*बड़ी आसानी से समझें, तारे बनते कैसे हैं ?*

 

तारे बनते कैसे हैं ?

 बड़ी आसानी से समझें, तारे बनते कैसे हैं ?

  हम सर्दियों की स्वच्छ रात्रि में आसमान में अनगिनत तारे देखते हैं। हममें से किसी न किसी इंसान के मन में यह सवाल जरुर उठता होगा कि आखिर दूर आकाश में ये टिमटिमाते यह तारे बनते कैसे हैं ? क्या ये तारे कभी मरते नहीं हैं ? यह सवाल कई पढ़े लिखे लोगों के साथ-साथ कम पढ़े लिखे लोग और अनपढ़ लोगों के मन में भी उठता होगा !

  जी हाँ, इस रोचक सवाल का जबाब इस लेख के माध्यम से बड़े ही सरल शब्दों में देने की कोशिश की गई है कि आखिर तारों का निर्माण कैसे होता है, उनकी आयु कितनी होती है, क्या वे मरते भी हैं आदि-आदि।

 तारे स्थिर नहीं होते !

  रात को जब हम नीचे से ऊपर आसमान की ओर देखते हैं तो तारे हमें स्थिर से प्रतीत होते हैं। और लगता है कि जैसे ये जैसे के तैसे ही होते हैं। पर यह सच नहीं है। तारों का भी जन्म होता है वे बड़े होते हैं, फिर एक दिन बूढ़े होकर मर जाते हैं। 

  वैज्ञानिक तारों का जन्म, उनकी शैशवावस्था, किशोर अवस्था, व्यस्क अवस्था, और प्रौढ़ावस्था का पता उनकी द्युति (चमक), वर्ण (रंग), ताप (Temperature) तथा आकार या साइज़ के द्वारा लगाते हैं।

  मानव के समान ही तारों का जन्म होता है, वे व्यस्क होते हैं, वृद्ध होते हैं और एक दिन मृत्यु को प्राप्त होते हैं।

  जिस तरह आयु बढ़ने पर किसी व्यक्ती के भौतिक लक्षण बदलते हैं, उसी तरह समय के साथ-साथ तारों के भौतिक लक्षणों में भी परिवर्तन होते हैं। फिर भी हमारे जीवन की तुलना में यह परिवर्तन इतने धीरे-धीरे होते हैं कि जिससे ये तारे स्थाई से नजर आते हैं।

  इसलिये वैज्ञानिक किसी तारे की आयु का पता लगाने के लिये एक साथ अलग-अलग तारों का प्रेक्षण करते हैं, क्योंकि अंतरिक्ष में एक साथ भिन्न-भिन्न आयु के तारे विद्यमान होते हैं।

 किसी तारे का जन्म इस तरह से होता है ! तारे बनते कैसे हैं ?

  किसी तारे का जीवन-चक्र आकाशगंगा में हाइड्रोजन  तथा हीलियम गैस (गैसीय बादल) के संघनन (जुड़ कर टकराव से) से प्रारंभ होता है जो अन्ततः छोटे-छोटे घने बादलों के रूप धारण कर लेते हैं। आकार बढ़ने पर स्वय्ं के गुरुत्वाकर्षण (Gravity)  के कारण इनका निपात (Collapse) होने लगता है, और इसका ताप लगभग 173°C होता है। 

  द्रव्य (पदार्थ) के समस्त कण एक दूसरे को आकर्षित करते हैं तथा इस बल को गुरुत्वाकर्षण का बल कहते हैं। 

  अगर हाइड्रोजन के बादल का विस्तार कम हो तथा उसके अणु परस्पर बहुत पास न हों तो वे अन्य अणुओं द्वारा लगाये गये आकर्षण का अनुभव इस सीमा तक नहीं कर पायेंगे कि उनके व्यवहार पर कोई असर पड़े।

  पर अगर किसी बादल का आकार पर्याप्त बड़ा हो तब प्रत्येक अणु का व्यक्तिगत गुरुत्वाकर्षण पर्याप्त बलशाली हो जाता है जिसके परिणामस्वरुप सम्पूर्ण बादल सिकुड़ने लगता है। तत्पश्चात बादल स्वयं के गुरुत्वाकर्षण के कारण सिकुड़ता चला जाता है अर्थात उसका निपात होता है और एक नाटकीय प्रक्रिया शुरु हो जाती है जो गैस के इस विशाल बादल को तारों में परिवर्तित कर देती है। यह सिकुड़ता हुआ घना गैस पिण्ड आदि तारा (Proto star) कहलाता है। 

  आदि तारे के सिकुड़ने पर गैस के नादल में परमाणुओं (हाइड्रोजन और हीलियम) की परस्पर टक्करों की संख्या बढ़ जाती है, जिसमें उसका ताप बढ़ जाता है। सिकुड़ने की प्रक्रिया लगभग एक अरब वर्ष चलती रहती है। इस दौरान इसका आन्तरिक तापमान 173°C से बढ़कर लगभग 10,000,000°C हो जाता है।

  इस अत्यधिक उच्च ताप पर हाइड्रोजन के नाभिक संलयित होकर हीलियम के नाभिक बनाने लगते हैं। इस अभिक्रिया (Process) में हाइड्रोजन के चार नाभिक संलयित होकर हीलियम का एक नाभिक बनाते हैं। इसके साथ-साथ वीभीणं तरंगधैर्य के प्रकाश के रूप में असीमित परिमाण (मात्रा) में ऊर्जा विमोचित (Release) होती है। इसके अंदर का ताप और दबाव बढ़ जाता है, आदि तारा अब दीप्त हो जाता है और एक तारा बन जाता है।

 

तारे बनते कैसे हैं ?

 एक व्यस्क तारा ! तारों का विकास 

  इस तरह तारे के अंदर ही अंदर दाब के अधिक बढ़ने से गैसीय पदार्थों का और अधिक निपात (सिकुड़ना) रुक जाता है। अब तारे में दो विपरीत बलों के मध्य संतुलन स्थापित हो जाता है। इनमें से एक गुरुत्वाकर्षण का बल होता है जो संपीड़न उत्पन्न करता है तथा संलयन अभिक्रिया को प्रेरित करता है। दूसरा बल संलयन अभिक्रिया द्वारा विमोचित ऊर्जा (Released energy) के कारण उत्पन्न दाब के कारण होता है।

  यह संतुलन हजारों-अरबों वर्ष तक बना रह सकता है। इस स्थिति में तारे के अंतरंग (Interior) में ताप संलयन अभिक्रिया को जारी रखने के लिये आवश्यक ताप के सर्वथा बराबर होता है और संलयन अभिक्रिया की दर ऐसी होती है कि उसके कारण उत्पन्न दाब संपीड़न से उत्पन्न दाब को संतुलित रखने के लिये पर्याप्त हो।

  इस दौरान संलयन अभिक्रिया द्वारा निरंतर ऊर्जा विमोचित (Release) होती रहती है। हमारा सूर्य अब अपने विकास के इस संतुलित चरण में है। इसकी उत्पत्ति लगभग 4,600 अरब वर्ष पूर्व हुई थी तथा भविष्य में लगभग इतने ही लंबी अवधि तक यह ऊर्जा विमोचित (Release) करता रहेगा।

  अगर संलयन से विमोचित ऊर्जा के कारण आन्तरिक दाब उत्पन्न न होता तो विशाल गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव के कारण हमारा सूर्य अपनी उत्पत्ति के आधे-घण्टे के अंदर ही सिकुड़ कर बहुत छोटा हो जाता।

 

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