भर है। त्रिगुणों से रहित होने के कारण परमेश्वर को पवित्र-आत्मा कहा जाता है। बाकि जितने भी स्थूल-शरीरधारी प्राणी हैं उन सभी की आत्माएं तो तीनों गुणों के अधीन होने के कारण 'अति-पवित्र' नहीं कहलाई जातीं हैं।
3. परमेश्वर परमात्मा है :- परमेश्वर की सृष्टि में आने वाली समस्त शरीर-धारियों की आत्माएं सृष्टि-बन्धन में होने के कारण साधारण तथा महान तो कहलाई जा सकती हैं परन्तु 'परम' नहीं। परमेश्वर सृष्टि से बाहर होने के कारण 'परम-आत्मा' कहलाए जाते हैं।
हमारे ब्रहमांड की रचना
हमारे ब्रहमांड की रचना करने का श्रेय परमेश्वर के 'ब्रह्म-रूप' (सदाशिव) को जाता है। परमेश्वर के इस रूप को *ब्रह्म-परमेश्वर कहा जाता है। ब्रह्म-परमेश्वर ने इस ब्रहमांड की रचना करने के लिये सर्वप्रथम तीन प्रमुख देवताओं को बनाया। इनके द्वारा ही ब्रह्म-परमेश्वर ने इस ब्रहमांड में 'चौदह-भुवनों' (लोकों) की रचना की। इस ब्रहमांड में सर्वोच्च स्थिति में त्रिगुण ईश्वर हैं। इनसे नीचे इन्हीं के द्वारा रचित प्राणियों के लोक हैं।
प्रथम श्रेणी में *वेकुंठ लोक है। इस लोक का स्वामी देवता ब्रह्म-परमेश्वर की रचना भर है। वह स्वयं परमेश्वर नहीं है, क्योंकि परमेश्वर अनादि और अजन्मा है। परन्तु विष्णु तो जन्मा है। उनकी एक निर्धारित आयु है, और वह अनादि नहीं है।
द्वितीय श्रेणी में *ब्रह्मा लोक (सतलोक) आता है। इस लोक का स्वामी देवता भी ब्रह्म-परमेश्वर की रचना भर है। वह स्वयं परमेश्वर नहीं है। क्योंकि वह भी अनादि और अजन्मा नहीं है।
तृतीय श्रेणी में *शंकर लोक आता है। इस लोक का स्वामी देवता भी ब्रह्म-परमेश्वर की रचना भर है। वह स्वयं परमेश्वर नहीं है। क्योंकि वह भी अनादि व अजन्मा नहीं है।
इनसे नीचे आने वाले *चौदह-भुवनों (लोकों) की स्तिथि इस प्रकार से है :-
1. तपोलोक :- सनकादि बालकों की दुनियाँ।
2. जनलोक :- बेराज नामक देवता की दुनियाँ।
3. महरलोक :- भृगु जैसे महान ऋषियों का घर। यहाँ के ऋषियों की आयु 4.32 अरब वर्ष होती है। अर्थात ब्रह्मा के एक दिन के बराबर।
4. ध्रुवलोक :- जहाँ आकाशगंगाओं और तारामंडलों का स्थान है। शास्त्रों में कहा गया है की समस्त लोकों के नाश होने पर भी ध्रुवलोक का नाश नहीं होगा।
5. *स्वर्गलोक (प्रथम स्वर्ग) :- 33 करोड़ देवी-देवताओं का घर। यह पृथ्वी के बीचों-बीच मेरुपर्वत पर स्थित है, जिसकी उंचाई 80 हजार योजन (चार कोस का एक योजन होता है।) है।
6. भुवंरलोक :- पृथ्वी और स्वर्ग के बीच के प्राणियों का लोक।
7. कर्मलोक अथवा मृत्युलोक :- यहाँ कर्म-बन्धन में बंधा मनुष्य कर्म करता है। इस लोक के प्रधान प्राणी मनुष्य का शरीर ही एक ऐसा द्वार है जहां से समस्त लोकों के प्राणी भी मुक्ति के लिये आशायें रखते हैं।
कर्मलोक से नीचे की दुनियाँ अधोलोक कहलाई जाती है।
9. वितल लोक।
10. सुतल लोक।
11. तलातल लोक।
12. महातलातल लोक।
13. रसातल लोक।
14. पाताल लोक।
अधोलोक का मतलब दर्द और पीडाओं से भरी दुनियाँ नहीं है, जैसा की समझा जाता है। यहाँ की दुनियाँ भी एक अलग ही ढंग की निराली दुनियां है। जिनमें पाताल लोक सबसे नीचे की दुनियां है।
अधोलोक और पाताल का अर्थ 'नरकलोक' नहीं है। क्योंकि स्वर्ग (Heaven) और नरक (Hell) का द्वार अभी परमेश्वर ने खोला ही नहीं है। स्वर्ग और नरक का भाग इस ब्रहमांड के समस्त लोकों के प्राणियों के लिये निर्धारित है।
द्वितीय श्रेणी में *ब्रह्मा लोक (सतलोक) आता है। इस लोक का स्वामी देवता भी ब्रह्म-परमेश्वर की रचना भर है। वह स्वयं परमेश्वर नहीं है। क्योंकि वह भी अनादि और अजन्मा नहीं है।
तृतीय श्रेणी में *शंकर लोक आता है। इस लोक का स्वामी देवता भी ब्रह्म-परमेश्वर की रचना भर है। वह स्वयं परमेश्वर नहीं है। क्योंकि वह भी अनादि व अजन्मा नहीं है।
इनसे नीचे आने वाले *चौदह-भुवनों (लोकों) की स्तिथि इस प्रकार से है :-
1. तपोलोक :- सनकादि बालकों की दुनियाँ।
2. जनलोक :- बेराज नामक देवता की दुनियाँ।
3. महरलोक :- भृगु जैसे महान ऋषियों का घर। यहाँ के ऋषियों की आयु 4.32 अरब वर्ष होती है। अर्थात ब्रह्मा के एक दिन के बराबर।
4. ध्रुवलोक :- जहाँ आकाशगंगाओं और तारामंडलों का स्थान है। शास्त्रों में कहा गया है की समस्त लोकों के नाश होने पर भी ध्रुवलोक का नाश नहीं होगा।
5. *स्वर्गलोक (प्रथम स्वर्ग) :- 33 करोड़ देवी-देवताओं का घर। यह पृथ्वी के बीचों-बीच मेरुपर्वत पर स्थित है, जिसकी उंचाई 80 हजार योजन (चार कोस का एक योजन होता है।) है।
6. भुवंरलोक :- पृथ्वी और स्वर्ग के बीच के प्राणियों का लोक।
7. कर्मलोक अथवा मृत्युलोक :- यहाँ कर्म-बन्धन में बंधा मनुष्य कर्म करता है। इस लोक के प्रधान प्राणी मनुष्य का शरीर ही एक ऐसा द्वार है जहां से समस्त लोकों के प्राणी भी मुक्ति के लिये आशायें रखते हैं।
कर्मलोक से नीचे की दुनियाँ अधोलोक कहलाई जाती है।
अधोलोक >
8. अतल लोक।9. वितल लोक।
10. सुतल लोक।
11. तलातल लोक।
12. महातलातल लोक।
13. रसातल लोक।
14. पाताल लोक।
अधोलोक का मतलब दर्द और पीडाओं से भरी दुनियाँ नहीं है, जैसा की समझा जाता है। यहाँ की दुनियाँ भी एक अलग ही ढंग की निराली दुनियां है। जिनमें पाताल लोक सबसे नीचे की दुनियां है।
अधोलोक और पाताल का अर्थ 'नरकलोक' नहीं है। क्योंकि स्वर्ग (Heaven) और नरक (Hell) का द्वार अभी परमेश्वर ने खोला ही नहीं है। स्वर्ग और नरक का भाग इस ब्रहमांड के समस्त लोकों के प्राणियों के लिये निर्धारित है।
भगवान और परमेश्वर में अन्तर
इस ब्रहमांड के समस्त लोकों के प्रधानों (ईश्वरों) को तो हम भगवान कह सकते हैं। क्योंकि वे सभी शक्तिशाली हैं। उनका ज्ञान-विज्ञान हमसे बढकर व अलग है। प्रकृति के पंचमहाभूतों पर उनका वश है, इसीलिये उन्हें (उन ईश्वरों को) भगवान कहते हैं।*भगवान > भ- भूमि, ग- गगन, व- वायु, अ- अग्नि, न- नीर।
इस ब्रहमांड के तीन प्रमुख देवता हीं प्रमुख भगवान हैं, जो समय-समय पर मनुष्य योनि में अवतरित होते रहते हैं। इसलिये इनके अवतारों को पुरूषावतार कहा जाता है। परन्तु यदि कोई मनुष्य स्वयं की कुंडलिनी को जागृत कर आज्ञा-चक्र तक पहुंच जाता है तो उस स्थिति में भी उस मनुष्य को पुरूषावतार कहा जाता है। अब इसमें भी उसमें किस तत्व की (गुण) प्रधानता है वह मनुष्य उसी प्रमुख ईश्वर का अवतार माना जाता है, जैसे, ब्रह्मा, विष्णु या फिर शंकर।
परमेश्वर कैसा है ,इस संदर्भ में, इनसे भिन्न परमेश्वर कभी भी पुरूषावतार नहीँ लेते। वह तो केवल *देहावतार लेते हैं। इस ब्रहमांड के अब तक के समस्त कल्पों में केवल *एक ही देहावतार हुआ है और वह भी बिना पुरुष के, अर्थात बिना जीवात्मा या देवात्मा के; बल्कि *पवित्र-आत्मा के द्वारा पवित्र स्त्री के संसर्ग से उत्त्पन्न मनुष्य ही देहावतार है। अब यह देहावतार कौन है यह मनुष्य को स्वयं जानने व समझने की कोशिश करनी चाहिये।
इस समस्त सृष्टि के समस्त ईश्वर नाशवान हैं, क्योंकि उन सभी की एक निर्धारित आयु है। मनुष्य भी नाशवान है। इसलिये जिसके हाथ में स्वर्ग व नरक हैं, जो एकमात्र हमें इन समस्त लोकों से मुक्त कर ऊपर उठा सकता है, जो हमें त्रिगुणों से मुक्त कर अपने स्वतंत्र धाम में ले जा सकता है वह तो केवल एक ही है; और वह है परमेश्वर, जो परमात्मा है। मनुष्य की देह में मनुष्य की आत्मा के ऊपर उस परमात्मा की *प्रतिछाया का वास है। वह परमेश्वर हमसे अनन्त योजन दूर होकर भी हम मनुष्यों के हृदय में वास करते हैं। पमेश्वर आत्मा है और वह निर्गुण हैं.
अत: ये सब जानकर मनुष्य अब स्वयं निर्धारित करें कि आध्यात्म के क्षेत्र में उनके लिये क्या भला है !
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धर्म और विज्ञान
Really, a good n right knowledge !
जवाब देंहटाएंBahut gehra gyan hai !
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