क्या वाकई में लूसिफेर (शैतान) एक निर्दोष आत्मा थी?

 

Lucifer devil or angel in hindi


क्या वाकई में लूसिफेर (शैतान) एक निर्दोष आत्मा थी?

Lucifer devil or angel in hindi: लूसिफेर, एक नाम जो अक्सर शैतान, बुराई और पाप से जोड़ा जाता है। लेकिन क्या यह सच है? क्या लूसिफेर वास्तव में एक दुष्ट प्राणी था, या वह एक निर्दोष आत्मा थी जिसे गलत समझा गया था? इस लेख में, हम लूसिफेर की कहानी को एक नए परिप्रेक्ष्य से देखेंगे, और यह समझने की कोशिश करेंगे कि वाकई में लूसिफर एक निर्दोष आत्मा थी जिसे गलत समझा गया था !

लूसिफेर का नाम बाइबल में कई बार आता है, लेकिन उसकी कहानी मुख्य रूप से यशायाह 14:12-14 और यूहन्ना 12:31 में मिलती है। इन पदों में, लूसिफेर को एक सुंदर और शक्तिशाली देवदूत के रूप में वर्णित किया गया है, जो स्वर्ग में परमेश्वर के साथ रहता था। हालांकि, वह अपने सौंदर्य और शक्ति के कारण घमंडी हो गया, और उसने परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह कर दिया। इसके परिणामस्वरूप, उसे स्वर्ग से निकाल दिया गया और शैतान बन गया।

लेकिन क्या यह कहानी पूरी सच्चाई है? क्या लूसिफेर वास्तव में घमंडी था, या वह कुछ और था? कुछ लोग तर्क देते हैं कि लूसिफेर वास्तव में एक क्रांतिकारी था जो परमेश्वर के अन्यायपूर्ण शासन के खिलाफ विद्रोह कर रहा था। वे कहते हैं कि परमेश्वर एक अत्याचारी शासक था जो अपने लोगों का शोषण करता था, और लूसिफेर ने अपने लोगों को इस अत्याचार से मुक्त कराने की कोशिश की।

इस सिद्धांत का समर्थन करने के लिए, कुछ लोग बाइबल के अन्य पदों का हवाला देते हैं, जहां परमेश्वर को एक क्रूर और दंड देने वाले देवता के रूप में चित्रित किया गया है। उदाहरण के लिए, पुराने नियम में, परमेश्वर ने अक्सर अपने लोगों को कठोर दंड दिया, जैसे कि सूखा, अकाल और युद्ध। कुछ लोग तर्क देते हैं कि लूसिफेर ने इन दंडों को देखा और सोचा कि परमेश्वर एक अन्यायपूर्ण शासक था।

इसके अलावा, कुछ लोग तर्क देते हैं कि लूसिफेर की विद्रोह की कहानी एक राजनीतिक साजिश थी। वे कहते हैं कि परमेश्वर ने लूसिफेर को एक बलि का बकरा बना दिया ताकि वह अपने स्वयं के अन्यायपूर्ण शासन को सही ठहरा सके। इस तरह, परमेश्वर ने लोगों को यह विश्वास दिलाया कि लूसिफेर एक दुष्ट प्राणी था, जबकि वास्तव में वह एक निर्दोष आत्मा थी जो अपने लोगों के लिए लड़ रही थी।

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तो इन सब विचारों से अलग हट कर हम लूसिफर से पहले परमेश्वर को जानने और समझने की कोशिश करेंगे। अगर हम हर इश्वरवादी धर्मों की धर्म पुस्तकों को गहराई से समझकर पढ़ें तो पता चलता है कि जिसे हम एक ईश्वर या परमेश्वर कहते हैं उसने इस दुनियां को एक नियम से बनाया है, और उस नियम को ही वास्तव में धर्म कहते हैं. जहाँ कहीं भी उन नियमों का उल्लघन होता है वहां द्वन्द शुरू हो जाता है. इस द्वंन्द को ही सत्य और असत्य के बीच का युद्ध कहते हैं.

परमेश्वर ने जितने भी स्वर्गीय प्राणियों की रचना की थी, ऐसा नहीं है की वे सभी किसी रोबोट की तरह थे, जिन्हें फीड किया गया हो और उनकी अपनी कोई नीजि इच्छा, जिज्ञासा या स्वतंत्र विचार न हों. वे सभी विचारवान और जिज्ञासु प्रवृति के थे, लेकिन इसी के साथ वे परमेश्वर के नियमों में, जिसे परमेश्वर का धर्म कहते हैं उसमें वे सिद्ध भी थे. वे गुलाम नहीं थे और न ही उनमें नियमों को तोड़ कर कुछ अधिक की लालसा ही थी.

लेकिन एक समय ऐसा आया जब लूसिफर ने ईश्ववरीय नियमों को तोड़ कर उनसे हट कर बड़ा बनने की इच्छा प्रकट की. बस तभी से इस संसार की सारी गड़बड़ियों की शुरुवात हो जाती है. लूसिफर को उसकी धर्म विहीन स्वतंत्र इच्छाओं के साथ स्वर्ग से निकाल दिया गया.

उसके बाद परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरुप में बनाया, यानि की उसे पूरी तरह से आध्यात्मिक प्रवृति का बनाया। क्योंकि आध्यात्मिक स्वभाव में भले और बुरे का भेद नहीं होता। यहाँ भले और बुरे के भेद का आशय अच्छे और बुरे के बीच का अंतर जानने का ज्ञान नहीं है, बल्कि इसका आशय है जो मेरे लिए अच्छा है केवल वही ठीक और जो केवल मेरे लिए बुरा है वो गलत है. यानि की भले और बुरे का संबंध केवल एक स्वार्थी जीवन से है. और जहाँ स्वार्थ है वहीँ अहंकार भी होता है.

लेकिन लूसिफर ने जब यह जाना कि परमेश्वर ने हमसे बढ़कर किसी प्राणी की रचना की है और वे प्राणी अब उसकी जगह परमेश्वर के सानिध्य में रहने वाला है तो वह जल और भुन गया. उससे रहा नहीं गया. अब उसने मनुष्य को उसके आध्यात्मिक स्वरुप से नीचे गिराने की योजना बनाई। इस योजना में लूसिफर कामयाब भी हो गया.

अब मनुष्य अपने स्वभाव में द्वन्द को लिए फिरता है. जब उसके हृदय में निस्वार्थ और प्रेम के भाव आते हैं तो वह एक आध्यात्मिक मनुष्य होता है और जब उसके अपने स्वभाव में केवल स्वार्थ और घृणा के भाव आते हैं तो वह एक शारीरिक या यूं कहें लूसिफर के स्वभाव में होता है. जब मनुष्य के भीतर स्वार्थ और अहंकार का जन्म होता है तब उसमें अनायास ही बाकी की सभी बुराइयों जन्म हो जाता है, जैसे - काम, क्रोध, लोभ, मोह, इर्षा और द्वेष।

अब परमेश्वर मनुष्य से यही आशा रखते हैं कि वे सिद्ध बने. जो कोई भी मनुष्य अपने मूल आध्यात्मिक स्वभाव में सिद्ध बनता है वह इस दुखदाई सृष्टि से मुक्त हो कर परमेश्वर के निज घर में पलायन कर जाता है सदाकाल के निवास करने के लिए. अगर कोई मनुष्य सिद्ध न भी बनता हो, लेकिन निरंतर प्रयास भी करता हो, तो ऐसे मनुष्य की सहायता और उद्धार परमेश्वर स्वयं करते हैं.

लूसिफर जिसे आदि काल से मन फिराव का अवसर दिया गया, लेकिन उसने मन फिराव किया नहीं, और उसके बारे में परमेश्वर ने पहले ही से जान लिया था की वो ऐसा करेगा नहीं।

 इस भिन्न नजरिए के बाबजूद भी हमें यह कभी नहीं पता चल पाएगा कि लूसिफेर की कहानी की सच्चाई क्या है। 

हालांकि, यह एक दिलचस्प सवाल है जिसके बारे में (Lucifer devil or angel in hindi) सोचा जा सकता है। क्या लूसिफेर वाकई में एक दुष्ट प्राणी था, या वह एक निर्दोष आत्मा थी जिसे गलत समझा गया था? इस सवाल का जबाव अनसुलझा ही रहेगा ! 

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