शिव ने कैलाश पर्वत को कब और कैसे अपना निवास स्थान बनाया?

 

कैलाश पर्वत 




शिव ने कैलाश पर्वत को कब और कैसे अपना निवास स्थान बनाया?

भारतीय पौराणिक कथाओं में भगवान शिव का कैलाश पर्वत से संबंध अविभाज्य है। जब भी हम महादेव का स्मरण करते हैं, कैलाश की बर्फीली चोटियाँ और वहाँ विराजित योगीश्वर शिव की छवि स्वतः ही हमारे मन में उभर आती है। कैलाश सिर्फ एक पर्वत नहीं, बल्कि वह ब्रह्मांडीय चेतना, शांति, तपस्या और शिव की परम सत्ता का प्रतीक है। लेकिन यह प्रश्न स्वाभाविक है कि शिव ने कैलाश पर्वत को कब और कैसे अपना निवास स्थान बनाया? क्या यह किसी विशिष्ट घटना का परिणाम था, या यह उनके अनादि स्वरूप का ही एक हिस्सा है? इस लेख में हम विभिन्न पौराणिक आख्यानों, दार्शनिक दृष्टिकोणों और लोकमान्यताओं के माध्यम से इस रहस्य को समझने का प्रयास करेंगे।


1. कैलाश: एक भौतिक पर्वत से बढ़कर एक आध्यात्मिक आयाम

सबसे पहले यह समझना आवश्यक है कि कैलाश पर्वत, जिसे हम आज तिब्बत में एक भौतिक भूभाग के रूप में जानते हैं, पौराणिक संदर्भों में उससे कहीं अधिक है। यह केवल भूगोल का एक हिस्सा नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक आयाम, एक ब्रह्मांडीय केंद्र और शिव की ऊर्जा का पुंज है।

हिंदू धर्मग्रंथों में, कैलाश को 'मेरु पर्वत' या 'सुमेरु पर्वत' के साथ भी जोड़ा जाता है, जो ब्रह्मांड का केंद्र माना जाता है। यह वह स्थान है जहाँ से ब्रह्मांडीय ऊर्जाएँ प्रवाहित होती हैं और जहाँ से सृष्टि का संचालन होता है। इसलिए, शिव का कैलाश पर निवास उनके ब्रह्मांडीय नियंत्रक और संहारक स्वरूप का प्रतीक है। वे इस पर्वत पर समाधिस्थ होकर सृष्टि की लय को बनाए रखते हैं।


कैलाश पर्वत


2. शिव का अनादि स्वरूप और कैलाश का शाश्वत संबंध

जैसा कि हमने पिछले लेख में भी चर्चा की थी, भगवान शिव 'अनादि' और 'अनंत' हैं। वे किसी विशिष्ट समय-रेखा में बंधे नहीं हैं। इस दृष्टिकोण से, शिव ने कैलाश को 'कब' अपना निवास स्थान बनाया, यह प्रश्न उतना प्रासंगिक नहीं रह जाता। यह माना जाता है कि शिव और कैलाश का संबंध शाश्वत है। कैलाश स्वयं शिव का ही एक रूप है, या उनकी ऊर्जा का एक संघनित स्वरूप है।

  • शिव पुराण के अनुसार: शिव को 'कैलाशनाथ' कहा जाता है। यह उपाधि यह दर्शाती है कि वे हमेशा से कैलाश के स्वामी रहे हैं। शिव के प्राकट्य के साथ ही कैलाश का अस्तित्व भी जुड़ा हुआ है। यह वैसे ही है जैसे सूर्य का प्रकाश से संबंध। प्रकाश के बिना सूर्य की कल्पना नहीं की जा सकती, वैसे ही शिव के बिना कैलाश की कल्पना करना कठिन है।

 
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3. पौराणिक कथाएँ: कैलाश पर शिव के 'प्रथम' आगमन या स्थायी निवास की गाथाएँ

यद्यपि शिव अनादि हैं, विभिन्न पुराणों और ग्रंथों में ऐसी कथाएँ मिलती हैं, जो उनके कैलाश पर स्थायी निवास के आरंभ या किसी विशेष घटना के माध्यम से वहाँ उनके स्थापित होने का वर्णन करती हैं। ये कथाएँ हमें शिव के स्वरूप और लीलाओं को समझने में सहायता करती हैं:

क) ब्रह्मा-विष्णु विवाद और ज्योतिर्लिंग का प्रकटीकरण: एक ब्रह्मांडीय स्थापना

हमने लिंगोद्भव कथा में देखा कि कैसे ब्रह्मा और विष्णु के विवाद के समय एक विशाल ज्योतिर्लिंग प्रकट हुआ और शिव उस ज्योतिर्लिंग से प्रकट हुए। इस कथा में कैलाश का सीधा उल्लेख नहीं है, लेकिन यह शिव की परम सत्ता और ब्रह्मांड के मूल में उनके अस्तित्व को स्थापित करती है।

कैलाश से संबंध: कई व्याख्याओं में यह माना जाता है कि वह आदि ज्योतिर्लिंग ही कैलाश का मूल है या कैलाश उसी ज्योतिर्लिंग की ऊर्जा का स्थूल रूप है। जब शिव उस ज्योतिर्लिंग से प्रकट हुए और उन्होंने अपनी परम सत्ता का प्रदर्शन किया, तो उनके लिए ब्रह्मांड के सर्वोच्च और सबसे शांत स्थान पर निवास करना स्वाभाविक था। कैलाश को ब्रह्मांड का केंद्र माना जाता है, इसलिए वह शिव के परम निवास के लिए सबसे उपयुक्त स्थान था। यह घटना शिव के ब्रह्मांडीय स्तर पर स्वयं को स्थापित करने की थी, जिसमें कैलाश उनके आध्यात्मिक सिंहासन के रूप में प्रकट हुआ।

ख) दक्ष यज्ञ विध्वंस के पश्चात: शिव का वैरागी निवास

दक्ष यज्ञ विध्वंस की कथा शिव के जीवन की एक महत्वपूर्ण घटना है, जिसके बाद उनके वैराग्य और संहारक स्वरूप का प्रदर्शन हुआ।

  • कथा का सार: जब सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में अपने पति शिव के अपमान के कारण प्राण त्याग दिए, तो शिव अत्यंत क्रोधित हुए। उन्होंने वीरभद्र को उत्पन्न किया, जिसने यज्ञ को नष्ट कर दिया। सती के देह त्याग से शिव इतने विचलित हुए कि उन्होंने सती के मृत शरीर को अपने कंधों पर उठाकर 'तांडव' किया। इस तांडव से सृष्टि में हाहाकार मच गया। भगवान विष्णु ने सृष्टि को बचाने के लिए अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के 51 टुकड़े कर दिए, जो विभिन्न स्थानों पर गिरे और 'शक्ति पीठ' कहलाए।

  • कैलाश से संबंध: इस घटना के बाद, शिव गहरे शोक और वैराग्य में चले गए। उन्होंने भौतिक संसार और मोहमाया से स्वयं को पूर्णतः विरक्त कर लिया। वे शांति और गहन तपस्या के लिए एक ऐसे स्थान की तलाश में थे जहाँ कोई उन्हें विचलित न कर सके। कैलाश पर्वत, अपनी एकांतता, बर्फ से ढकी चोटियों और शांतिपूर्ण वातावरण के कारण, उनके लिए आदर्श स्थान सिद्ध हुआ।

    • माना जाता है कि सती के देह त्याग के बाद, शिव ने कैलाश पर समाधि ली। यह समाधि केवल शारीरिक नहीं, बल्कि एक गहरे आध्यात्मिक वैराग्य की थी। यहीं पर उन्होंने अपनी चेतना को उच्चतम स्तर पर स्थापित किया।
    • इसलिए, दक्ष यज्ञ विध्वंस के बाद का काल शिव के कैलाश को उनके स्थायी, वैराग्यपूर्ण और तपस्या के निवास के रूप में स्थापित करने का महत्वपूर्ण मोड़ था। यह वह समय था जब उन्होंने अपनी व्यक्तिगत त्रासदी को ब्रह्मांडीय चेतना में विलीन कर दिया और कैलाश उनका मौन साक्षी बना।

ग) पार्वती से विवाह और गृहस्थ जीवन की स्थापना

यद्यपि शिव को वैरागी और संन्यासी के रूप में जाना जाता है, माता पार्वती से उनका विवाह उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। यह विवाह शिव के गृहस्थ स्वरूप को दर्शाता है और ब्रह्मांडीय संतुलन के लिए आवश्यक था।

  • कथा का सार: तारकासुर नामक राक्षस ने देवताओं को परेशान कर रखा था और उसे यह वरदान प्राप्त था कि उसका वध केवल शिव के पुत्र द्वारा ही हो सकता है। परंतु शिव सती के वियोग के कारण गहन तपस्या में लीन थे। देवताओं के आग्रह पर, कामदेव ने शिव की तपस्या भंग करने का प्रयास किया, और क्रोधित शिव ने उन्हें भस्म कर दिया। बाद में, हिमालय की पुत्री पार्वती ने शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने उनसे विवाह किया।

  • कैलाश से संबंध: पार्वती हिमालय की पुत्री थीं और हिमालय कैलाश पर्वत का ही एक अभिन्न अंग है। पार्वती के साथ विवाह के बाद, कैलाश शिव और पार्वती के संयुक्त निवास के रूप में और भी दृढ़ता से स्थापित हुआ। यह स्थान उनके गृहस्थ जीवन, उनके पुत्रों गणेश और कार्तिकेय के जन्म और उनकी लीलाओं का साक्षी बना। कैलाश अब केवल एक तपस्या का स्थान नहीं रहा, बल्कि प्रेम, शक्ति (शक्ति के रूप में पार्वती) और पारिवारिक सामंजस्य का प्रतीक भी बन गया। इस प्रकार, पार्वती से विवाह ने कैलाश पर शिव के निवास को और भी मजबूत और पूर्ण बनाया।

घ) रावण द्वारा कैलाश उठाने का प्रयास: कैलाश की अविचल स्थिति का प्रमाण

यह कथा सीधे तौर पर कैलाश पर शिव के निवास के 'कब' या 'कैसे' स्थापित होने के बारे में नहीं है, लेकिन यह कैलाश के महत्व और शिव के उससे अटूट संबंध को और पुष्ट करती है।

  • कथा का सार: लंका का राजा रावण शिव का महान भक्त था और अपनी शक्तियों के प्रति अत्यंत अहंकारी भी था। एक बार, कैलाश के पास से गुजरते हुए, उसने नंदी से कैलाश पर चढ़ने से रोका गया, जिससे क्रोधित होकर रावण ने कैलाश पर्वत को ही अपनी भुजाओं पर उठाकर लंका ले जाने का निश्चय किया। उसने अपनी बीस भुजाओं से कैलाश को उठाना शुरू किया।

  • शिव की प्रतिक्रिया: रावण के इस दुस्साहस से कैलाश हिलने लगा और उस पर स्थित देवी पार्वती भयभीत हो गईं। शिव ने स्थिति को भांप लिया और केवल अपने पैर के अंगूठे से कैलाश पर्वत को थोड़ा सा दबा दिया। रावण उस भार के नीचे दब गया और उसकी भुजाएँ कुचल गईं। पीड़ा से कराहते हुए उसने 'शिव तांडव स्तोत्र' का पाठ करना शुरू किया। शिव उसके तप से प्रसन्न हुए और उसे मुक्त किया।

  • महत्व: यह घटना यह दर्शाती है कि कैलाश केवल एक पर्वत नहीं है, बल्कि शिव की शक्ति का साक्षात स्वरूप है। कोई भी, कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, कैलाश को उसकी जगह से हिला नहीं सकता, क्योंकि वह शिव की चेतना से जुड़ा हुआ है। यह कथा इस बात को स्थापित करती है कि कैलाश शिव का अविचल, अकाट्य और स्थायी निवास है, जिसे कोई भी भौतिक शक्ति भंग नहीं कर सकती। यह शिव के कैलाश पर निर्विवाद प्रभुत्व का प्रमाण है।


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4. दार्शनिक और प्रतीकात्मक महत्व: कैलाश के माध्यम से शिव का संदेश

शिव का कैलाश पर निवास केवल एक पौराणिक तथ्य नहीं, बल्कि गहरा दार्शनिक और प्रतीकात्मक महत्व रखता है:

  • शीर्ष पर निवास: चेतना का सर्वोच्च बिंदु: कैलाश पर्वत की ऊँचाई और उसकी बर्फीली चोटियाँ चेतना के सर्वोच्च स्तर का प्रतीक हैं। शिव का वहाँ निवास यह दर्शाता है कि वे भौतिक जगत से परे, आध्यात्मिक उत्थान के चरम पर हैं। वे योगीराज हैं, जो समाधि में लीन होकर परम सत्य का अनुभव करते हैं।
  • शांत और निर्मल वातावरण: वैराग्य और तपस्या का प्रतीक: कैलाश का ठंडा, शांत और एकांत वातावरण वैराग्य, त्याग और गहन तपस्या के लिए आदर्श है। शिव का यहाँ निवास यह संदेश देता है कि आध्यात्मिक उन्नति के लिए सांसारिक मोहमाया से विरक्ति और आंतरिक शांति आवश्यक है।
  • पवित्रता और शुद्धता: कैलाश की बर्फ और शुद्धता शिव की पवित्रता और निर्विकार स्वरूप का प्रतीक है। शिव सभी दोषों से परे, शुद्ध और कल्याणकारी हैं।
  • सृष्टि, स्थिति और संहार का केंद्र: कैलाश को ब्रह्मांड का केंद्र माना जाता है। शिव यहाँ से ही सृष्टि की लय को नियंत्रित करते हैं, और ब्रह्मांड के तीन प्रमुख कार्य – सृष्टि, स्थिति और संहार – उनके यहाँ से ही संचालित होते हैं।
  • कुंडलिनी शक्ति का प्रतीक: योग और तंत्र में, कैलाश को सहस्रार चक्र से जोड़ा जाता है, जो सिर के शीर्ष पर स्थित होता है और उच्चतम चेतना का प्रतिनिधित्व करता है। शिव का कैलाश पर निवास कुंडलिनी शक्ति के जागरण और उसके सहस्रार में स्थित होने का प्रतीक है, जहाँ व्यक्ति ब्रह्मांडीय चेतना के साथ एकाकार हो जाता है।

5. लोकमान्यताएँ और सांस्कृतिक प्रभाव

भारत और तिब्बत के आसपास के क्षेत्रों में कैलाश पर्वत और शिव से जुड़ी अनगिनत लोकमान्यताएँ और कहानियाँ प्रचलित हैं। सदियों से, तीर्थयात्री और साधु-संत इस पर्वत की यात्रा करते रहे हैं, यह विश्वास करते हुए कि यहाँ शिव का साक्षात वास है।

  • अलौकिक अनुभव: कई यात्रियों ने कैलाश के आसपास अलौकिक अनुभव और अजीबोगरीब घटनाएँ दर्ज की हैं, जो इस पर्वत की रहस्यमयी और आध्यात्मिक ऊर्जा को और पुष्ट करती हैं।
  • अगम्यता: कैलाश पर्वत पर आज तक कोई सफलतापूर्वक चढ़ नहीं पाया है। इसकी दुर्गमता को भी शिव की शक्ति और उनके निवास की पवित्रता से जोड़ा जाता है, मानो वे स्वयं किसी को ऊपर जाने से रोक रहे हों। यह उनकी गोपनीयता और अगम्यता का प्रतीक है।
  • मानसिक शांति और प्रेरणा: कैलाश की छवि और शिव के यहाँ निवास की अवधारणा लाखों लोगों को मानसिक शांति और आध्यात्मिक प्रेरणा प्रदान करती है।

निष्कर्ष: कैलाश शिव का शाश्वत और प्रतीकात्मक धाम

तो, 'शिव ने कैलाश पर्वत को कब और कैसे अपना निवास स्थान बनाया?' इस प्रश्न का उत्तर एक विशिष्ट तारीख या घटना तक सीमित नहीं है। यह कई पहलुओं का संगम है:

  1. शाश्वत संबंध: सबसे पहले, शिव और कैलाश का संबंध अनादि और शाश्वत है। कैलाश स्वयं शिव की ऊर्जा का एक विस्तार है।
  2. ब्रह्मांडीय स्थापना: ब्रह्मा-विष्णु विवाद और ज्योतिर्लिंग के प्रकटीकरण ने शिव की परम सत्ता को स्थापित किया, जिसके लिए कैलाश उनका स्वाभाविक, ब्रह्मांडीय केंद्र बना।
  3. वैराग्य और तपस्या: दक्ष यज्ञ विध्वंस और सती के देह त्याग के बाद, शिव ने कैलाश को अपनी गहन तपस्या और वैराग्य के लिए चुना, जहाँ उन्होंने स्वयं को भौतिक जगत से विरक्त कर लिया।
  4. गृहस्थ जीवन और शक्ति का केंद्र: पार्वती से विवाह के बाद, कैलाश उनके गृहस्थ जीवन का भी केंद्र बना, जहाँ शिव और शक्ति का मिलन हुआ।
  5. अविचल प्रभुत्व: रावण की कथा ने यह प्रमाणित किया कि कैलाश शिव का अविचल धाम है, जिसे कोई भी भौतिक शक्ति भंग नहीं कर सकती।
  6. दार्शनिक प्रतीक: प्रतीकात्मक रूप से, कैलाश चेतना के सर्वोच्च स्तर, पवित्रता, शांति और ब्रह्मांडीय नियंत्रण का प्रतिनिधित्व करता है, जो शिव के स्वरूप के अनुरूप है।

इसलिए, कैलाश पर्वत को शिव का निवास स्थान बनाना किसी एक पल की घटना नहीं थी, बल्कि यह उनके अनादि स्वरूप, उनकी लीलाओं, उनके वैराग्य, उनके प्रेम और उनके ब्रह्मांडीय प्रभुत्व का एक क्रमिक और शाश्वत प्रकटीकरण है। कैलाश सिर्फ एक पर्वत नहीं, बल्कि वह शिव की अनंतता और परम सत्ता का जीवंत प्रमाण है, जहाँ वे सदा से विराजमान हैं और सदा रहेंगे।

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