मुहम्मद जी को 'इस्लाम का कलाम' कैसे हासिल हुआ?

 

Who wrote Quran in hindi

मुहम्मद जी को 'इस्लाम का कलाम' कैसे हासिल हुआ?

Who wrote Quran: इस्लाम, दुनिया के सबसे बड़े धर्मों में से एक है, जिसके अनुयायी दुनिया भर में फैले हुए हैं। इस धर्म के केंद्रीय व्यक्ति पैगंबर मुहम्मद (शांति उन पर हो) हैं, और इसका पवित्र ग्रंथ कुरान है। मुसलमानों का मानना है कि कुरान अल्लाह (ईश्वर) का शाब्दिक शब्द है, जो फ़रिश्ते जिब्रईल (गेब्रियल) के माध्यम से मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को धीरे-धीरे प्रकट हुआ। यह रहस्यमय और गहन प्रक्रिया सदियों से मुसलमानों के लिए आस्था और चिंतन का विषय रही है। मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को यह कलाम कैसे हासिल हुआ, इसकी पड़ताल करना इस्लामी परंपरा, ऐतिहासिक विवरण और विद्वानों की व्याख्याओं के आधार पर एक बहुआयामी अध्ययन है।

मुहम्मद जी की तन्हाई और चिंतन: पृष्ठभूमि

मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का जन्म लगभग 570 ईस्वी में मक्का के प्रतिष्ठित कुरैश कबीले में हुआ था। बचपन में ही माता-पिता के साये से महरूम होने के बाद, उनका पालन-पोषण उनके दादा और फिर उनके चाचा अबू तालिब ने किया। युवावस्था में, मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) अपनी सत्यनिष्ठा, ईमानदारी और न्यायप्रियता के लिए जाने जाते थे। उन्हें "अल-अमीन" (विश्वसनीय) की उपाधि मिली थी, और लोग अपनी कीमती चीजें उनके पास अमानत के तौर पर रखते थे।

हालांकि, मक्का के तत्कालीन सामाजिक और धार्मिक माहौल से वे असंतुष्ट थे। मूर्तिपूजा, जनजातीय संघर्ष और सामाजिक बुराइयाँ व्यापक थीं। इन परिस्थितियों ने मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को गहन चिंतन और एकांत की ओर प्रेरित किया। वे अक्सर मक्का के पास स्थित हिरा नामक गुफा में जाते थे, जहाँ वे कई-कई दिनों तक ध्यान और प्रार्थना में लीन रहते थे। यह एकांतवास उनके आध्यात्मिक विकास और अल्लाह के साथ उनके संबंध को गहरा करने का एक महत्वपूर्ण पहलू था।

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पहली कुराने-वही (First Revelation): हिरा की गुफा में

इस्लामी परंपरा (Who wrote Quran) के अनुसार, लगभग 610 ईस्वी में, जब मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) चालीस वर्ष के थे, हिरा की गुफा में उन्हें पहली वही (दिव्य रहस्योद्घाटन) प्राप्त हुई। रमज़ान के महीने में एक रात, जब वे ध्यान में मग्न थे, फ़रिश्ते जिब्रईल (अलैहिस्सलाम) उनके सामने प्रकट हुए। फ़रिश्ते ने उनसे कहा, "इक़रा" (पढ़ो)। मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम), जो पढ़ना-लिखना नहीं जानते थे, ने उत्तर दिया, "मा अना बि-क़ारी" (मैं पढ़ना नहीं जानता)।

यह प्रक्रिया तीन बार दोहराई गई। हर बार फ़रिश्ते ने उनसे पढ़ने के लिए कहा और हर बार उन्होंने अपनी असमर्थता व्यक्त की। अंत में, फ़रिश्ते ने अल्लाह के नाम से पहली आयतें पढ़ीं:

اقْرَأْ بِاسْمِ رَبِّكَ الَّذِي خَلَقَخَلَقَ الْإِنْسَانَ مِنْ عَلَقٍاقْرَأْ وَرَبُّكَ الْأَكْرَمُالَّذِي عَلَّمَ بِالْقَلَمِعَلَّمَ الْإِنْسَانَ مَا لَمْ يَعْلَمْ

(पढ़ो अपने रब के नाम से जिसने पैदा किया। जिसने इंसान को जमे हुए खून के लोथड़े से पैदा किया। पढ़ो, और तुम्हारा रब सबसे ज़्यादा करीम है। जिसने क़लम से सिखाया। इंसान को वह सिखाया जो वह नहीं जानता था।) (कुरान 96:1-5)

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इस अनुभव से मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) भयभीत और अचंभित हो गए। वे तेज़ी से गुफा से उतरे और अपने घर लौट आए। उन्होंने अपनी पत्नी खदीजा (रज़ियल्लाहु अन्हा) को इस घटना के बारे में बताया। खदीजा (रज़ियल्लाहु अन्हा) ने उन्हें ढाढ़स बंधाया और उनके सत्यनिष्ठ स्वभाव पर भरोसा जताया। वे उन्हें अपने चचेरे भाई वरक़ा बिन नौफ़ल के पास ले गईं, जो एक ज्ञानी व्यक्ति थे और पिछली आसमानी किताबों (तोराह और इंजील) के बारे में जानकारी रखते थे। वरक़ा ने इस घटना को उस नबूवत की शुरुआत बताया जो मूसा (अलैहिस्सलाम) और ईसा (अलैहिस्सलाम) जैसे पिछले पैगंबरों को मिली थी।

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कुराने-वही (लेखों) का सिलसिला: एक क्रमिक प्रक्रिया

पहली वही के बाद, कुछ समय के लिए वही का सिलसिला रुक गया, जिसे "फ़तरा-ए-वही" कहा जाता है। इस दौरान मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) पर एक अजीब सी बेचैनी और अनिश्चितता छाई रही। वे बेसब्री से अगले रहस्योद्घाटन का इंतजार कर रहे थे।

इसके बाद, वही का सिलसिला फिर से शुरू हुआ और यह पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के शेष जीवन तक जारी रहा। कुरान की आयतें धीरे-धीरे विभिन्न अवसरों और परिस्थितियों के अनुसार नाजिल होती रहीं। कुछ आयतें एकेश्वरवाद, नैतिकता और न्याय जैसे बुनियादी सिद्धांतों को स्थापित करती थीं, जबकि कुछ आयतें विशिष्ट सामाजिक, कानूनी या व्यक्तिगत मुद्दों पर मार्गदर्शन प्रदान करती थीं।

वही की प्रक्रिया मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के लिए एक गहन अनुभव था। इस्लामी स्रोतों के अनुसार, जब वही नाजिल होती थी, तो उन पर एक भारी बोझ महसूस होता था, उनके चेहरे पर पसीना आ जाता था और कभी-कभी वे बेहोश भी हो जाते थे। वही की आवाज़ कभी घंटी की तरह सुनाई देती थी, तो कभी किसी इंसान की बोली की तरह।

कुराने-वही की प्रकृति और माध्यम

मुसलमान मानते हैं कि कुरान अल्लाह का कलाम है, जो (Who wrote Quran) फ़रिश्ते जिब्रईल (अलैहिस्सलाम) के माध्यम से मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) तक पहुँचाया गया। इस प्रक्रिया में मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) केवल एक माध्यम थे, जिन्होंने इस दिव्य संदेश को बिना किसी बदलाव या मिलावट के लोगों तक पहुँचाया।

वही के तरीके के बारे में विद्वानों के विभिन्न मत हैं, लेकिन कुछ मुख्य पहलू सर्वसम्मति से स्वीकार किए जाते हैं:

  • फ़रिश्ते जिब्रईल का माध्यम: यह सबसे आम और स्पष्ट तरीका है जिसका उल्लेख कुरान और हदीस (पैगंबर मुहम्मद के कथन और कार्य) में मिलता है। जिब्रईल (अलैहिस्सलाम) अल्लाह का संदेश लेकर आते थे और उसे मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) तक पहुँचाते थे।
  • प्रत्यक्ष श्रवण: कुछ रिवायतों में यह भी उल्लेख है कि मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने सीधे अल्लाह का कलाम सुना, हालाँकि यह तरीका कम ही इस्तेमाल हुआ।
  • स्वप्न (रूया): कुछ आयतें या ज्ञान मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को सच्चे सपनों के माध्यम से भी प्राप्त हुआ। पैगंबरों के सपने भी वही का एक रूप माने जाते हैं।
  • प्रेरणा (इल्हाम): कभी-कभी अल्लाह की ओर से सीधे मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के दिल में कोई बात डाल दी जाती थी, जो उन्हें सत्य की ओर मार्गदर्शन करती थी।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि मुसलमान यह मानते हैं कि वही की प्रक्रिया पूरी तरह से मानवीय समझ से परे है। यह एक दिव्य रहस्य है जिसे केवल आस्था और पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के अनुभवों के माध्यम से समझा जा सकता है।

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कुरान का संरक्षण

मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) वही को याद करते थे और तुरंत अपने साथियों (सहाबा) को सुनाते थे। सहाबा इन आयतों को याद करते थे, लिखते थे और उनका पाठ करते थे। लेखन सामग्री के रूप में चमड़े के टुकड़े, खजूर के पत्ते, पत्थर और जानवरों की हड्डियों का इस्तेमाल किया जाता था। पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कुछ खास सहाबा को वही लिखने के लिए नियुक्त किया था, जिन्हें "कातिबीन-ए-वही" कहा जाता था।

मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की उपस्थिति में ही (Who wrote Quran) कुरान की आयतों को व्यवस्थित किया गया था, हालाँकि इसे एक जिल्द (पुस्तक) की शक्ल में उनके जीवनकाल में पूरी तरह से संकलित नहीं किया गया था। उनके निधन के बाद, पहले खलीफा अबू बक्र (रज़ियल्लाहु अन्हु) के शासनकाल में कुरान के सभी लिखित अंशों को इकट्ठा करके एक आधिकारिक प्रति तैयार की गई। तीसरे खलीफा उस्मान (रज़ियल्लाहु अन्हु) के शासनकाल में इस आधिकारिक प्रति की कई प्रतियां बनवाकर विभिन्न क्षेत्रों में भेजी गईं ताकि कुरान का मूल पाठ सुरक्षित रहे।

आज तक, कुरान का वही मूल पाठ दुनिया भर के मुसलमानों द्वारा पढ़ा और माना जाता है। मुसलमान यह मानते हैं कि अल्लाह ने कुरान को किसी भी तरह की मिलावट या परिवर्तन से सुरक्षित रखा है।

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कुराने-वही का उद्देश्य और महत्व

मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को वही का उद्देश्य मानवता को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाना था। कुरान एकेश्वरवाद (तौहीद) का संदेश देता है, जिसमें केवल एक अल्लाह की इबादत करने का आह्वान किया गया है। यह नैतिकता, न्याय, दया और करुणा के मूल्यों पर जोर देता है। कुरान मानव जीवन के सभी पहलुओं के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है, जिसमें व्यक्तिगत आचरण, सामाजिक संबंध, आर्थिक न्याय और कानूनी सिद्धांत शामिल हैं।

मुसलमानों के लिए कुरान अल्लाह का अंतिम और पूर्ण रहस्योद्घाटन है। वे इसे अपनी जीवनशैली का आधार मानते हैं और इसके शिक्षाओं का पालन करने का प्रयास करते हैं। मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को इस कलाम का वाहक बनने का सम्मान मिला, और वे मुसलमानों के लिए अल्लाह के रसूल (संदेशवाहक) के रूप में पूजनीय हैं।

निष्कर्ष

मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को (Who wrote Quran) इस्लाम का कलाम एक रहस्यमय और दिव्य प्रक्रिया के माध्यम से हासिल हुआ। हिरा की गुफा में पहली वही से लेकर उनके निधन तक, कुरान की आयतें धीरे-धीरे नाजिल होती रहीं। फ़रिश्ते जिब्रईल (अलैहिस्सलाम) इस दिव्य संदेश को अल्लाह की ओर से मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) तक पहुँचाते थे। यह वही न केवल मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के लिए एक व्यक्तिगत अनुभव था, बल्कि इसने दुनिया के इतिहास को भी बदल दिया। कुरान आज भी लाखों लोगों के लिए मार्गदर्शन और प्रेरणा का स्रोत है, और मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को अल्लाह के अंतिम पैगंबर के रूप में सम्मानित किया जाता है। इस प्रक्रिया की पूरी समझ मानवीय बुद्धि से परे है, लेकिन मुसलमानों का अटूट विश्वास है कि यह अल्लाह का करम और उसकी हिकमत का नतीजा था।

{*क्या सच में कुरान हमें आतंकवाद की तालीम देता है?}

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