सुमेरियन सभ्यता
सुमेरियन सभ्यता: जलप्रलय के बाद पहली मानव सभ्यता!
Sumerian Sabhyata: आज से लगभग 7000 साल पहले, दक्षिण-पश्चिम एशिया में टिगरिस और यूफ्रेट्स नदियों के बीच उपजाऊ मैदानों में एक अद्भुत सभ्यता का उदय हुआ था। इसे सुमेरियन सभ्यता के नाम से जाना जाता है, और यह सभ्यता महाजलप्रलय के बाद मानव द्वारा बनाई गई पहली मानव सभ्यता थी, और इसने आने वाली पीढ़ियों को प्रभावित करने वाले कई नये विचारों को जन्म दिया।
सुमेर का उदय
लगभग 5500 ईसा पूर्व के आसपास, खानाबदोश जनजातियां इन उपजाऊ मैदानों में बसने लगीं। धीरे-धीरे ये जनजातियां एक जटिल सामाजिक व्यवस्था विकसित करने लगीं और लगभग 4500 ईसा पूर्व तक, सुमेर के विभिन्न शहर-राज्यों का उदय हुआ, जिनमें प्रमुख रूप से उर, उरूक, निप्पुर, लगश और लागाश शामिल थे। प्रत्येक शहर-राज्य का अपना शासक होता था, जिसे आम तौर पर "एनसी" की उपाधि दी जाती थी। ये शहर-राज्य आपस में युद्ध और व्यापार दोनों में लगे रहते थे।
सिंचाई प्रणाली और कृषि
टिगरिस और यूफ्रेट्स नदियाँ सालाना बाढ़ लाती थीं, जो उपजाऊ मिट्टी जमा करती थीं। लेकिन बाढ़ का समय अनिश्चित था और सूखे की संभावना भी बनी रहती थी। इस चुनौती से निपटने के लिए सुमेरियों ने एक जटिल सिंचाई प्रणाली विकसित की। उन्होंने नहरें, बांध और जलाशय बनाए, जिससे उन्हें कृषि के लिए जल नियंत्रण में महारत हासिल हुई। उन्होंने जौ, गेहूँ, खजूर और सब्जियों की खेती की।
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सुमेरियन लेखन प्रणाली: क्यूनिफॉर्म
सुमेरियों ने दुनिया की पहली लेखन प्रणालियों में से एक विकसित की, जिसे क्यूनिफॉर्म (cuneiform) के नाम से जाना जाता है। इस प्रणाली में नुकीले लेखनी (stylus) का उपयोग करके गीली मिट्टी की गोलियों पर निशान लगाए जाते थे। ये निशान कील के आकार के होते थे, इसलिए इस प्रणाली को क्यूनिफॉर्म (लैटिन में अर्थ: कील के आकार का) कहा जाता है। क्यूनिफॉर्म लिपि में सैकड़ों संकेत होते थे, जो शब्दों और ध्वनियों दोनों को दर्शाते थे। इस जटिल प्रणाली को सीखने में कई साल लग जाते थे और मुख्य रूप से पुजारी और लेखक ही इसे जानते थे। क्यूनिफॉर्म लिपि के कारण ही सुमेरियन इतिहास और संस्कृति के बारे में इतना कुछ जाना जा सका है।
सुमेरियन वास्तुकला
सुमेरियों ने मिट्टी की ईंटों से भव्य मंदिरों का निर्माण किया, जिन्हें ज़िगगुरात (ziggurat) कहा जाता था। ये मंदिर बहुमंजिला पिरामिडनुमा संरचनाएँ थीं जिनके शीर्ष पर देवताओं के मंदिर होते थे। सुमेरियों का मानना था कि ज़िगगुरात पृथ्वी और स्वर्ग के बीच का संबंध स्थापित करते हैं। उन्होंने मिट्टी की ईंटों से बने महल, किले और दीवारें भी बनाईं।
सुमेरियन धर्म
लगभग 7000 साल पहले, दक्षिण-पश्चिम एशिया की उपजाऊ भूमि मेसोपोटामिया में सुमेरियन सभ्यता का उदय हुआ था। यह मानव इतिहास की पहली महान सभ्यताओं में से एक है, जिसने लेखन, सिंचाई, गणित और खगोल विज्ञान सहित कई क्षेत्रों में क्रांतिकारी नवाचार किए। लेकिन यह सभ्यता उतनी ही रहस्यमयी है जितनी प्रभावशाली। इसकी धार्मिक मान्यताएं और इसके पतन के कारण आज भी इतिहासकारों के लिए बहस का विषय हैं।
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सुमेरियन धर्म का स्वरूप
सुमेरियों का एक जटिल बहुदेववादी धर्म था। उनका मानना था कि ब्रह्मांड विभिन्न देवताओं और देवियों के अधीन था, जो प्रकृति की शक्तियों को नियंत्रित करते थे। ये देवता मनुष्यों से कहीं अधिक शक्तिशाली थे, लेकिन क्रोधित होने पर क्रूर भी हो सकते थे। इसलिए, सुमेरियों का मुख्य धार्मिक लक्ष्य देवताओं को खुश करना और उनका प्रकोप रोकना था।
देवताओं का पदानुक्रम
सुमेरियन धर्म में कई देवता थे, जिनका एक जटिल पदानुक्रम था। सर्वोच्च देवता आकाश का देवता अन (An) था, जिसे ब्रह्मांड का राजा माना जाता था। पृथ्वी की देवी की (Ki) को जीवन और उर्वरता की दाता माना जाता था। एनलिल (Enlil) वायु, तूफान और कृषि का देवता था। इनन्ना (Inanna) प्रेम, युद्ध और शुक्र ग्रह की देवी थी। उतु (Utu) सूर्य देवता थे, जबकि नन्ना (Nanna) चंद्रमा देवता थे। इनके अलावा, अनेक अन्य देवता विशिष्ट नगरों या प्राकृतिक घटनाओं से जुड़े थे।
मंदिर और पूजा
सुमेरियों ने अपने देवताओं के लिए भव्य मंदिरों का निर्माण किया, जिन्हें ज़िगगुरात (ziggurat) कहा जाता था। ये बहुमंजिला पिरामिडनुमा संरचनाएं थीं, जिनके शीर्ष पर देवताओं के लिए मंदिर होते थे। सुमेरियों का मानना था कि ज़िगगुरात पृथ्वी और स्वर्ग के बीच का संबंध स्थापित करते हैं। पुजारी मंदिरों में दैनिक अनुष्ठान करते थे, जिसमें बलिदान, प्रार्थना और भजन शामिल थे।
पौराणिक कथाएँ
सुमेरियों की कई मिथक कथाएँ थीं, जो ब्रह्मांड की उत्पत्ति, देवताओं के कारनामों और मृत्यु के बाद के जीवन की व्याख्या करती थीं। इन कथाओं में सबसे प्रसिद्ध "गिलगमेश का महाकाव्य" है, जो मानवता की नश्वरता और जीवन के अर्थ की खोज से संबंधित है।
सुमेरियन धर्म का सामाजिक प्रभाव
सुमेरियन धर्म ने उनके समाजिक जीवन को गहराई से प्रभावित किया। राजा को देवताओं का प्रतिनिधि माना जाता था, और उसका कर्तव्य यह सुनिश्चित करना था कि भूमि पर देवी इच्छा का पालन हो। पुजारियों का एक शक्तिशाली वर्ग था, जो मंदिरों का प्रबंधन करता था और देवताओं से संपर्क करने के लिए मध्यस्थ के रूप में कार्य करता था।
धर्म ने युद्ध और हिंसा को भी प्रभावित किया। युद्ध को अक्सर देवताओं के बीच संघर्ष का प्रतिबिंब माना जाता था, और विजेता को यह दावा करने का अधिकार था कि उसके देवता अधिक शक्तिशाली थे।
सुमेरियन सभ्यता का पतन
यह शक्तिशाली Sumerian sabhyata लगभग 2000 ईसा पूर्व के आसपास अचानक पतन की ओर जाने लगी। सुमेरियन सभ्यता के पतन के कारण आज भी इतिहासकारों के बीच बहस का विषय हैं। आइए, हम उन सिद्धांतों पर गौर करें जो इस पतन की व्याख्या करने का प्रयास करते हैं।
जलवायु परिवर्तन
मेसोपोटामिया की समृद्धि टिगरिस और यूफ्रेट्स नदियों द्वारा लाए गए उपजाऊ मैदानों पर निर्भर करती थी। एक सिद्धांत यह सुझाता है कि जलवायु परिवर्तन ने इन नदियों के प्रवाह को प्रभावित किया। सूखे की अवधि और अनियमित बाढ़ों ने फसलों को नष्ट कर दिया होगा, जिससे खाद्य आपूर्ति में कमी आई होगी। इससे अकाल पड़ सकते थे, जिसने सामाजिक अशांति और कमजोर शासन को जन्म दिया होगा।
आंतरिक संघर्ष
सुमेर विभिन्न स्वतंत्र शहर-राज्यों का एक संग्रह था, जो अक्सर आपस में युद्ध करते थे। लगातार युद्धों ने संसाधनों को कम कर दिया होगा और बुनियादी ढांचे को नष्ट कर दिया होगा। कमजोर केंद्रीय शासन के अभाव में, विभिन्न शहर-राज्यों के बीच संघर्ष तेज हो गया होगा, जिससे अराजकता फैली होगी।
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खानाबदोश आक्रमण
मेसोपोटामिया खानाबदोश जनजातियों के लिए एक आकर्षक क्षेत्र था। एक सिद्धांत यह बताता है कि खानाबदोश जनजातियों, जैसे कि अक्कादियों ने, सुमेरियन शहर-राज्यों पर लगातार हमला किया और उन्हें लूट लिया। इन हमलों ने सुमेरियन शक्ति को कमजोर कर दिया होगा और उनकी संस्कृति को नष्ट कर दिया होगा।
पर्यावरणीय क्षरण
सिंचाई प्रणाली, जिसने सुमेरियन कृषि को समृद्ध बनाया, पर्यावरणीय क्षति का कारण भी बना। नदियों से निकाले गए अतिरिक्त पानी ने मिट्टी में लवणीकरण को बढ़ा दिया होगा, जिससे भूमि बंजर हो गई होगी। खराब सिंचाई प्रथाओं और वनों की कटाई ने भी मिट्टी के क्षरण में योगदान दिया होगा, जिससे कृषि उत्पादकता कम हो गई होगी।
सामाजिक अशांति
सुमेरियन समाज अमीर अभिजात वर्ग और गरीब किसानों के बीच एक बड़े वर्ग विभाजन से ग्रस्त था। लगातार युद्धों, अकालों और आर्थिक कठिनाइयों ने सामाजिक तनाव को बढ़ा दिया होगा। गरीब जनता विद्रोह कर सकती थी, जिससे राजनीतिक अस्थिरता पैदा हुई होगी।
सुमेरियन धर्म का संकट
कुछ सिद्धांत सुझाव देते हैं कि Sumerian sabhyata में धर्म के भीतर ही कमजोरी मौजूद थी। लगातार प्राकृतिक आपदाओं और युद्धों को देवताओं के क्रोध के रूप में देखा जा सकता था, जिससे लोगों का विश्वास डगमगा गया होगा। धार्मिक नेतृत्व में कमी ने लोगों को दिशाहीन कर दिया होगा और सामाजिक व्यवस्था को कमजोर कर दिया होगा।
तो इस तरह आपने महाजलप्रलय के बाद धरती की पहली मानव सभ्यता, यानी "Sumerian Sabhyata" के बारे में सविस्तार से जाना। हमें आशा है कि यह लेख आपको पसंद आया होगा। इसी तरह की और अधिक ज्ञानवर्धक लेख पढ़ने के लिए कृपया Knowledge on top के साथ जुड़े रहिये। धन्यवाद