*जानें वेद और विज्ञान से ब्रह्मांड की उत्पत्ति की संपूर्ण जानकारी! (Universe in hindi)*

 

Universe in hindi

जानें वेद और विज्ञान से ब्रह्मांड की उत्पत्ति की संपूर्ण जानकारी!(Universe in hindi)

आज के इस लेख में हम जानेंगे कि ब्रह्मांड की उत्पत्ति, संरचना और विकास में विज्ञान, दुनियाँ के बड़े धर्मों और वेदिक धर्म का क्या नजरिया है?

 ब्रह्मांड का जन्म कैसे हुआ ? 

 इस संदर्भ में सबसे पहले हम विज्ञान के नजरिये की बात करेंगे :-

  *विज्ञान के अनुसार ब्रह्मांड की उत्पत्ति  

विज्ञान का संबंध मनुष्य के Ration mind से है। मनुष्य ने अप्ने मस्तिष्क के विवेकपूर्ण हिस्से के आधार पर ही विज्ञान की अवधारणा को प्रतिष्ठापित किया है। विज्ञान प्रयोग और साक्ष्यों पर आधारित पद्धति है जिसमें मनुष्य अपने ह्रदय से काम नहीं लेता। किसी भी विषय की पड़ताल और सत्य जानने के लिये विज्ञान पूर्णतः तर्क का आश्रय लेता है।

 तो विज्ञान की इस पद्धति के आधार पर इस ब्रह्मांड की उत्पत्ति, संरचना और विकास की कहानी एक क्रमानुसार व निश्चित नियमों पर आधारित है।

 विज्ञान की इस अवधारणा के अनुसार इस ब्रह्मांड को किसी God, अल्लाह, परमेश्वर या भगवान ने नहीं बनाया है। यह ब्रह्मांड अनादि व अनश्वर है। यह ब्रह्मांड और इस ब्रह्मांड के प्रत्येक पदार्थ व द्रव्य अपने-आप में एक निश्चित नियमों के अनुसार व्यवहार करते हैं, जिसके आधार पर इस ब्रह्मांड की संरचना, रूप और विकास होते रहते हैं। यह ब्रह्मांड एक ही बार में बना और बस बन गया, ऐसा नहीं है। बल्कि यह ब्रह्मांड निरंतर बनता रहता है और बिगड़ता रहता है। इसकी यह गति अनन्तकाल के लिये सदैव गतिमान रहती है। इसमें पैदा होने वाले नाना-प्रकार के जीव इस प्रकृति के नियमों के अनुसार बनने वाले प्राणी मात्र हैं। जीवों और मनुष्यों की संपूर्ण संरचना भी भौतिक नियमों के अनुसार ही है। यहाँ आत्मा जैसी कोई अवधारणा नहीं होती। जीव या मनुष्य भौतिक प्राणी मात्र है, और कुछ नहीं।

 *दुनियाँ के प्रमुख धर्मों के अनुसार ब्रह्मांड की उत्पत्ति

 यहुदी और इस्लाम दोनों ही धर्म यह मानते हैं कि इस ब्रह्मांड को किसी 'प्रमुख ईश्वर' ने बनाया है। उनके नजरिये में वो ईश्वर कोई सर्वशक्तिमान व्यक्ति है जो बहुत पवित्र और धार्मिक है।

 इन दोनों धर्मों के इस नजरिये के पीछे न तो विज्ञान का कोई तार्किक नजरिया ही है और न ही मनुष्य की अपनी नीजि बौद्धिक सोच से उत्पन्न कोई अवधारणा ही। बल्कि यह नजरिया तो पूरी तरह से मनुष्यों के इन समूहों को पृथ्वी के बाहर से आये किसी 'अज्ञात प्राणी' के द्वारा दी गई सूचना है।

 पृथ्वी के बाहर से आये जिस प्राणी ने उन्हें जो सूचनायें दीं, उस सूचना को ये लोग 'पवित्र वचन' या 'पवित्र कलाम' या 'आसमानी किताब' कहते हैं जिसे इन लोगों ने पवित्र बाईबल और पवित्र कुरान के रूप में संग्रहित करके रखा है, और जिस प्राणी ने उन्हें ये सूचनायें दीं उस प्राणी को इन्होने 'याहवेह' या 'अल्लाह' कह कर पुकारा। याहवेह या अल्लाह का अर्थ होता है - Supreme God.

इनका यह ज्ञान पूरी तरह से पृथ्वी के बाहर से आये अज्ञात प्राणी के द्वारा दी गई सूचना है।

 इतिहास में यहुदी लोगों में से ही कुछ लोगों ने ईसा मसीह के बाद 'पवित्र वचन' की सूचनाओं को अपने हिसाब से परिवर्तित कर दिया। अब उनके नजरिये में वह सर्वोच्च ईश्वर तीन रूपों में (भागों में) विभक्त है जिसे ये (ईसाई लोग) लोग पिता-पुत्र और पवित्र आत्मा कहते हैं।

 इन इब्राहिमिक धर्मों के अनुसार इस ब्रह्मांड को परम-ईश्वर ने केवल 4000 वर्ष पूर्व ही बनाया है, और अब जो यह युग चल रहा है यह इस दुनियाँ के अंत का युग है।

 वेदों के अनुसार ब्रह्मांड की उत्पत्ति

सनातन धर्म अथवा वेदिक धर्म कई मामलों में मनुष्य की बौद्धिक प्रकृति तथा कल्पनाशील मन और विज्ञान का सम्मिलित रूप है। सनातन धर्म की पुस्तकों में जो कुछ भी वर्णित है वह वास्तव में दुनियां के बड़े धर्मों की तरह पृथ्वी के बाहर से आये प्राणी के द्वारा दी गई सूचना नहीं है, बल्कि इसका ज्ञान मनुष्य की आदिकाल से चली आ रही बौद्धिक क्षमता का परिणाम है। सनातनी मनुष्यों (तपस्वियों अथवा ऋषियों ने) ने इन ग्रंथों के रूप जो कुछ अर्जित किया है वो पूर्णतः उनका अपना स्वयं का अर्जित (अनुसंधान करके) किया हुआ है। 

 इन ऋषियों ने अर्थात ज्ञान और सत्य की खोज करने वाले इन श्रेष्ठ लोगों ने अपने चिन्तनशील मन, कल्पना, परिकल्पना, तर्क-विवेक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के आधार पर सनातन ग्रंथों की रचना की। उन ऋषियों ने इन रचनाओं को सनातन शब्द से संबोधित किया।

 उन्होने इन रचनाओं को सनातन इसीलिए कहा, क्योंकि उनमें दी गईं सूचनायें या ज्ञान मनुष्य के उत्पन्न होने से भी पहले का ज्ञान है, अर्थात ब्रह्मांड के उत्पन्न होने, उसकी संरचना और विकास की अनूठी वैज्ञानिक-दृष्टिकोणिक व्याख्या है।

ब्रह्मांड की उत्पत्ति के संदर्भ में विज्ञान और वेदिक धर्म में समानता

*वेदिक धर्म के अनुसार इस ब्रह्मांड को यहुदी, इस्लाम या ईसाई धर्म की भान्ति किसी प्रमुख ईश्वर ने नहीं बनाया है, बल्कि यह ब्रह्मांड अपने-आप बनता है। वेदिक धर्म का यह नजरिया पूर्णतः विज्ञान सम्मत है।

*वेदिक धर्म के नजरिये में यह ब्रह्मांड करोड़ों, अरबों-खरबों वर्ष पहले से बनती आ रही है जैसा कि विज्ञान भी ऐसा ही कहती है। परन्तु इब्राहिमिक धर्मों के अनुसार इस ब्रह्मांड को बने मात्र 4000 वर्ष ही हुये हैं।

*विज्ञान के अनुसार बहुत से तत्व मिलकर इस ब्रह्मांड अथवा दुनियां को बनाते हैं और बदलते रहते हैं। तो ठीक इसी तरह वेदिक धर्म के अनुसार भी इस ब्रह्मांड को अलग-अलग दिव्य (तत्वों ने) शक्तियों ने मिल कर बनाया है। इसीलिए वेदिक ज्ञान को 'तत्व ज्ञान' कहते हैं। जो विज्ञान के समकक्ष है।

*अब तो विज्ञान भी मानता है की इस संपूर्ण ब्रह्मांड के उत्पन्न होने और विकसित होने के पीछे कोई एक स्थिर व अपरिवर्तित तत्व है जिसकी वजह से ही इस संपूर्ण दूनियाँ का आस्तित्व है। तो इस संदर्भ में वेदिक धर्म इसी तत्व को 'ब्रह्म-तत्व' कहता है, जो अचल, स्थिर और अपरिवर्तनीय है। इसे छोड़ बाकी के सभी तत्व अस्थिर व परिवर्तनशील हैं। उनके रूप-रंग और आकार-प्रकार बदलते रहते हैं। उनकी संरचना भी उन्हीं के नियमों के अनुसार बदलती रहती है। यहाँ तक की समय भी इन्हीं में से एक तत्व ही है, जिसे वेद ज्ञान में 'काल' कहते हैं। ब्रह्मांडीय समय (काल) अस्थिर व चलायमान है जबकि ब्रह्मतत्व (महाकाल) स्थिर व अटल है।

*विज्ञान के अनुसार इस ब्रह्मांड के उत्पन्न होने, बनने व विकसित होने तथा बिगड़ने के पीछे भी किसी एक स्थिर व अटल तत्व का होना जरुरी है। तो इसी संदर्भ में वेदिक धर्म के अनुसार भी ब्रह्मतत्व ने प्रकृति को स्पर्श किया, जिससे प्रकृति में असीमित ऊर्जा का संचार हुआ। प्रकृति में असीमित ऊर्जा का संचार होने की वजह से ही यह प्रकृति अपनी नीजि प्रकृति (गुण और स्वभाव) के चलते स्वयं से स्वयं को रचती चली गई।

Universe in hindi

ब्रह्मांड से पहले क्या था ?

 वेद के अनुसार ब्रह्मांड से पहले ब्रह्मतत्व और प्रकृति ही थी। किन्तु प्रकृति मृत अवस्था में थी परन्तु फिर भी थी। क्योंकि प्रकृति भी ब्रह्मतत्व की तरह ही शाश्वत है।

 ब्रह्मतत्व तो शाश्वत भी है और सदैव अमर भी। तो फिर जब ब्रह्मतत्व ने प्रकृति को छुआ तो प्रकृति जीवित हो गई। जब प्रकृति जीवित हो गई तो सबसे पहले उसमें से 'भगवान्' का जन्म हुआ।

 वेद के अनुसार - भगवान का अर्थ है:- भ - भूमी, ग - गगन, व - वायु, अ - अग्नि, न - नीर। अर्थात प्रकृति के पाँच-महाभूत ही भगवान है। भगवान ही प्रकृति है। यह सारी दुनियाँ भगवान के द्वारा ही रची गई है, यानी की प्रकृति के द्वारा ही।

 परन्तु यह भगवान (पंचमहाभूत) अपने गुणों के (स्वभावों के) अनुसार तीन रूपों में दिव्य रूप से विभक्त है, जिन्हें त्रिगुण कहते हैं। हाँ, यह प्रकृति त्रिगुणी है। तीन गुण- सत, रज, तम।

 ये जो सत, रज और तम हैं इन्हें विज्ञान की भाषा में प्रोटोन, इलेक्ट्रॉन और न्यूट्रॉन कहते हैं। विज्ञान भी यही मानता है कि यह संपूर्ण सृष्टि इन्हीं तीन परमाणुओं के आधार पर क्रिया करती रहती है।

 तो वेद में इन तीन गुणों को जो कि भगवान के तीन स्वभाव अथवा रूप हैं को ब्रह्मा-विष्णु और महेश कहते हैं।

 वास्तव में ये कोई व्यक्ति नहीं हैं। ये कोई जीव या महाजीव नहीं हैं। ये तो प्रकृति के प्रमुख तत्व हैं, उसके प्रमुख स्वभाव। आज के समय के सदर्भ में सिर्फ शब्दों का अन्तर हुआ है। प्रकृति के जिन प्रमुख तत्वों को वेदिक धर्म ब्रह्मा, विष्णु और महेश कहता है उन्हें विज्ञान आज प्रोटोन, इलेक्ट्रान और न्यूट्रॉन कहता है। इस ब्रह्मांड की आकारमय सृष्टि बनने के पीछे भगवान (पंचमहाभूत) और भगवान के तीन रूपों (गुणों) का ही हाथ (Act) है।

 ब्रह्म, भगवान और भगवान के तीन प्रमुख रूप ये तीनों ही शाश्वत हैं। परन्तु ब्रह्म अमर है, क्योंकि वह अमर चेतन ऊर्जा है। वह समस्त ऊर्जाओं का मूल स्त्रोत है। सृष्टि के अंत में जब ब्रह्मतत्व प्रकृति को छोड़ देता है तब भगवान और भगवान के तीन प्रमुख रूप तथा उनकी बनाई हुई सारी रचना भी नष्ट हो जाती है, मर जाती है।

 तो वेद के नजरिये में ब्रह्मतत्व जिसे परमेश्वर अथवा परमात्मा कहा गया है वह कोई व्यक्ती नहीं है जो किसी बौद्धिक प्राणी या मनुष्य की तरह हो। वह तो एक ऐसी बौद्धिक ऊर्जा है, एक ऐसी बौद्धिक चेतना है जो अपने आप में एक व्यक्ति की भान्ति ही है। जो अपने आप में सब कुछ है। बस, वो इस प्रकृति के साथ है। जब तक वो इस प्रकृति के साथ है तब तक यह ब्रह्मांड और इसका अस्तित्व है, पर जब कभी वो इसका साथ छोड़ दे तो यह प्रकृति और ये दुनियाँ और हम और आप कुछ भी नहीं।

*वेदिक ज्ञान में स्वर्गदूतों जैसी कोई अवधारणा नहीं होती, वरन इसमें देवी-देवताओं की अवधारणा होती है। वेदिक धर्म के अनुसार इस ब्रह्मांड में 33 कोटि देवी-देवता होते हैं जो स्वर्ग में विराजतें हैं और साथ ही इस सृष्टि में उनकी प्रतिछाया होती है। प्रमुख भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश की सम्मिलित इच्छा के अनुसार ये 33 कोटि देवी-देवता इस सृष्टि के विकास और विघटन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये ब्रह्मांड में संतुलन स्थापित करते हैं।

वास्तव में ये 33 कोटि देवी-देवता मनुष्यों की भान्ति कोई जीव नहीं हैं बल्कि प्रकृति के विभिन्न अवयव या घटक हैं जिनसे इस स्ंपूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्त्पत्ति, गति और बिगड़ाव होता रहता है। मनुुुष्य शरीर के विभिन्न अवयव या घटक भी यही हैं। बस, शब्दों का अन्तर है। विज्ञान इन्हें कुछ और शब्दों से संबोधित कर सकता है। जबकि सनातन अथवा वेदिक ज्ञान इन्हें इन्द्र, मारुत, विवस्वान, रुद्र और वाचस्पति आदि देव (दिव्य) शब्दों से संबोधित करता है।

वेदिक ज्ञान में शैतान और गिराये गये स्वर्गदूतों की कोई काल्पनिक कहानी नहीं है।

 वेदिक धर्म के अनुसार ये प्रमुख तीन गुण ही (सत-रज-तम)  जीव अथवा मनुष्य के सुख-दुख के,भले-बुरे होने के पीछे का मूल कारण हैं।

 अगर शैतान (लूसीफर नाम का स्वर्गदूत) था भी तो वह क्यों बिगड़ा ?, जबकि परमेश्वर ने सब कुछ अच्छा करके अथवा अच्छा बोल के बनाया था !

 इसके पीछे का कारण केवल एक ही है, और वह है प्रकृति के ये तीन गुण - सत-रज-तम, जो शाश्वत हैं !

वेदिक ज्ञान के अनुसार सतोकर्म करने वाला मनुष्य अथवा प्राणी स्वर्ग में अपने पुण्य फलों को भोगता है।

 रजो कर्म करने वाला इसी पृथ्वी पर पुन: मनुष्य रूप में ही जन्म लेता है।  

 परन्तु तमोकर्म करने वाला मनुष्य अधोलोक में अर्थात अतल से पाताल लोक तक में जन्म ले सकता है। परंतु भयंकर तमोकर्म करने वाला मनुष्य पाताल से भी नीचे के लोक  में उतरता है जिसे नरक कहते हैं।

वेद के अनुसार मोक्ष किसे कहते हैं ?

 वेदिक ज्ञान के अनुसार मोक्ष का अर्थ है इस प्रकृति अथवा ब्रह्मांड से अपने मोह का क्षय करना। जिस भी पल कोई मनुष्य इस सृष्टि और इस सृष्टि पर के संबंधों से अपने मोह (Attechment) का क्षय करता है तो वह मोक्ष की अवस्था में आरूढ़ हो जाता है और वह प्रकृति से पूरी तरह अलग हो जाता है तथा उसकी स्थिति ब्रह्मतत्व की स्थिति बन जाती है, और ऐसा व्यक्ति मृत्यु के उपरान्त फिर कभी प्रकृति में अवतरित नहीं होता। और सदा के लिये परमधाम में लीन हो जाता है।

 शब्दों के गहरे अर्थ में कहा जाये तो मोक्ष का अर्थ है प्रकृति और भगवान से अपना पीछा छुड़ाना, उनसे अपना संबंध-विच्छेद करना !

1 टिप्पणियाँ

और नया पुराने