*भाई दूज त्योहार की शुरुआत कैसे हुई थी ?*

Bhaiya Dooj ki Kahani


भाई दूज त्योहार की शुरुआत कैसे हुई थी ?

भूमिका:


Bhaiya Dooj ki Kahani: भारतीय संस्कृति में भाई दूज एक अत्यंत महत्वपूर्ण और उत्कृष्ट त्योहार है, जिसे भाई-बहन के प्रेम और सजीव बंधन का प्रतीक माना जाता है। इस त्योहार का आयोजन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को होता है और यह दिन भाई-बहन के प्यार का प्रतीक होता है। यह त्योहार विभिन्न कारणों से मनाया जाता है, और इसका इतिहास भी बहुत रोचक है।


त्योहार की शुरुआत:


भारतीय साहित्य में, भाई दूज का प्रारंभ महाभारत काल में हुआ था। हमारी कथाएँ इस त्योहार की शुरुआत के पीछे एक रोचक कहानी से जुड़ी हैं।


कथा:


 1: द्वापर युग का काल: Bhaiya Dooj ki Kahani


बहुत समय पहले की बात है, द्वापर युग में आयोध्या नामक नगर में एक बड़ी रानी रहती थी, जिसका नाम सुनीता था। रानी सुनीता की दो सुंदर बेटियां थीं, जिनके नाम दीपा और आराध्या थे। ये बहनें अपने बहन-भाई के साथ बड़े प्यार से रहती थीं और उनका बंधन अद्वितीय था।


 2: दीपावली का अद्वितीय त्योहार:


एक दिन, रानी सुनीता ने अपनी बेटियों के साथ दीपावली के त्योहार की तैयारियों में व्यस्त रहने का निर्णय किया। यह त्योहार विशेष रूप से रानी के लिए महत्वपूर्ण था क्योंकि उसका पति राजा वीरभद्र उस दिन विदेश यात्रा पर गए हुए थे और उनका इंतजार बहुत बड़े शैलील्य से हो रहा था। रानी ने अपनी बेटियों से भी यही प्रतीत किया कि इस दीपावली को विशेष बनाया जाए।


3: आराध्या की शृंगार रचना:


आराध्या, रानी सुनीता की छोटी बेटी, ने इस दीपावली के त्योहार को और भी खास बनाने का संकल्प किया। उसने अपनी माँ के साथ मिलकर बाजार से सुंदर साड़ी, आभूषण, और रंग-बिरंगे फूलों की माला खरीदी। उसने अपनी साज-सज्जा में सोच-समझकर बहुत मेहनत की और दीपावली की शाम को उसने एक सुंदर शृंगार रचा।

Bhaiya Dooj ki Kahani



 4: भगवान यम की मेहनत


इसी दिन, भगवान यम, मृत्यु के देवता, अपनी बहन यमुना के साथ अपने लोक से पृथ्वी पर आए। भगवान यम की शक्ति और उनकी विशालता को देखकर भारतीय लोग उन्हें भी दीपावली के रूप में पूजते हैं। इसके बाद, भगवान यम ने अपनी बहन के बच्चों को देखा और उन्हें अपना प्यार और आशीर्वाद दिया।


 5: भाई दूज की शुरुआत 


यमराज के आगमन के बाद, आराध्या ने अपनी बहन दीपा के साथ एक मिठाई के थाल की सजाकर उसे उपहार में पेश किया। यह थाल उसने अपने भाई के साथ भगवान यम की पूजा के रूप में सजाई थी। इस सुअर्थ के लिए, उसने अपने भाई का आभूषण किया और उन्हें एक प्यारी सी मिठाई का टुकड़ा भी दिया। इसके बाद, उन्होंने एक-दूसरे को आदर्श बहन-भाई के रूप में बधाई दी और आपसी प्यार और समर्पण का इज़हार किया।


6: भाई दूज का महत्व


इस दिन की घड़ी में, आराध्या ने अपने भाई से भाई दूज के पर्व का महत्व सुनाया और उसने उसे यमराज के साथ मिलकर बहन-भाई के साक्षात्कार का महत्व बताया। इसके बाद, उन्होंने भी यमराज के साथ पूजा करते हुए अपने भाई को शुभकामनाएं दीं और उसे अपनी जिम्मेदारी और कर्तव्यों के प्रति समर्पित रहने की प्रेरणा दी।


7: भाई दूज का समापन


इस पुरानी कहानी के आधार पर ही भाई दूज का त्योहार हर साल मनाया जाता है। यह दिन भाई-बहन के बीच प्यार और समर्पण का प्रतीक है और इस दिन वे एक दूसरे के साथ अपनी भाईचारे और प्यार भरी कहानियों को साझा करते हैं। भाई दूज एक ऐसा अवसर है जब परिवार के सभी सदस्य मिलकर खुशियों का आनंद लेते हैं और आपसी सम्बंध को मजबूती से निभाते हैं।


इस प्रकार, भाई दूज का त्योहार भारतीय संस्कृति में अपनी विशेषता के साथ मनाया जाता है, जिसमें प्रेम, आत्मीयता, और परिवार के साथ आदर्श बंधन का प्रतीक होता है।

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने