*यीशु मसीह हैं, पर पिता-परमेश्वर नहीं ! Is Jesus christ supreme God in hindi

 
Is Jesus christ supreme God in hindi

 

यीशु मसीह हैं, पर  पिता-परमेश्वर नहीं ! Is Jesus christ supreme God in hindi

   एक बुनियादी सवाल जो आज भी कुछ  लोगों के जहन में उठता है कि *क्या यीशु ही परमेश्वर है ?

  यीशु के बारे में कुरान और बाईबल में जिक्र किया गया है। लेकिन कुरान में उन्हें सिर्फ एक पेग्ंबर माना गया है, इससे अधिक और कुछ नहीं। कुरान की भाषा में वे केवल एक मनुष्य हैं न की परमेश्वर के बेटे, वे सिर्फ खुदा की ओर से भेजे गये एक शान्ति के संदेश वाहक हैं। 

  परन्तु इसके विपरीत धर्मशास्त्र बाईबल में उन्हें 100 प्रतिशत मनुष्य और 100 प्रतिशत परमेश्वर का बेटा भी माना गया है। वे मात्र शान्ति के संदेश वाहक ही नहीं वरन चिरंजीवी शान्ति स्थापित करने वाले चिरंजीवी परमेश्वर के बेटे भी हैं। उन्हें बाईबल में जगत का उद्धारकर्ता बताया गया है।

  एक ध्यान देने योग्य बात तो यह है कि इससे पहले कुरान लिखी गई पहले बाईबल लिखी गई थी। इसलिये बाईबल की भाषा और जुबान कुरान से अधिक पुरानी है।  यीशु से पूर्व भी बहुत से शान्ति के संदेश वाहक मानवता को भाईचारे का पाठ पढ़ाने आये थे, किन्तु यीशु मसीह उन सबसे भिन्न एक भिन्न प्रकार से जगत को शान्ति का पाठ पढ़ाने आया था।

 तो आइये उन बिन्दुओं पर ध्यान देते हैं जिनसे यीशु कुरान के संदेश वाहकों और अपने से पूर्व के संदेश वाहकों से एक भिन्न व्यक्ति दिखते हैं:-

  यीशु ने कहा, "कोई मेरे पिता को नहीं जानता।"

  बाईबल के अनुसार इजराईल का परमेश्वर इस जगत का परमेश्वर है। बाईबल के परमेश्वर ने जो कहा, वही मानवता के लिये धर्म है।

  तो क्या वाकई में इजराईल का परमेश्वर इस जगत का परमेश्वर है ?, *क्या यीशु ही परमेश्वर है?

  तो क्या वाकई में उसके कहे अनुसार बनाई  व्यवस्था ही (यहुदी धर्म) मानवता का धर्म है ?

  आज हम बाईबल को जिस रूप में देखते हैं वो अलग-अलग संदेश वाहकों द्वारा लिखित पुस्तकों के संग्रह का एक गठजोड़ है। बाईबल के पुराने-नियम की पुस्तक *तोराह (पंचग्रंथ) सामान्यतः माना जाता है कि नबी मूसा ने लिखी। परन्तु बावजूद इसके बहुत से लोगों का मानना है कि ये पुस्तकें केवल मूसा ने नहीं लिखीं वरन वह तो इसके (तोरह) संपादक थे।

  तोरह में उत्पत्ति की पुस्तक से तो यही स्पष्ट होता है कि उत्पत्ति की पुस्तक का परमेश्वर ही इस जगत का परमेश्वर है। परंतु आगे निर्गमन की पुस्तक में चलकर जो ईश्वर यहूदियों में प्रकट हुआ वो भी केवल मूसा के सामने, वो इस जगत का परमेश्वर है इस पर संदेह अवश्य उत्पन्न हो जाता है।

  मूसा ने उत्पत्ति की जो कहानी लिखी वो इब्राहिम के समय से सुनी आ रही कहानियों का संकलन था। परन्तु अब निर्गमन के बाद व्यवस्था-विवरण की जो किताब लिखी गई, वो वास्तव में इस जगत के परमेश्वर के द्वारा प्रदत्त ज्ञान न था वरन स्वर्गदूतों का ज्ञान था (गलातियों 3:19-20)। 

  उत्पत्ति की पुस्तक को छोड़ यीशु मसीह तक जितना भी ज्ञान है वे परमेश्वरीय ज्ञान न होकर स्वर्गदूतों का (परमेश्वर की महिमा से प्रभावित होकर) ज्ञान है।

  क्योंकि परमेश्वर ने तो इस दुनियां को बहुत सुन्दर और अच्छा करके बनाया है, परन्तु बहुत से स्वर्गदूतों के द्वारा इस सृष्टि को बिगाड़ दिया गया है।

 +मुख्य बिंदु ध्यान देने योग्य हैं :-

 *यदि निर्गमन और व्यवस्था-विवरण का परमेश्वर इस जगत का परमेश्वर होता तो वह स्वयं को इस संपूर्ण मानवजाति पर प्रकट करता न कि केवल यहूदियों पर।

 *यदि  निर्गमन और व्यवस्था-विवरण का परमेश्वर इस जगत का परमेश्वर होता तो वह मनुष्यों की विभिन्न प्रजातियों में कोई भेदभाव नहीं करता, और न ही स्वयं को न मानने वालों से घृणा करता।

 *यदि निर्गमन और व्यवस्था विवरण का परमेश्वर इस जगत का परमेश्वर होता तो वह अन्यजातिय औरतों, बच्चों और बूढ़ों तक की हत्या करने का आदेश न देता।

 * यदि निर्गमन और व्यवस्था विवरण का परमेश्वर इस जगत का परमेश्वर होता तो वह यह कभी न कहता कि आँख के बदले आँख और दांत के बदले दांत। क्योंकि ऐसी प्रवृति तो केवल प्रकृति की होती है, परमेश्वर की नहीं। परमेश्वर तो प्रकृति से परे हैं, वह तो सत-चित-आनन्द स्वरूप हैं।

 *यदि निर्गमन और व्यवस्था विवरण का परमेश्वर इस जगत का परमेश्वर होता तो वह अपने न मानने वालों से घृणा न करता और न ही स्वयं की निंदा करने वालों को पत्थरवाह करके मरवाने का आदेश ही देता।

  क्या हम सब यह नहीं जानते की परमेश्वर *आत्मा है, जो पवित्र है अर्थात इस सृष्टि की वासना से मुक्त। और आत्मा जब चाहे किसी भी मनुष्यजाति या व्यक्ति को अपने पवित्र ज्ञान से प्रकाशित कर सकती है।

  इस जगत के परमेश्वर ने मनुष्य के लिये जीवन दिया है ताकि वे जीवन जी सकें। परन्तु मनुष्य इसे खोता है तो केवल इस जीवन नदी (परमेश्वर से) से किनारा पा कर। 

  वास्तव में मनुष्य परमेश्वर का अंश नहीं वरन वंश है, परन्तु अपनी अज्ञान दशा में मनुष्य उसका अंश मात्र ही बन कर रह जाता है।

  क्या सनातन धर्म यह नहीं कहता कि  'मनुष्य परमेश्वर का वंश है- अहम ब्रह्मास्मि!'

  क्या स्वयं बाइबल में परमेश्वर नहीं कहता कि 'मैने कहा, तुम ईश्वर हो!'  किससे कहा? उन्हीं लोगों से,- 'जिनमें आध्यात्म का ज्ञान उज्ज्वलित होता है।'


 यीशु ने कहा कोई मेरे पिता को नहीं जानता !

  बाईबल में यीशु ने तकरीबन दो या तीन दफा यही बात बड़ी ही गंभीरता और जबरन कही है कि कोई मेरे पिता को नहीं जानता, किसी ने मेरे पिता को नहीं देखा है, किसी ने उसका शब्द सुना नहीं है। *यूहन्ना 5:37 

  तो इससे तो यही बात स्पष्ट हो जाती है कि इजराईल का धर्म जो स्वर्गदूतों के द्वारा मूसा के जरिये बनाया गया था, वो सच्चा धर्म है ही नहीं। क्योंकि मूसा ने कभी भी परमेश्वर का शब्द नहीँ सुना। उसने जो सुना और देखा वो स्वर्गदूतों की वाणी और तेज था। 

  क्योंकि ईसा ने एक जगह यह भी कहा था कि जो मुझसे पहले आये थे वे सब चोर और डाकु थे।

  तो *क्या यीशु ही परमेश्वर है ?

  इसलिये जब इजराईल में (यहूदियों में) प्रभु यीशु ने स्वर्गदूतों द्वारा प्रदत्त कट्टरवादी रक्तरंजिश धर्म को बड़ी ही कोमलता से धराशाई कर दिया और उसे समेट कर मात्र इजराईल तक सीमित कर दिया, तो यीशु के स्वर्ग-रोहण के बाद पुन: उन्हीं स्वर्गदूतों ने (जिब्राईल) अर्बियंस (अरबी लोगों) का इस्तेमाल कर इस दुनियां में कट्टरवादी रक्तरंजिश धर्म की नींव डाली, ताकी उसी कड़ी को आगे बढाया जा सके जिसे (यहुदी धर्म को) यीशु ने तोड़ दिया था। परन्तु इस बार यह कुछ भिन्न तरीके से आगे बढ़ाया गया और बहुत ही ज्यादा कट्टरता के साथ।

यीशु केवल अज्ञानियों के उद्धारकर्ता हैं!

  हां, यह बात अक्षरशः सत्य है कि यीशु अज्ञानियों (पापियों के) के ही उद्धारकर्ता हैं।  क्योंकि 'वेद्य की आवश्यकता भले-चंगों को नहीं बल्कि बीमारों को होती है।'

  इसी रीति उत्पत्ति की कहानी में परमेश्वर ने कैन से भी यही कहा था कि 'यदि तू भला करे तो क्या जीवन में प्रवेश न पायेगा!'

  इससे तो यही सिद्ध होता है कि इस जगत के परमेश्वर ने स्वर्ग और नरक, अनंतजीवन या अनंतमृत्यु या मुक्ति या मोक्ष केवल मनुष्य के हाथों सौंप रखा है। मनुष्य जैसा कर्म करता है वह वैसा ही फल पाता है।  संदर्भ देखें- *यीशु मसीह की दृष्टांत कहानी - धनी व्यक्ति ने बुरा कर्म किया इसलिये उसने फल स्वरूप नरक को पाया और लाजर जो की एक कंगाल था, उसने अपने हृदय से अच्छा कर्म किया, इसीलिये उसने स्वर्ग पाया था।

  अगर यीशु मसीह के बिना कोई भी व्यक्ति स्वर्ग नहीं जा सकता तो फिर अब्राहम, इसहाक, याकूब, लाजर इत्यादि कैसे स्वर्ग पहुंचे ?

 इसका प्रमाण यह है कि हम  बाईबल में भी यह पढ़ते हैं कि अब्राहम का परमेश्वर, इसहाक का परमेश्वर, याकूब का परमेश्वर। इनसे पूर्व भी बहुत से ज्ञानीजन हुये हैं जिनका जिक्र बाईबल ने तफ्सीलवार नहीं किया है। फिर भी हम पढ़ते हैं- हनोक जो जिन्दा ही उठा लिया गया, राजा मिल्किसीदीक जिसके जन्म और मृत्यु का कोई पता न चल सका आदि-आदि।

  क्या बाईबल नहीं कहता कि परमेश्वर जीवतों का परमेश्वर है मरों हुओं का नहीं ? अर्थात् जीवित वो है जो आत्मज्ञान अथवा आध्यात्म ज्ञान से उज्ज्वलित है, और मरा हुआ वो है जो आत्म ज्ञानी नहीं।

  अत: इस जगत में बहुत से अज्ञानी हैं जिनका ज्ञान आत्मज्ञान नहीं  वरन संसारिक ज्ञान है। आत्म-ज्ञानियों की संख्या बहुत कम है। 

 तो *क्या यीशु ही परमेश्वर है ?

  जी हाँ, निःसंदेह !  ये अज्ञानी मनुष्य अपनी अज्ञानता की दशा में बहुत से कर्म बान्ध लेते हैं जिनसे उनकी मुक्ति लगभग असंभव-सी हो जाती है। ऐसे ही लोगों के लिये परमेश्वर की इच्छा से हम मनुष्यों में से एक मनुष्य अवतरित हुआ, जिसका नाम यीशु है और वह जगत का उद्धारकर्ता हुआ, क्योंकि वह बहुतेरों  (बहुत से अज्ञानियों) के छुटकारे (मुक्ति का) का मार्ग ठहरा।

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