
शेषनाग कौन थे ?

क्या शेषनाग और नागजाति मनुष्य थे? (नागजाति का इतिहास)
शेषनाग कौन थे: बहुत प्राचीनकाल में लोग हिमालय के आसपास ही रहते थे। वेद और महाभारत पढ़ने पर हमें पता चलता है कि आदिकाल में प्रमुख रूप से पृथ्वी पर ये जातियां मौजूद थीं, देव, दैत्य, दानव, राक्षस, यक्ष, गंधर्व, भल्ल, वसु, अप्सराएं, पिशाच, सिद्ध, मरुदगण, किन्नर, चारण, भाट, किरात, रीछ, नाग, विद्याधर, मानव, वानर आदि। इनमें से कुछ जातियां आलौकिक शक्तियों से संपन्न होती थी। नाग जाति भी आलौकिक जातियों में से एक थी, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण नाग शेषनाग थे।
शेषनाग क्या हजार फन वाले सांप थे या फिर यह एक मनुष्य थे। हालांकि ग्रंथों में कई जगहों पर उन्हें एक पुरुष के रूप में भी चित्रित किया गया है। ग्रंथों में यह भी वर्णन हैं कि उनके हजार भाई थे और वे अपनी इच्छा से नाग का रूप धारण करने की क्षमता रखते थे। तो इस लेख में हम आपको शेषनाग और नाग प्रजाति के इतिहास के बारे में बतायेंगे। तो कृपया इस लेख को पूरा पढ़ियेगा, ताकि आपको सही और संपूर्ण जानकारी मिल पाये।
कौन थे शेषनाग और नाग जाति?
शेषनाग के बारे में कहा जाता है कि इन्हीं के फण पर पृथ्वी टिकी हुई है। जबकि सत्य यह है कि उनके फण पर पृथ्वी नहीं, बल्कि केवल धरती टिकी हुई है। दरअसल, आदिकाल में जब पृथ्वी की संरचना हो रही थी तब उस समय जो एकमात्र आदि विशालकाय समुद्र था, उसमें से, यानि उसके भीतर से जो आदि एकमात्र विशाल महाद्वीप प्रकट हुआ, वास्तव में उसे ही शेषनाग जी ने अपने फण पर धारण किया था। जो अब भी सात महाद्वीपो में विभक्त होने पर भी शेषनाग जी के अलग-अलग फणों पर टिकी हुई है।
तो दूसरी ओर नागजाति मूलतः अधोलोक में ही रहते हैं। चित्रों में अक्सर हिंदू देवता भगवान विष्णु को शेषनाग पर लेटे हुए चित्रित किया गया है। दरअसल शेषनाग भगवान विष्णु के सेवक हैं। मान्यता है कि शेषनाग के हजार मस्तक हैं। इनका कही अंत नहीं है इसीलिए इन्हें 'अनंत' भी कहा गया है।
शेष को ही अनंत कहा जाता है जो कश्यप ऋषि की पत्नी कद्रू के बेटों में सबसे पराक्रमी और प्रथम नागराज थे। कश्मीर का अनंतनाग जिला इनका गढ़ था। ऋषि कश्यप की पत्नी कद्रू के हजारों पुत्रों में सबसे बड़े और सबसे पराक्रमी शेष नाग ही थे। उनकी सांसारिक विरक्ति का कारण उनकी मां, भाई और उनकी सौतेली माता विनता और गरूढ़ थे, जिनका नागों की माता और नागजाति से आपसी द्वेष था। शेषनाग जी ने अपनी मां और भाइयों का साथ छोड़कर गंधमादन पर्वत पर तपस्या करने को ही श्रेष्ठ माना। ब्रह्मा ने प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया और उन्हें पाताल लोक का राजा बना दिया। इसके अलावा उन्होंने भगवान विष्णु का सेवक बनना ही अपना सबसे बड़ा पुण्य समझा। शेषनाग के पृथ्वी के नीचे जाते ही, यानि की जललोकअथवा पाताललोक में जाते ही उनके स्थान पर उनके छोटे भाई वासुकि का राज्यतिलक कर दिया गया।
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शेषनाग कौन थे ? |
नाग जाति के लोगों को अधोलोक के वासी माना जाता है। जबकि पुराणों में धरती पर ही सात अधोलोकों का वर्णन मिलता है। ये सात अधोलोक हैं- अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल और पाताल। सुतल नामक अधोलोक में कश्यप की पत्नी कद्रू से उत्पन्न हुए अनेक सिरों वाले सर्पों का 'क्रोधवश' नामक एक समुदाय रहता है। उनमें कहुक, तक्षक, कालिया और सुषेण आदि प्रधान नाग हैं।
कद्रू जो प्रजापति दक्ष की पुत्री थीं तथा कश्यप मुनि की पत्नी, और शेषनाग सहित समस्त नागजाति की माता। इसीलिए उन्हें नाग माता के नाम से जाना जाता हैं। देवी मनसा जो भगवान शिव की बेटी हैं, उन्हें भी नाग माता कहा जाता है, जिनका विवाह जरत्कारु नाम के ऋषि के साथ हुआ था। एक समय राजा जनमेजय ने, अपने पिता के नाग दंश से मृत्यु हो जाने पर, नागों को भस्म कर देने वाला नाग यज्ञ किया था।
परिणामस्वरूप सभी नाग यज्ञ में गिरकर भस्म होने लगे। फिर उस समय देवी मनसा के पुत्र आस्तिक द्वारा, ऐसा उपाए किया गया, जिससे नाग यज्ञ बंद हुआ और सभी नागों की रक्षा हुई। इसीलिये तभी से देवी मनसा भी नाग माता के नाम से विख्यात हुईं।
नाग प्रजाति के मुख्य 12 नाग हैं, जिनके नाम इस प्रकार हैं- अनंत, कुलिक, वासुकि, शंकुफला, पद्म, महापद्म, तक्षक, कर्कोटक, शंखचूड़, घातक, विषधान और शेषनाग।
अनंत, यानि की शेष, वासुकी, तक्षक, कार्कोटक और पिंगला- उक्त पांच नागों के कुल के लोगों का ही भारत में वर्चस्व था। इन्हीं से नागवंश चला। महाभारत काल में पूरे भारत वर्ष में नाग जातियों के समूह फैले हुए थे। विशेष तौर पर कैलाश पर्वत से सटे हुए इलाकों में असम, मणिपुर, नागालैंड तक इनका प्रभुत्व था। यहाँ के लोग सर्प पूजक होने के कारण नागवंशी कहलाए। जबकि कुछ साहित्यकार मानते हैं कि शक या नाग जाति हिमालय के उस पार की थीं। जबकि तिब्बती भी अपनी भाषा को 'नागभाषा' कहते हैं।
एक ऐतिहासिक सिद्धांत के अनुसार ये मूलतः कश्मीर के थे। कश्मीर का 'अनंतनाग' इलाका इनका गढ़ माना जाता था। कांगड़ा, कुल्लू व कश्मीर सहित अन्य पहाड़ी इलाकों में नाग ब्राह्मणों की एक जाति आज भी मौजूद है। नाग वंशावलियों में 'शेष नाग' को नागों का प्रथम राजा माना जाता है। शेष नाग को ही 'अनंत' नाम से भी जाना जाता है। इसी तरह आगे चलकर शेष के बाद वासुकी हुए फिर तक्षक और पिंगला। वासुकी का कैलाश पर्वत के पास ही राज्य था, और मान्यता है कि तक्षक ने ही तक्षकशिला, यानि की तक्षशिला को बसाकर अपने नाम से 'तक्षक' कुल चलाया था। उक्त तीनों की गाथाएं पुराणों में पाई जाती हैं।
उनके बाद ही कर्कोटक, ऐरावत, धृतराष्ट्र, अनत, अहि, मनिभद्र, अलापत्र, कम्बल, अंशतर, धनंजय, कालिया, सौंफू, दौद्धिया, काली, तखतू, धूमल, फाहल, काना इत्यादी नाम से नागों के वंश हुआ करते थे। भारत के भिन्न-भिन्न इलाकों में इनका राज्य था।
'नागा आदिवासी' का संबंध भी नागों से ही माना गया है। छत्तीसगढ़ के बस्तर में भी नल और नाग वंश तथा कवर्धा के फणि-नाग वंशियों का उल्लेख मिलता है। पुराणों में मध्यप्रदेश के विदिशा पर शासन करने वाले नाग वंशीय राजाओं में शेष, भोगिन, सदाचंद्र, धनधर्मा, भूतनंदि, शिशुनंदि या यशनंदि आदि का उल्लेख मिलता है।
पुराणों के अनुसार एक समय ऐसा था जब नागा समुदाय पूरे भारत के शासक थे। उस दौरान उन्होंने भारत के बाहर भी कई स्थानों पर अपनी विजय पताकाएं फहराई थीं। तक्षक, तनक और तुश्त नागाओं के राजवंशों की लम्बी परंपरा रही है। इन नाग वंशियों में ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि सभी समुदाय और प्रांत के लोग थे।
नागवंशियों ने भारत के कई हिस्सों पर राज किया था। इसी कारण भारत के कई शहर और गांव 'नाग' शब्द पर आधारित हैं। मान्यता है कि महाराष्ट्र का नागपुर शहर सर्वप्रथम नागवंशियों ने ही बसाया था। वहां की नदी का नाम नाग नदी भी नागवंशियों के कारण ही पड़ा। नागपुर के पास ही प्राचीन नागरधन नामक एक महत्वपूर्ण प्रागैतिहासिक नगर है। महार जाति के आधार पर ही महाराष्ट्र से महाराष्ट्र हो गया। महार जाति भी नागवंशियों की ही एक जाति थी।
इसके अलावा हिंदीभाषी राज्यों में 'नागदाह' नामक कई शहर और गांव मिल जाएंगे। उक्त स्थानों से भी नागों के संबंध में कई किंवदंतियां जुड़ी हुई हैं। और अन्त में कहें तो नगा या नागालैंड को भी नागों या नागवंशियों की भूमि माना जा सकता है।