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क्या सच में कुरान हमें आतंकवाद की तालीम देता है? |
क्या सच में कुरान हमें आतंकवाद की तालीम देता है?
Quran Best Ayat In Hindi: यह एक ऐसा प्रश्न है जो आज के विश्व में बहुत महत्वपूर्ण है और अक्सर पूछा जाता है। आतंकवाद, जो निर्दोष लोगों पर हिंसा और भय फैलाने का नाम है, एक ऐसा कृत्य है जिसकी निंदा हर सभ्य समाज करता है। कुछ लोग और समूह कुरान की आयतों का हवाला देकर यह दावा करते हैं कि इस्लाम और उसकी पवित्र पुस्तक आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं। इस लेख का उद्देश्य निष्पक्ष रूप से इस प्रश्न की पड़ताल करना है और यह देखना है कि क्या वास्तव में कुरान हमें आतंकवाद की तालीम देता है।
सबसे पहले, यह समझना ज़रूरी है कि कुरान मुसलमानों के लिए सबसे पवित्र और मार्गदर्शक पुस्तक है। इसमें उनके जीवन के हर पहलू से संबंधित नियम, सिद्धांत और नैतिक उपदेश मौजूद हैं। कुरान को समझने के लिए, हमें इसके ऐतिहासिक संदर्भ, भाषा, और व्याख्या की विभिन्न विधियों को ध्यान में रखना होगा। केवल कुछ आयतों को उनके संदर्भ से काटकर देखना और उनके आधार पर निष्कर्ष निकालना एक गंभीर भूल होगी।
कुरान की मूल शिक्षाओं पर (Quran Best Ayat In Hindi) ध्यान दें तो हम पाते हैं कि यह शांति, न्याय, करुणा और क्षमा जैसे मूल्यों पर ज़ोर देता है। कुरान में कई आयतें ऐसी हैं जो हिंसा को सीमित करती हैं और केवल आत्मरक्षा या न्याय की स्थापना के लिए ही उसकी अनुमति देती हैं। उदाहरण के लिए, सूरह अल-बक़रह (2:190) में कहा गया है:
"और अल्लाह के रास्ते में उन लोगों से लड़ो जो तुमसे लड़ते हैं, लेकिन हद से न बढ़ो। बेशक, अल्लाह हद से बढ़ने वालों को पसंद नहीं करता।"
यह आयत स्पष्ट रूप से युद्ध की अनुमति देती है, लेकिन साथ ही यह भी निर्देश देती है कि युद्ध में भी मर्यादा का पालन करना ज़रूरी है और निर्दोष लोगों पर अत्याचार नहीं करना चाहिए। "हद से न बढ़ो" का अर्थ है कि महिलाओं, बच्चों, बूढ़ों और गैर-लड़ाकों को न मारा जाए, और संपत्ति को अनावश्यक रूप से नष्ट न किया जाए।
एक और महत्वपूर्ण आयत सूरह अल-माइदा (5:32) में है, जो जीवन की पवित्रता पर ज़ोर देती है:
"इसी कारण हमने बनी इस्राईल के लिए यह नियम लिख दिया कि जिसने किसी इंसान को मारा, बिना किसी इंसान के बदले या धरती पर फ़साद फैलाने के, तो मानो उसने सारे इंसानों को मार डाला। और जिसने किसी एक इंसान की जान बचाई, तो मानो उसने सारे इंसानों की जान बचाई।"
यह आयत जीवन के महत्व को अत्यंत स्पष्ट रूप से दर्शाती है और एक निर्दोष व्यक्ति की हत्या को पूरी मानवता की हत्या के बराबर बताती है। ऐसी शिक्षाएँ आतंकवाद के सिद्धांतों के बिल्कुल विपरीत हैं, जो निर्दोष लोगों की सामूहिक हत्या पर आधारित है।
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क्या सच में कुरान हमें आतंकवाद की तालीम देता है? |
कुरान में न्याय के सिद्धांत पर बहुत ज़ोर दिया गया है। सूरह अन-निसा (4:135) में कहा गया है:
"ऐ ईमान वालो! न्याय पर दृढ़ता से खड़े रहो, अल्लाह के लिए गवाही देने वाले बनो, चाहे वह तुम्हारे अपने खिलाफ हो या तुम्हारे माता-पिता और रिश्तेदारों के खिलाफ, चाहे वह अमीर हो या गरीब। अल्लाह उन दोनों का बेहतर संरक्षक है। इसलिए अपनी इच्छाओं का पालन न करो कि तुम न्याय से हट जाओ। और यदि तुम तोड़-मरोड़ कर बात करोगे या मुँह मोड़ लोगे, तो बेशक अल्लाह तुम्हारे कामों से पूरी तरह वाकिफ है।"
यह आयत मुसलमानों को हर स्थिति में न्याय बनाए रखने का आदेश देती है, यहाँ तक कि अपने प्रियजनों के खिलाफ भी। आतंकवाद, जो अन्याय और अत्याचार पर आधारित है, इस मूलभूत इस्लामी सिद्धांत के विरुद्ध है।
इसके अलावा, कुरान में क्षमा और सुलह को भी महत्व दिया गया है। सूरह अश-शूरा (42:40) में कहा गया है:
"और बुराई का बदला वैसी ही बुराई है, लेकिन जो माफ कर दे और सुलह कर ले, तो उसका बदला अल्लाह के पास है। बेशक, वह ज़ालिमों को पसंद नहीं करता।"
यह आयत प्रतिशोध की अनुमति देती है, लेकिन साथ ही क्षमा और सुलह को बेहतर बताती है, खासकर यदि इससे बड़े फसाद को टाला जा सके। आतंकवाद बदले की भावना से प्रेरित होता है और सुलह के किसी भी प्रयास को नकारता है।
अब सवाल यह उठता है कि अगर कुरान में शांति, न्याय और जीवन की पवित्रता पर इतना ज़ोर दिया गया है, तो कुछ लोग इसकी आयतों का इस्तेमाल आतंकवाद को सही ठहराने के लिए कैसे करते हैं? इसका जवाब यह है कि वे कुरान की आयतों को उनके व्यापक संदर्भ, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और भाषाई बारीकियों से अलग करके देखते हैं। वे कुछ विशेष आयतों पर ध्यान केंद्रित करते हैं जो युद्ध या संघर्ष से संबंधित हैं, और उन आयतों को उन सामान्य सिद्धांतों और नैतिक उपदेशों से अलग कर देते हैं जो कुरान के पूरे पाठ में व्याप्त हैं।
उदाहरण के लिए, कुरान में कुछ ऐसी आयतें हैं जिनमें काफिरों या दुश्मनों से लड़ने का आदेश दिया गया है। इन आयतों को उनके ऐतिहासिक संदर्भ से अलग करके देखने पर ऐसा लग सकता है कि इस्लाम गैर-मुसलमानों के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा देता है। हालाँकि, इन आयतों को उस समय की विशिष्ट परिस्थितियों में समझना ज़रूरी है जब शुरुआती मुस्लिम समुदाय को अपने अस्तित्व और विश्वास की रक्षा के लिए संघर्ष करना पड़ा था। इन आयतों का उद्देश्य अत्याचार का जवाब देना और न्याय स्थापित करना था, न कि अंधाधुंध हिंसा फैलाना या निर्दोष लोगों पर हमला करना।
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क्या सच में कुरान हमें आतंकवाद की तालीम देता है? |
इसके अलावा, कुरान की व्याख्या एक जटिल प्रक्रिया है जिसके लिए गहन ज्ञान और विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है। सदियों से, मुस्लिम विद्वानों ने कुरान की आयतों को समझने और उनके अर्थ निकालने के लिए विस्तृत नियम और सिद्धांत विकसित किए हैं। इन सिद्धांतों में ऐतिहासिक संदर्भ, भाषाई विश्लेषण, अन्य संबंधित आयतों का अध्ययन, और पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की सुन्नह (परंपराओं) का ज्ञान शामिल है। आतंकवादी समूह अक्सर इन स्थापित विद्वानों और उनकी व्याख्याओं को नज़रअंदाज़ करते हैं और अपनी मनमानी और विकृत व्याख्याएँ पेश करते हैं।
यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि हर धर्म के ग्रंथों की अलग-अलग व्याख्याएँ की जा सकती हैं, और कुछ लोग अपने स्वार्थी उद्देश्यों के लिए धार्मिक शिक्षाओं का दुरुपयोग कर सकते हैं। जिस तरह कुछ लोग बाइबिल या अन्य धार्मिक ग्रंथों की गलत व्याख्या करके हिंसा को सही ठहराने की कोशिश करते हैं, उसी तरह कुछ चरमपंथी कुरान की आयतों का दुरुपयोग करके आतंकवाद को बढ़ावा देने का प्रयास करते हैं। हालाँकि, इन गलत व्याख्याओं से उस धर्म या उसके मूल ग्रंथों की शिक्षाओं को नहीं आंका जा सकता।
मुस्लिम विद्वानों और अधिकांश मुस्लिम समुदाय ने आतंकवाद की कड़ी निंदा की है और इसे इस्लामी शिक्षाओं के पूर्णतः विरुद्ध बताया है। दुनिया भर के प्रमुख इस्लामी संगठनों और विद्वानों ने आतंकवाद के खिलाफ फतवे जारी किए हैं और यह स्पष्ट किया है कि आतंकवाद इस्लाम का प्रतिनिधित्व नहीं करता है। वे कुरान की उन आयतों पर ज़ोर देते हैं जो शांति, न्याय और करुणा का संदेश देती हैं, और उन आयतों की सही व्याख्या प्रस्तुत करते हैं जिनका कुछ चरमपंथी दुरुपयोग करते हैं।
यह समझना ज़रूरी है कि आतंकवाद एक जटिल समस्या है जिसके कई कारण हैं, जिनमें राजनीतिक अन्याय, सामाजिक असमानता, गरीबी, और वैचारिक कट्टरता शामिल हैं। धार्मिक ग्रंथों की गलत व्याख्या इन कारणों में से एक हो सकती है, लेकिन यह एकमात्र या सबसे महत्वपूर्ण कारण नहीं है। आतंकवाद को प्रभावी ढंग से मुकाबला करने के लिए, हमें इन सभी कारकों को संबोधित करने की आवश्यकता है।
अंत में, इस प्रश्न का सीधा और स्पष्ट उत्तर (Quran Best Ayat In Hindi) यह है कि कुरान हमें आतंकवाद की तालीम नहीं देता है। कुरान की मूल शिक्षाएँ शांति, न्याय, करुणा और जीवन की पवित्रता पर आधारित हैं। कुछ लोग और समूह अपनी विकृत विचारधाराओं को सही ठहराने के लिए कुरान की आयतों का दुरुपयोग करते हैं, लेकिन उनकी व्याख्याएँ इस्लामी विद्वानों और अधिकांश मुस्लिम समुदाय द्वारा अस्वीकार की जाती हैं। आतंकवाद एक जघन्य अपराध है जो इस्लामी शिक्षाओं के पूर्णतः विपरीत है। हमें कुरान को उसके सही संदर्भ में समझना चाहिए और उन लोगों की आवाज़ों को सुनना चाहिए जो इसकी शांतिपूर्ण और न्यायपूर्ण शिक्षाओं का सही प्रतिनिधित्व करते हैं। आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, और इसे किसी भी धर्म के साथ जोड़ना अन्यायपूर्ण और भ्रामक है।